हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल ने कहा कि पुस्तकों में विदेशी शब्द के स्थान पर ‘भारत’ का उपयोग साबित करता है कि भारत के चिंतन और भारतीय परम्परा की शुरूआत हो गई है. ठाकुर रामसिंह इतिहास शोध संस्थान के प्रयासों से प्रकाशित पुस्तकें न केवल भारत की नई शिक्षा नीति के अनुरूप हैं, बल्कि इनके माध्यम से भारत का चिंतन और भारतीय परम्पराओं को भी बल मिलेगा.
राज्यपाल शिमला स्थित ऐतिहासिक गेयटी थिएटर में ठाकुर रामसिंह इतिहास शोध संस्थान नेरी व गरुड़ प्रकाशन के संयुक्त प्रयासों से प्रकाशित आचार्य भागचन्द चौहान की पुस्तक ‘आईकेएस-दी नॉलेज सिस्टम ऑफ भारत’ और आचार्य कंवर चन्द्रदीप व राजीव कुमार द्वारा संपादित पुस्तक ‘एन एंथोलॉजी डिस्कोर्स ऑन भारत’ पुस्तक के विमोचन कार्यक्रम में संबोधित कर रहे थे.
उन्होंने कहा कि इस प्रकार के कार्य देश की स्वतंत्रता के साथ ही शुरू होने चाहिए थे, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया. लेकिन अब ऐसे कार्यों को बढ़ावा मिलना आवश्यक है, जिससे दुनिया में बढ़ रहे भारतीय ज्ञान, विचार के प्रसार को सही दिशा दी जा सके.
नेरी शोध संस्थान के निदेशक डॉ. चेतराम गर्ग ने संस्थान की भूमिका का वर्णन करते हुए कहा कि भारत दुनिया को ज्ञान देने वाला रहा है, ये भागीरथी कार्य है. केन्द्रीय विश्वविद्यालय शाहपुर परिसर में भौतिकी विभाग के निदेशक आचार्य भाग चंद चौहान और इतिहास विभाग के अध्यक्ष आचार्य कंवर चंद्रदीप और उनके विभाग के ही सहायक आचार्य डॉ. राजीव कुमार द्वारा पांच वर्षों के अथक प्रयास के बाद इन पुस्तकों का लेखन सम्भव हो पाया है. पुस्तकों में भारतीय ज्ञान व परम्परा को पूरे शोध और संदर्भ के साथ लिखा गया है.
मूल रूप से हमीरपुर झण्डवीं के रहने वाले संस्थान के संस्थापक स्व. ठाकुर रामसिंह लाहौर में वर्ष 1942 में इतिहास का अध्ययन कर रहे थे तो उन्होंने पाया कि इतिहास को दो प्रकार से पढ़ाया जा रहा था. एक इतिहास था पेपर में अच्छे अंक प्रदान करने वाला. वहीं दूसरा वह इतिहास था, जिसे शिक्षक उन तक पहुंचाने का प्रयास करते थे. जब ठाकुर राम सिंह ने इतिहास पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्रीगुरू जी के विचार सुने तो वास्तविक इतिहास के बारे में उनके मन की दुविधा समाप्त हो गई. आगे चल कर 88 वर्ष की आयु में उन्होंने हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले के नेरी में इतिहास शोध संस्थान की स्थापना की, जिसे आज ठाकुर रामसिंह इतिहास शोध संस्थान के नाम से जाना जाता है. संस्थान द्वारा भारत के इतिहास का भारतीय मापदंडों के अनुरूप लेखन का प्रयास शुरू हुआ. मानव व प्रकृति का इतिहास, उसका कालक्रम, इतिहास संशोधन, प्राच्य विधा एवं वैज्ञानिक शोध, भारतीय कालक्रम और समाज जागरण का कार्य अब भी निरंतर जारी है और नई शिक्षा नीति के संदर्भ में यह कार्य और भी आवश्यक हो गया है.
हरियाणा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के अध्यक्ष प्रो. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री बतौर विशिष्ट अतिथि कार्यक्रम में उपस्थित रहे और हिमाचल प्रदेश केन्द्रीय विश्वविद्यालय धर्मशाला के कुलपति प्रो. सतप्रकाश बंसल ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की. कार्यक्रम का शुभारंभ सरस्वती विद्या मंदिर के विद्यार्थियों द्वारा सरस्वती वंदना के साथ किया गया. हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय की सहायक आचार्य डॉ. प्रियंका वैद्य और डॉ. अंकुश भारद्वाज ने दोनों पुस्तकों की सारगर्भित समीक्षा प्रस्तुत की और पुस्तकों में उपलब्ध विषय सामग्री को भारतीय चिंतन व तथ्य परक, रूचिकर तथा ज्ञान का अद्भुत भंड़ार बताया.