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उत्‍तराखण्ड: प्रकृति संरक्षण और सेवा भाव की मिसाल हैं गीता, 1.60 लाख पौधे निःशुल्क वितरित

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प्रकृति, समाज और सेवा भाव के लिए अपना जीवन समर्पित कर देने वाली गीता आज अपने क्षेत्र के लिए स्वाभिमान और प्रेरणास्रोत हैं। 54 वर्षीय गीता पिछले 30 वर्षों से बिना किसी स्वार्थ के समाज कार्यों को जारी रखे हुए हैं।  देहरादून उत्तरकाशी जिले की गीता राज्य आंदोलन में भी भाग लेकर जेल जा चुकी हैं।  पेड़ पौधों के प्रति उनका लगाव इसी बात से जाहिर होता है कि वह गांव में ही नर्सरी लगाकर अब तक 1.60 लाख से अधिक पौधे निःशुल्क वितरित कर पौधरोपण में अग्रणी रही हैं। साथ ही वह गंगा स्वच्छता में भाग लेने के साथ स्वदेशी वस्तुओं का प्रचार कर उन्हें अपनाने के लिए आवाहन कर रही हैं।

इसके अलावा वह बीमार व घायल पशुओं के इलाज के लिए दिन रात सक्रिय रहती हैं। प्रकृति संरक्षण के साथ ही वह युवाओं को नशे से दूर करने के लिए नशा मुक्ति आंदोलन से जुड़ी हैं। इसके लिए वह सरकार की योजनाओं को जन-जन तक पहुंचा रही हैं। इलाके की अन्य समस्याओं जैसे बूचड़खाने के विरोध में भी गीता का आंदोलन चल रहा है। क्षेत्र में वर्ष 2004 में 24 बूचड़खाने थे, जिनकी गंदगी नदी में जा रही थी। इससे न केवल क्षेत्रवासी बल्कि यहां आने वाले यात्री भी परेशान रहते हैं। ऐसे में बूचड़खानों को हटाने के वह आंदोलनरत हैं।

उत्तरकाशी जिले के भटवाड़ी ब्लॉक स्थित जोशियाड़ा ग्राम न्यू लादाड़ी की निवासी गीता गैरोला गंगा स्वच्छता से लेकर, पौधरोपण, सेवाभाव आदि समाज कार्यों में रत हैं। इसके अलावा वह मीठे स्वर में गढ़वाली गीतों के जरिये युवाओं को नशे की लत से दूर रहने, कल्याणकारी योजनाओं को लोगों तक पहुंचाने, जंगली जानवरों के आतंक से निजात दिलाने के लिए अधिकारियों तक बात पहुंचाने के कार्यों में भी सक्रिय हैं। गीता में समाजसेवा की भावना बचपन से रही है। यही नहीं उन्होंने साल 1994 में पृथक राज्य आंदोलन में महिलाओं के साथ धरना-प्रदर्शन में भाग लिया था। इसके चलते उन्हें जेल भी जाना पड़ा था। इस तरह समाज सेवा और प्रकृति संरक्षण में सक्रियता के लिए प्रदेश सरकार ने उन्हें तीलू रौतेली पुरस्कार प्रदान किया है।