महाकुम्भ नगर। हिन्दू आध्यात्मिक एवं सेवा संस्थान के तत्वाधान में मातृ-पितृ वंदन एवं प्रकृति वंदन कार्यक्रम संपन्न हुआ। महाकुम्भ मेला क्षेत्र के सेक्टर 8 स्थित आध्यात्मिक एवं सेवा मंडपम में रविवार को संपन्न गोष्ठी में वक्ताओं ने मातृ वंदन एवं प्रकृति वंदन को भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग बताया।
मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह व्यवस्था प्रमुख अनिल ओक जी ने संस्कृति, धर्म तथा अध्यात्म की व्याख्या करते हुए कहा कि समाज एवं राष्ट्र के लिए किया जाने वाला कार्य धर्म तथा अपने लिए किया जाने वाला कार्य कर्म कहलाता है। अपने स्वरूप को जानना ही अध्यात्म है। लंबे अनुभव के बाद स्थापित मूल्यों के आधार पर जीवन चलाना संस्कृति है। मूल्य और कीमत में मूलभूत अंतर यह है कि मूल्य स्थापित किए जाते हैं, जबकि कीमत चुकाई जाती है।
विज्ञान भौतिक चीजों को तो जान गया है, किंतु मनुष्य के वास्तविक स्वरूप को अभी तक नहीं जान पाया है। भारतीय संस्कृति एवं अध्यात्म मनुष्य के स्वरूप को जानने पर बल देते हैं। उन्होंने धर्म के मर्म को समझने के लिए वीर सावरकर तथा चाफेकर बंधु के मार्ग का अनुसरण करने पर बल दिया।
विशिष्ट अतिथि प्रांत प्रचारक रमेश जी ने कहा कि प्राचीन काल से देश के संत-महात्मा एवं ऋषि मुनि कुम्भ मेले में आकर मानव मात्र के दुखों को दूर करने का उपाय खोजते थे तथा यहां से प्राप्त निष्कर्षों को समाज तक पहुंचाते थे। भिन्नता होने के बावजूद जीवन मूल्य सबके एक रहे हैं। वैज्ञानिकों ने गॉड पार्टिकल की खोज आज की है, जबकि हमारे ऋषियों-मुनियों ने पहले ही यह खोज लिया था कि कण कण में ईश्वर विद्यमान है।
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रोफेसर गिरीश चंद्र त्रिपाठी ने कहा कि कुछ लोगों द्वारा यह भ्रम फैलाया गया कि हमारे देश की धार्मिक संस्थाएं सेवा कार्य नहीं करती, जबकि यह पूरी तरह असत्य है। वास्तविकता यह है कि मठ मंदिरों एवं धार्मिक संस्थाओं द्वारा समाज में निरंतर सेवा के कार्य संचालित किए जाते हैं। इन चीजों का प्रचार प्रसार नहीं किया जाता था। प्रकृति हमारी पूरक है, पेड़ जल वायु जिस दिन नष्ट हो जाएंगे उसी दिन मनुष्य भी नष्ट हो जाएगा। इसलिए इनका सम्मान करना, इनका वंदन, संरक्षण अनिवार्य है।
अनामिका चौधरी ने सभी को प्रकृति रक्षण की प्रतिज्ञा कराई। सैकड़ों की संख्या में उपस्थित लोगों को तुलसी, एलोवेरा आदि के पौधे वितरित किए गये।
हिन्दू आध्यात्मिक एवं सेवा कुंभ शिविर प्रमुख महेश्वर जी ने मातृ-पितृ वंदन की भूमिका रखी। कार्यक्रम का संचालन विंध्यवासिनी त्रिपाठी जी एवं धन्यवाद ज्ञापन संस्थान के सचिव नागेंद्र जी ने किया।