बर्फीले क्षेत्र में रहने
वाले रं समुदाय के प्रयास की चर्चा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने लोकप्रिय
कार्यक्रम मन की बात में कर चुके हैं. न सिर्फ अपनी कला, संस्कृति और बोली को संजोए रखने के लिए निरंतर प्रयासरत हैं, बल्कि इनका परस्पर सहयोग और सामाजिक सहभागिता हर समाज के लिए प्रेरणादायक है.
इतना ही नहीं ये देश की सीमा पर तैनात एक तरह से अवैतनिक प्रहरी हैं, जो भारत सरकार के लिए आंख-कान की तरह काम करते हैं.रं समुदाय ने अब एक और
प्रेरक काम किया है.
अनेक शताब्दियों से
कुमाऊं की नेपाल और तिब्बत सीमा से लगी इस धारचूला तहसील की व्यांस, चौंदास और दारमा घाटियों में रं समाज की बसासत है. कुमाऊं में इस समाज की सांस्कृतिक और सांगठनिक एकता की
मिसाल दी जाती है.
कु छ ही दिन पहले रं समाज की
एक प्रतिनिधि संस्था द्वारा पिथौरागढ़ की घाटियों में होने वाली शादियों में कुछ नए
साकारात्मक नियम बनाए गए हैं।
रं समाज ने जो नियम बनाए
हैं वो कुछ इस तरह हैं-
1
शगुन की रकम एक
रुपया तय की गई है.
2
बारात के लिए
रास्ते में न जनवासे का बंदोबस्त होगा न शराब का
3
समारोहों में न
डीजे बजेगा न शराब परोसी जाएगी.
गौरतलब है कि उत्तराखंड
में रहने वाले रं समाज में दहेज़ प्रथा पहले से नहीं रही है. अब बनाए गए इन नए
नियमों से गरीब और धनवान, दोनों ही परिवारों की युवतियों और युवाओं की
शादी एक तरह से ही होंगी. रं समाज ने अपने
नियमों का सख्ती के पालन कराने के लिए जुर्माने का प्रावधान रखा है. जो भी ये नियम
तोड़ेगा उसे आर्थिक दंड भरना पड़ेगा. मंगलवार 17 जनवरी 2023 से ये नियम लागू भी हो
गए हैं.
विषम भौगोलिक परिस्थिति
में जीवन जीने वाले रं लोग भारत चीन युद्ध के समय बहुत बड़े संकटों को झेला
परंतु इस समाज के लोगों
ने हार नहीं मानी. शिक्षा के प्रति अपनी अभिरुचि बढ़ा आज वे सरकारी महकमों में
ऊंचे पदों पर तैनात हैं. सबसे बड़ी विशेषता यह है कि देश, विदेश में कहीं भी रहें, परंतु अपने समाज, बोली, भाषा और लोकजीवन नहीं छोड़ते हैं.