संघ जैसा मैंने देखा - डॉ. अतुल कोठारी जी
(डॉ. अतुल कोठारी जी से एक विशेष साक्षत्कार) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक एवं शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय सचिव मा. डॉ. अतुल भाई जी कोठारी से केशव संवाद पत्रिका की कार्यकारी संपादक डॉ. नीलम कुमारी द्वारा लिए गए विशेष साक्षात्कार में जिन्होंने संघ को व्यक्ति निर्माण का उद्योग बताते हुए तीन ध्येय वाक्यों के माध्यम से देश एवं समाज को बहुत बड़ा संदेश दिया है
1. समस्या
नहीं, समाधान की बात करें
2. मां, मातृभूमि और मातृभाषा का कोई विकल्प नहीं
3. समाज को बदलना है तो
शिक्षा को
बदलना होगा। प्रस्तुत है साक्षात्कार कुछ प्रमुख अंश –
अपना पूरा जीवन संघ को आ समर्पित क समर्पित कर दिया। आपने राष्ट्रीय
स्वयंसेवक संघ की जीवन शैली को अपने जीवन में समाहित किया और उसके मार्ग पर चलते
हुए शिक्षा के क्षेत्र में कार्य कर भारतीयता को पुनः स्थापित कर भारतीय ज्ञान
परम्परा को आगे बढ़ाते हुए भारत को विश्व गुरु बनाने में आप महती भूमिका निभा रहे
हैं। सबसे पहले हम आपसे जानना चाहते हैं कि शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास का गठन
कब और किस उद्देश्य से हुआ ?
शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास का प्रारंभ शिक्षा बचाओ आंदोलन 2 जुलाई
2004 से हुआ और यह किसी एक व्यक्ति ने नहीं किया है बल्कि देश भर के लगभग 90
शिक्षाविद दिल्ली में इकट्ठे हुए थे और उन्होंने शिक्षा बचाओ आंदोलन प्रारंभकिया
जो देश की शिक्षा में विसंगतियां और कुरीतियां आ गई थी उसे दूर करने के लिए और उस
समय तत्कालीन सरकार ने पाठ्यक्रम में गलत बातों को डालना शुरू कर दिया था जिससे
हमारे धर्म, हमारी संस्कृति, हमारे महापुरुष, हमारी परंपराएं
और हमारी भाषा सबको अपमानित करने वाली बातें थी इन सबको पाठ्यक्रम लाने का प्रयास
किया जा रहा था, तब देश के शिक्षाविदों ने देश में शिक्षा बचाओ आंदोलन शुरू किया।
शिक्षा बचाओ आंदोलन स्वतंत्र भारत का एक बहुत सफल आंदोलन माना जाएगा, क्योंकि
हमने 12 न्यायालयों में वाद दाखिल किया और वह 12 अलग-अलग केस थे जिनका रिजल्ट
शिक्षा बचाओ आंदोलन के पक्ष में आया। तत्कालीन सरकार हमारी बात सुनने के पक्ष में
नहीं थी फिर अंत में हमने न्यायालय का सहारा लिया और उसमें हमें सफलता मिली। उसमें
हमने चिंतन किया कि सिर्फ विकृतियों और विसंगतियों को दूर करने से समग्र देश की
शिक्षा में बदलाव नहीं आएगा तो इसके साथ सकारात्मक कार्य करने की आवश्यकता भी है।
शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास का 2007 में गठन किया गया जो देश में शिक्षा के नए विकल्प
देना, शिक्षा संस्कृति
उत्थान न्यास का मूल लक्ष्य है। विकल्प की बात इसलिए हमने की क्योंकि किसी भी
क्षेत्र में गलत कहना आसान होता है लेकिन विकल्प देना बहुत मुश्किल। इस दिशा में
न्यास कार्य कर रहा है।
सिर्फ सिलेबस मात्र को बदलने से काम नहीं चलेगा प्रत्यक्ष प्रेक्टिकल, अनुभव के साथ ही कार्य करना होगा। साथ ही एक ऐसा पाठ्यक्रम तैयार करना होगा, एक प्रतिमान तैयार करना होगा जो बातें देशव्यापी शिक्षा में हो। इस प्रकार का लक्ष्य शिक्षा संस्कृत उत्थान न्यास का है। शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास ने अभी जो राष्ट्रीय शिक्षा नीति आई है उसके क्रियान्वयन पर पूरा ध्यान केंद्रित किया है। वर्षों से वो सारी बातें जिनकी हम मांग कर रहे थे, जो बातें इस शिक्षा नीति में आ गई हैं। अब हम शिक्षानीति को जमीनी स्तर पर, क्रियान्वयन पर, इंप्लीमेंटेशन पर सब मिलकर कार्य करें यह कार्य महत्व का है। भारतीय ज्ञान परंपरा को केंद्रित करके हम जो कार्य कर रहे हैं उसमें भारतीय ज्ञान परंपरा के विभिन्न विषयों को लेकर आधुनिकता का समन्वय करते हुए देश में एक नई व्यवस्था आए इस दिशा में हम सभी कार्य कर रहे हैं।
आपकी दृष्टि में संघ क्या है?
