‘हिन्दुइज़्म’ (Hindu‘ism’) शब्द का उपयोग हिन्दू व हिन्दुत्व पर आघात
विश्व हिन्दू कांग्रेस (World Hindu Congress) में हिन्दुत्व को अंग्रेज़ी भाषा में ‘हिन्दुइज़्म’ (Hindu‘ism’) कहे जाने के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया. प्रस्ताव में कहा कि यह पूरी दुनिया के हिन्दू समुदाय और उनकी अच्छाई पर आघात है. थाईलैंड की राजधानी में आयोजित तीसरी विश्व हिन्दू कांग्रेस के पहले दिन शुक्रवार को देर शाम आखिरी सत्र में इस आशय का प्रस्ताव पारित किया गया. प्रस्ताव में कहा गया कि हिन्दुत्व को अंग्रेज़ी भाषा में ‘हिन्दुइज़्म’ नहीं, बल्कि ‘हिन्दूनेस’ कहा जा सकता है.
प्रस्ताव में कहा गया कि “हिन्दू धर्म” शब्द में पहला शब्द, “हिन्दू” एक अपरिमित शब्द है. यह दर्शाता है जो सनातन या शाश्वत है. और फिर धर्म है, जिसका अर्थ है “वह, जो कायम रखता है”. इस प्रकार, हिन्दू धर्म उस सब का प्रतीक है जो शाश्वत रूप से सब कुछ धारण करता है, एक व्यक्ति, एक परिवार, एक समुदाय, एक समाज और यहां तक कि प्रकृति – सजीव और निर्जीव दोनों. इसके विपरीत, हिन्दुइज़्म पूरी तरह से अलग है क्योंकि इसमें “इज़्म” जुड़ा हुआ है. “इज़्म” शब्द को एक दमनकारी और भेदभावपूर्ण रवैये या विश्वास के रूप में परिभाषित किया गया है. उन्नीसवीं सदी के मध्य में अमेरिका में, “इज़्म” वाक्यांश का उपयोग सामूहिक रूप से कट्टरपंथी अपमानजनक तरीके से आध्यात्मिक या धार्मिक और सामाजिक सुधार आंदोलनों तथा विभिन्न गैर-मुख्यधारा को संदर्भित करने के लिए किया गया था. “हिन्दुइज्म” शब्द को ऐसे संदर्भ में समझा जाना चाहिए.
प्रस्ताव में कहा गया कि “हिन्दुइज़्म ” शब्द को लोकप्रिय शब्दकोष में सर मोनियर-मोनियर विलीमास ने अपनी हैंडबुक हिन्दू धर्म के माध्यम से पेश किया था. यह पुस्तिका 1877 में ईसाई ज्ञान को बढ़ावा देने के लिए सोसायटी द्वारा प्रकाशित की गई थी. यह बौद्धिक बेईमानी है. पिछले 150 वर्षों में क्रूर हिन्दू-विरोधी आख्यानों के पीछे ऐसी शब्दावली ही बीज है. ऐसे कारणों से ही हमारे बुजुर्गों ने हिन्दुइज़्म की तुलना में “हिन्दुत्व” शब्द को प्राथमिकता दी, क्योंकि पहला शब्द अधिक सटीक है. इसमें “हिन्दू” शब्द के सभी अर्थ शामिल हैं. हिन्दुत्व कोई जटिल शब्द नहीं है. इसका सीधा सा अर्थ है ‘हिन्दूनेस’.
प्रस्ताव में कहा गया कि दूसरों ने हिन्दुत्व की जगह वैकल्पिक शब्द “सनातन धर्म” उपयोग किया, जिसे अक्सर “सनातन” के रूप में संक्षिप्त किया जाता है. यहां “सनातन” शब्द हिन्दू धर्म की शाश्वत प्रकृति को इंगित करने वाले विशेषण के रूप में कार्य करता है. सार्वजनिक चर्चा में कई शिक्षाविद् और बुद्धिजीवी नियमित रूप से हिन्दुत्व को हिन्दू धर्म के विपरीत, यानी बेहद नकारात्मक रूप से चित्रित करते हैं. उनमें से कुछ लोग अपनी अज्ञानता के कारण ऐसा तर्क करते हैं. लेकिन अधिकांश लोग हिन्दू धर्म के प्रति अपनी गहरी नफरत और पूर्वाग्रहों के कारण हिन्दुत्व विरोधी हैं. राजनीतिक एजेंडे और व्यक्तिगत पूर्वाग्रहों से प्रेरित कई राजनेता भी उस समूह में शामिल हो गए हैं और लगातार और तीक्ष्णता से सनातन धर्म की आलोचना कर रहे हैं.
प्रस्ताव में कहा, “वैश्विक हिन्दू समुदाय की ओर से विश्व हिन्दू कांग्रेस यह घोषणा करती है कि हिन्दुत्व, या सनातन धर्म, या सनातन, या हिन्दू धर्म की दुर्भावनापूर्ण आलोचना वास्तव में हिन्दू समाज और उसमें जो कुछ भी सुंदर, न्यायपूर्ण, अच्छा और महान है, उसे लक्षित करती है. वास्तव में, ये अच्छाई के ख़िलाफ़ ही हमले हैं. विश्व हिन्दू कांग्रेस ऐसे हमलों की कड़ी निंदा करती है और दुनियाभर के हिन्दुओं से संगठित वैश्विक प्रयासों के माध्यम से हिन्दुत्व की अभिव्यक्ति के लिए आग्रह करती है, और ऐसे हिन्दू विरोधी हमलों और कट्टरता में शामिल लोगों पर काबू पाने का आग्रह करती है ताकि हम विजयी हों.”
हिन्दुओं की एक प्रगतिशील और प्रतिभा संपन्न समाज के रूप में पहचान स्थापित करने के उद्देश्य से तीन दिन चलने वाली तीसरी विश्व हिन्दू कांग्रेस का शुक्रवार प्रातः भव्य शुभारंभ हुआ. उद्घाटन सत्र में ‘धर्म की विजय’ के उद्घोष के साथ प्रख्यात संत माता अमृतानंदमयी, भारत सेवाश्रम संघ के स्वामी पूर्णात्मानंद, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहनराव भागवत, सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले, विश्व हिन्दू परिषद के महामंत्री मिलिंद परांडे तथा वर्ल्ड हिन्दू फाउंडेशन के संस्थापक एवं सम्मेलन के सूत्रधार स्वामी विज्ञानानंद द्वारा दीप प्रज्ज्वलन किया गया. उद्घाटन सत्र में मेजबान देश के प्रधानमंत्री शित्ता थाविसिन को भाग लेना था, लेकिन किन्हीं कारणों से वह नहीं आ सके. पर सभा में थाई प्रधानमंत्री का संदेश पढ़ा गया.
विश्व हिन्दू कांग्रेस में दुनिया के 61 देशों से आमंत्रित 2200 से अधिक ऐसे प्रतिनिधियों का जमावड़ा हुआ है जो शिक्षा, अर्थतंत्र, अकादमिक, अनुसंधान एवं विकास, मीडिया और राजनीति के क्षेत्र में उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की हैं. इनमें से करीब 30 देशों के सांसद एवं मंत्री शामिल हैं. थाईलैंड में भारतीय समुदाय के करीब 10 लाख लोग रहते हैं, जिनका देश के व्यापार और आर्थिक विकास में योगदान उल्लेखनीय है.