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भारत के ज्ञान का मूल सार विश्व कल्याण है, राष्ट्र के विकास के लिए हर संभव प्रयास करते रहना होगा-सुनील आंबेकर

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विश्व की सबसे प्राचीन नगरी कही जाने वाली वाराणसी में “काशी शब्दोत्सव” का आयोजन ” विश्व संवाद केंद्र” ने किया। इस अवसर पर देशभर से पहुंचे साहित्यकारों, लेखकों, भारतीय सिनेमा से जुड़ी हस्तियों ने अपने विचार रखे। रुद्राक्ष इंटरनेशनल कन्वेंशन सेंटर में आयोजित काशी शब्दोत्सव में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने कहा कि भारत किस ओर जा रहा है वर्तमान में इस बात का मंथन होना जरूरी है, ज्ञान भ्रम को दूर करता है काशी शब्दोत्सव इसमें मार्गदर्शक की भूमिका निभाएगा। उन्होंने कहा कि भारत की सभ्यता संस्कृति को देखने से पता चलता है कि यहां की समानता को समझना, एकता के निर्माण की प्रक्रिया पर चर्चा, संवाद जरूरी है। भारत का ज्ञान का मूल सार विश्व कल्याण है। आंबेकर ने कहा कि राष्ट्र के विकास के लिए हर संभव प्रयास करते रहना होगा। भारतीय ज्ञान को प्रकट होने का यही उचित समय है। काशी शब्दोत्सव में इन सब विषयों पर मंथन हुआ। इस अवसर पर पद्मश्री राजेश्वर आचार्य ने काशी के महत्व पर आधारित कुछ पंक्तियां गुनगुनाकर शब्दों के महत्व को दर्शाया। उन्होंने बनारसी भाषा शैली, मौजमस्ती के उदाहरण देते हुए काशी शब्दोत्सव को एक मील का पत्थर बताया। 


काशी शब्दोत्सव के उद्घाटन सत्र में अपने विचार रखते हुए केरल के राज्यपाल डॉ. आरिफ मोहम्मद खान ने कहा कि गुरु रविंद्र नाथ टैगोर ने शब्द के महत्व के बारे में बताते हुए कहा था कि भारत की संस्कृति ज्ञान पर आधारित है, शब्द अक्षर से बनता है, शब्द ही भारत की आत्मा और संस्कृति को परिभाषित करता है। उन्होंने कहा कि स्वामी विवेकानंद ने भी कहा था कि हमारी संस्कृति आदि काल से ज्ञान पर आधारित रही है, हम शब्द की शक्ति का उत्सव मनाने के लिए शिव की नगरी काशी में एकत्र हुए हैं, जोकि सबसे उपयुक्त स्थान है। उन्होंने नई तकनीक के माध्यम से शब्दों को सहेजने पर जोर देते हुए कहा कि कंप्यूटर इसमें कारगर भूमिका निभा रहा है।