• अनुवाद करें: |
मुख्य समाचार

संघ के 100 वर्षों का इतिहास समर्पण और सेवा का अनूठा उदाहरण, हमेशा सभी को जोड़कर भारत को सशक्त किया - दलाई लामा जी

  • Share:

  • facebook
  • twitter
  • whatsapp

संघ के 100 वर्षों का इतिहास समर्पण और सेवा का अनूठा उदाहरण, हमेशा सभी को जोड़कर भारत को सशक्त किया : दलाई लामा

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शताब्दी वर्ष समारोह पर पूज्य दलाई लामा ने संघ और सभी स्वयंसेवकों को शुभकामनाएं दीं। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारत के पुनर्जागरण के प्रयास में एक विशेष स्थान रखता है। इसकी स्थापना निःस्वार्थ भाव एवं फल की आकांक्षा छोड़कर कर्तव्य केन्द्रित निर्मल चेतना के माध्यम से हुई।

तिब्बती धर्मगुरु पूज्य दलाई लामा ने शुभकामना संदेश में कहा कि आर्यावर्त भारत अति प्राचीन काल से ही अनेक धर्मों, दर्शन एवं विद्याओं की उद्गम भूमि रहा है, जिसके कारण भारत विश्वगुरु के रूप में माना जाता रहा, परन्तु दसवीं शती के अंतिम वर्षों-से अनेक बाहरी व्यवधानों के कारण प्राचीन भारतीय धर्मों, दर्शन एवं विद्याओं की क्षति एवं हृास होता रहा। फिर भी असंख्य निस्वार्थ महापुरुषों के अथक प्रयास ने भारत की परम्पराओं को विलुप्त होने से बचाये रखा। उन्नीसवीं शती से भारत में पुनर्जागरण के विभिन्न आध्यात्मिक, शैक्षणिक एवं सामाजिक उत्थान के कार्य चलने लगे, जो अन्ततोगत्वा स्वराज के आंदोलन में परिणत हुए और बीसवीं शती के मध्य में भारत की स्वाधीनता पुनर्स्थापित हुई। इसके साथ ही प्राचीन भारतीय परम्पराओं के सम्यक रूप से संरक्षण एवं संवर्द्धन का चुनौतीपूर्ण कार्य सामने आया।

50 साल से संघ के कार्यों को निकट से देख रहा हूं

दलाई लामा ने संघ के सेवा कार्यों का उल्लेख करते हुए कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का आन्दोलन उपरोक्त समस्त पुनर्जागरण के प्रयास में एक विशेष स्थान रखता है। इसकी स्थापना निःस्वार्थ भाव एवं फल की आकांक्षा छोड़कर कर्तव्य केन्द्रित निर्मल चेतना के माध्यम से हुई। जो भी व्यक्ति संघ में प्रवेश लेते हैं उन सभी को चित्त शुद्धि एवं साधन शुद्धि का जीवन व्यतीत करने की शिक्षा प्राप्त होती है। संघ की यात्रा के सौ वर्षों का इतिहास समर्पण और सेवा का अनूठा एवं अतुलनीय उदाहरण रहा है। संघ ने हमेशा सभी को जोड़कर भारत को भौतिक एवं आध्यात्मिक रूप से सशक्त करने का कार्य किया है। भारत के सुदूर एवं कठिन क्षेत्रों में जाकर वह शैक्षणिक एवं सामाजिक विकास के हर कार्य में योगदान देने के साथ-साथ आपदाग्रस्त क्षेत्रों में विशेष सेवा प्रदान करता रहा है। गत पचास वर्षों में मुझे संघ एवं संघ द्वारा संचालित विभिन्न संस्थाओं को निकट से देखने का अवसर मिला। मैं उनके सभी कार्यों से प्रभावित हुआ हूँ। व्यक्तिगत जीवन में एक मनुष्य होने के नाते मानव मूल्यों का संवर्द्धन करना, एक धार्मिक व्यक्ति होने के नाते सर्वधर्म समभाव के विचारों को सशक्त करना और भारतीय प्राचीन विद्या के अध्येता होने के नाते प्राचीन भारतीय विद्याओं का संरक्षण करना मैं अपना मूल कर्तव्य मानता हूँ। ये तीनों कार्य संघ अच्छी प्रकार से सम्पादित करता आया है, इसलिए संघ के प्रति मेरी सहज अनुशंसा है।

संघ ने हमेशा तिब्बती शरणार्थियों का ध्यान रखा

संघ सदा से भारत में बसे तिब्बती शरणार्थियों की सुख सुविधा एवं तिब्बती प्रश्न के समाधान के लिए विशेष योगदान देता रहा है, इसके लिए समस्त तिब्बती जनता अनुगृहीत है। संघ के शताब्दी वर्ष में आयोजित सभी कार्यक्रम सफलतापूर्वक सम्पन्न हों जिनसे संपूर्ण जगत् का कल्याण हो, मैं त्रिरत्न से ऐसी प्रार्थना करता हूँ और संघ परिवार के सभी सदस्यों के कुशलक्षेम की कामना करता हूँ।