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नई पैराशूट प्रणाली का सफल परीक्षण, दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों में उतर सकेंगे सैनिक

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सैनिकों को देश की सुरक्षा और पड़ोसी देशों की किसी भी नापाक साजिश का मुंह तोड़ जवाब देने के लिए हर समय कठिन से कठिन चुनौती के लिए सैनिकों को अपने अस्त्र-शस्त्र के साथ तैयार रहना होता है। इन्हीं जरूरतों को ध्यान में रखते हुए हवाई वितरण अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान (एडीआरडीई) के वैज्ञानिकों ने सैनिकों के लिए यूनीक नई पैराशूट प्रणाली तैयार की है। इसके जरिये अब सैनिक 30 हजार फीट की ऊंचाई से दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र में भी छलांग लगा सकेंगे। 

विशेषकर चीन की तैयारियों को देखते हुए इस तरह के पैराशूट की आवश्यकता काफी समय से महसूस की जा रही थी। बता दें कि यह प्रणाली अमेरिका समेत कई अन्य विकसित देशों के पास पहले से उपलब्ध है। नई पैराशूट प्रणाली का मलपुरा ड्रॉपिंग जोन, आगरा में सफल परीक्षण किया गया। इस दौरान रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के वैज्ञानिक भी मौजूद रहे। गौरतलब है कि पैराशूट की डिजाइन और उसके परीक्षण से जुड़ा देश का एक मात्र संस्थान एडीआरडीई है। 

इस पैराशूट को बनाने के लिए वैज्ञानिकों ने तीन वर्ष पूर्व ही सैन्य लड़ाकू पैराशूट प्रणाली (एमसीपीएस) और हाई एल्टीट्यूड पैराशूट विद नेविगेशन एंड एडवांस सब असेंबलीज (हंस) पर कार्य शुरू कर दिया था। इसमें जंपर के लिए विशेष तकीनीकि को शामिल करते हुए सूट तैयार किया गया है। इस सूट में पोजीशनिंग सिस्टम, पैरा कंप्यूटर, मैग्नेटिक कंपास, इंटर पर्सनल रेडियो, और हेलमेट भी लगे हुए हैं। इस सूट के साथ एक विशेष पैराशूट जोड़कर सैन्य लड़ाकू पैराशूट प्रणाली तैयार की गई है। इसके पूर्व में भी कई परीक्षण हो चुके हैं लेकिन इस बार अंतिम परीक्षण किया गया।

इस प्रणाली की विशेषता की बात करें तो यह लगभग 15 साल तक कार्य करते हुए अधिकतम 200 किग्रा का वजन उठाने में सक्षम है। वहीं इसके नीचे आने की गति 280 किमी. प्रति घंटा रहती है। इस तरह 30 हजार फीट की अधिकतम ऊंचाई से छलांग लगाते हुए इसके साथ एक घंटे तक ऑक्सीजन की आपूर्ति भी रहती है। ऐसे में जल्द ही यह प्रणाली सेना में शामिल होकर सैनिकों के लिए आपात परिस्थिति में वरदान साबित होगी।