जालौन,यूपी
जालौन के जिला जेल में बंद महिलाएं अब भाषा, विशेषकर हिंदी, अंग्रेजी सीखने में जुटी हैं।
जालौन की जिला जेल की दीवारों के पीछे अब केवल सजा नहीं, बल्कि संस्कार, शिक्षा और आत्मनिर्माण का माहौल भी बन रहा है। जेल में बंद महिलाएं अब भाषा और ज्ञान के वजह से एक नई पहचान बना रही हैं। जानकारी के अनुसार जिला जेल प्रशासन और शिक्षा विभाग की पहल से यहाँ रह रही महिला बंदियों को पढ़ाई का अवसर दिया जा रहा है, ताकि वे जब बाहर जाएं तो एक बेहतर और सम्मानपूर्ण जीवन जी सकें।
32 महिलाएं कर रहीं पढ़ाई
जेल में कुल 32 महिला बंदी हैं, जिनमें से 20 महिलाएं हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाएं सीख रही हैं। यह
पहल केवल पढ़ाई तक सीमित नहीं है। महिलाएं अब संवाद, व्यवहार और जीवन जीने के मूलभूत संस्कार भी सीख रही हैं। उन्हें
रोजमर्रा की भाषा, शुद्ध
उच्चारण, सही ढंग से बात
करने का तरीका और लिखने-पढ़ने की बारीकियाँ सिखाई जा रही हैं।
सजा नहीं, जीवन
को सुधारने का मंच
जेल अधीक्षक और शिक्षा विभाग के अधिकारियों का मानना है कि जेल में बंद हर महिला को यह मौका मिलना चाहिए कि वह अपने जीवन को दोबारा सुधार सके। शिक्षा वह पहला कदम है जो आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता की ओर ले जाता है। इसी सोच के साथ जेल प्रशासन ने यह पहल शुरू की है।
महिलाओं में दिख रहा बदलाव
शिक्षक बताते हैं कि पहले महिलाएं हिचकती थीं, लेकिन जब उन्हें समझाया गया कि यह शिक्षा उनके भविष्य के लिए है, तो उन्होंने खुलकर भाग लेना शुरू किया। अब महिलाएं स्वंय समय पर कक्षा में आती हैं, पढ़ाई करती हैं और अपने अनुभव भी साझा करती हैं। इस पहल ने महिलाओं के जीवन में नई ऊर्जा और आशा की किरण जगाई है। वे अब खुद को सिर्फ एक अपराधी नहीं, बल्कि एक नई शुरुआत करने वाली महिला के रूप में देख रही हैं। शिक्षा के इस नए द्वार ने उन्हें यह विश्वास दिया है कि जेल से बाहर निकलने के बाद वे समाज में सम्मानपूर्वक जीवन जी सकती हैं। जालौन की जिला जेल आज एक मिसाल बन गई है, जहाँ जेल प्रशासन ने महिलाओं को शिक्षा के जरिए दूसरा मौका दिया है। यह पहल न केवल उनके जीवन को बदल रही है, बल्कि पूरे समाज के सामने एक सकारात्मक संदेश भी दे रही है—कि हर व्यक्ति बदलाव का हकदार है, बस ज़रूरत है एक सही दिशा की।