कोलकाता के अलीपुर स्थित भाषा भवन में आयोजित प्रेस वार्ता में कहा कि हिन्दुओं पर जगह-जगह हो रहे जिहादियों के हमलों पर मौन साधे राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी यह तो कहती हैं कि ये हमले पूर्व नियोजित थे, जिनमें विदेशी बांग्लादेशियों का हाथ है और यह मामला अंतरराष्ट्रीय है। किंतु, फिर भी घटना की NIA से जांच की मांग क्यों नहीं करतीं? विहिप का मानना है कि पीड़ित हिन्दुओं को न्याय मिलना चाहिए और हमलावर जिहादियों को कठोर दंड। जिनकी संपत्ति लूटी गई है, जलाई गई है या खंडित की गई है, उसकी अविलंब भरपाई हो और राज्य में हिन्दुओं को सुरक्षा मिले।
आलोक कुमार ने कहा कि किसी ना किसी मुद्दे पर देश भर में विरोध प्रदर्शन तो होते ही रहते हैं। किंतु, उन प्रदर्शनों के नाम पर हिन्दुओं पर हमले और उनकी नृशंस हत्याएं, पिछले कुछ वर्षों में बंगाल में एक चलन सा बन गई हैं। यह सरकारी उदासीनता व अतिवादी और असामाजिक तत्वों को सत्ताधारी दल के प्रत्यक्ष या परोक्ष समर्थन के बिना संभव नहीं है। अतः इस बात की भी जांच होनी चाहिए कि विरोध चाहे किसी से भी हो प्रदर्शकारी हिन्दुओं को ही टारगेट क्यों करते हैं?
मुर्शिदाबाद से मालदा में निर्वासित जीवन जीने को मजबूर हिन्दू समाज की दुखती रग़ पर मरहम लगाने या उन्हें सांत्वना देने की बात तो दूर, सरकार द्वारा उन पीड़ित हिन्दू बहन, बेटियों, बच्चों, बुजुर्गों व अन्य लोगों की सहायतार्थ जो समाज सेवी संगठन आगे आए थे, उनको भी खाना, पानी, भोजन या अन्य प्रकार की जीवन की जरूरी सुविधा देने का प्रयास कर रहे थे, उस पर भी शासन का कहर टूट पड़ा। उनको भी सहायता करने से शासन ने मना कर दिया है। वे कहते हैं कि राहत सामग्री हमें दो, हम सामग्री बाटेंगे। यह किस तरह का व्यवहार है? क्या यह मानवीय जीवन मूल्यों से एक खिलवाड़ नहीं! यदि शासन को खुद ही बांटना होता तो फिर समाज सेवी संस्थाएं को आगे ही क्यों आना पड़ता।
उन्होंने कहा कि अनेक ऐसे पीड़ित परिवारों को, सरकार अपनी कमी छिपाने के लिए, जबरन मुर्शिदाबाद वापस भेज रही है। जबकि परिवार कह रहे हैं कि जब तक वहां पर केंद्रीय सुरक्षा बलों द्वारा सुरक्षा की पुख्ता व्यवस्था न हो, हमारा जीवन खतरे में है। हम जान जोखिम में डाल कर वहां नहीं जाएंगे। किंतु, राज्य सरकार द्वारा हिन्दुओं को जबरन उन भेड़ियों के सामने फेंकना क्या उन्हें जीते जी मारने जैसा नहीं? अपने इस निर्णय पर राज्य सरकार पुनर्विचार करे।