संगम से विदाई, अब 2027 में हरिद्वार अर्धकुंभ में होगी संतों की भव्य सभा
- - इस ऐतिहासिक पहल के तहत सभी 13 अखाड़ों के संत, नागा संन्यासी और धर्मध्वजा रक्षक हरिद्वार में अपनी छावनी जमाएंगे
- - अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने उत्तराखंड सरकार के साथ मिलकर हरिद्वार अर्धकुंभ के अमृत स्नान और छावनी प्रवेश की तैयारियाँ शुरू कर दी हैं
प्रयागराज: महाकुंभ 2025 के दिव्य और भव्य समापन के साथ ही संतों, भक्तों और श्रद्धालुओं ने अगले अर्धकुंभ की तैयारियों की ओर कदम बढ़ा दिए हैं। अगला अर्धकुंभ छह मार्च 2027 से हरिद्वार में शुरू होगा, जहाँ पहली बार अखाड़ों की आधिकारिक बसावट की जाएगी। इस ऐतिहासिक पहल के तहत सभी 13 अखाड़ों के संत, नागा संन्यासी और धर्मध्वजा रक्षक हरिद्वार में अपनी छावनी जमाएंगे।
हरिद्वार अर्धकुंभ 2027: पहली बार अखाड़ों की बसावट-
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने उत्तराखंड सरकार के साथ मिलकर हरिद्वार अर्धकुंभ के अमृत स्नान और छावनी प्रवेश की तैयारियाँ शुरू कर दी हैं। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अखाड़ों को विशेष रूप से हरिद्वार में बसने का न्योता भेजा है। श्रीमहंत रवींद्र पुरी (अखाड़ा परिषद अध्यक्ष) और श्रीमहंत हरि गिरि (महामंत्री) ने इसकी पुष्टि की है।
मुख्य विशेषताएँ:
- - पहला अमृत स्नान: 6 मार्च 2027 (महाशिवरात्रि)
- - अंतिम अमृत स्नान: 14 अप्रैल 2027
- - सबसे पहले छावनी प्रवेश: जूना अखाड़े के नागा संन्यासी
- - पहला अमृत स्नान करने वाला अखाड़ा: महानिर्वाणी अखाड़ा
अर्धकुंभ 2027 की तैयारी में जुटे अखाड़े-
उत्तराखंड सरकार ने सभी शैव, वैष्णव और उदासी परंपरा के अखाड़ों को हरिद्वार में बसने की अनुमति दी है। इसमें जूना, निरंजनी, अटल, आनंद, अग्नि अखाड़े के संतों के साथ-साथ बैरागी और उदासी अखाड़ों के महंत शामिल होंगे।
अखाड़ा परिषद ने बताया कि हरिद्वार में पहली बार अखाड़ों की स्थायी छावनी बसाने की योजना बनाई जा रही है। इस निर्णय से हरिद्वार में आने वाले श्रद्धालुओं को अधिक सुव्यवस्थित दर्शन और संतों का आशीर्वाद प्राप्त करने का अवसर मिलेगा।
2027 के बाद नासिक और उज्जैन में कुंभ-
हरिद्वार में अर्धकुंभ 2027 के समापन के बाद, 17 जुलाई 2027 को नासिक में कुंभ और फिर 2028 में उज्जैन में पूर्ण कुंभ का आयोजन होगा।
अखाड़ा परिषद और उत्तराखंड सरकार के इस ऐतिहासिक निर्णय से हरिद्वार अर्धकुंभ 2027 को भव्य और दिव्य बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं। श्रद्धालु और संत अब 2027 में हर की पैड़ी पर एक बार फिर से धर्म, आस्था और सनातन परंपराओं के महायज्ञ में शामिल होने के लिए तैयार हैं।