संघ का जो मुख्य कार्य है, कहा जा सकता है कि संघ व्यक्ति निर्माण
का उद्योग है। संघ ने इस शताब्दी वर्ष तक लाखों ऐसे लोगों का निर्माण किया है जो
आज देश के विभिन्न क्षेत्रों में नेतृत्व कर रहे हैं। किसी भी क्षेत्र को संघ ने
छोड़ा नहीं है। शिक्षा का क्षेत्र हो, आर्थिक क्षेत्र हो, राजनीतिक
क्षेत्र हो, कला का क्षेत्र हो, सभी शीर्षस्थ क्षेत्रों में नेतृत्व
करने वाले लोग राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक हैं। अर्थात् विभिन्न समूह की
बात करें तो वनवासी क्षेत्र है, मजदूरों का क्षेत्र है, विद्यार्थियों
का क्षेत्र है, शिक्षा का क्षेत्र है, शिक्षकों का क्षेत्र है। सभी क्षेत्रों
में संघ से निकले स्वयंसेवकों ने विभिन्न प्रकार के संगठन खड़े किए हैं। कुछ संगठन
तो ऐसे हैं जो अंतरराष्ट्रीय स्तर के संगठन बन गए हैं। जो देश में सुधार के लिए
प्रयासरत हैं और समाज में परिवर्तन का नेतृत्व कर रहे हैं। तो ऐसे संघ की एक घंटे
की जो शाखा है
यह उसका परिणाम है। यह मुख्य कार्य है संघ का मेरी दृष्टि में।
आपकी दृष्टि में संघ का मूल उद्देश्य क्या है?
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मूल उद्देश्य है भारत को परम वैभव पर ले
जाना और उसके माध्यम से विश्व कल्याण के मार्ग को प्रशस्त करना यह संघ का मूल
उद्देश्य है। राष्ट्र को परम वैभव पर ले जाने के लिए. राष्ट्र का पुनर्निर्माण
करने का माध्यम व्यक्ति है, तो ऐसे व्यक्तियों का निर्माण करना जो
राष्ट्र को परम वैभव पर ले जाएं और इसके माध्यम से विश्व कल्याण की ओर अग्रसर हाँ,
जो
कि हमारी संकल्पना है। ये जो हम वसुधैव कुटुंबकम् की बात करते हैं. उस तक पहुंचना
है। इसका उदाहरण हमने कोरोना में भी देखा है, कोरोना में जब
हमसे अमेरिका ने कुछ मेडिसिन की मांग की, अमेरिका को वैसे तो कोई मना नहीं कर
सकता लेकिन भारत ने कहा कि सबसे पहले हम अपने पड़ोसी देश जो गरीब हैं, हमारे ऊपर निर्भर हैं, उन लोगों का हम सहयोग करेंगे बाद में
हम आपको भी मेडिसिन देंगे, तो
यह भारत की संकल्पना है। विश्व गुरु बनने की या समृद्धशाली विकसित राष्ट्र बनाने
की यहीं मारत की भी संकल्पना है। भारत को शक्तिशाली सम्पन्न विकसित देश बनाना, भारत को विश्व गुरु तो बनाना है लेकिन
मारत को अमेरिका नहीं बनाना है। क्योंकि दुखी, पीड़ित, गरीब
देश जनता और लोगों की सेवा करना उनको आगे बढ़ाना, उनका सहयोग करना और विश्व कल्याण के मार्ग से विश्व शांति को पुनः स्थापित
करना यह संघ का उद्देश्य है और इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए पहले अपने देश को
खड़ा करना पड़ेगा। पहले हमारा भारत देश खड़ा होगा, हमारे देश के लोग खड़े होंगे तभी तो हमारे देश को वो विश्व गुरु के
मार्ग पर अग्रसर करेंगे। और इस दिशा में हम कदम बढ़ा चुके हैं।
संघ की कार्य पद्धति क्या है? व्यक्ति का निर्माण संघ की कार्य पद्धति के द्वारा ही होता है।
व्यक्तियों का निर्माण कैसे हो इसके लिए संघ की एक कार्य पद्धति है और भारत की भी
यहीं कार्य पद्धति रहीं है।
पहला है सामूहिकता सामूहिकता के अंदर बात आती है कि कोई भी व्यक्ति
बड़ा या छोटा नहीं है और किसी भी संगठन में जितनी सामूहिकता होगी उतनी ही कार्य
में सुंदरता बढ़ेगी।
दूसरा है पारस्परिकता एक दूसरे का सहयोग करना और एक दूसरे का सहयोग
करते हुए आगे बढ़ाना यह संप की कार्य पद्धति है और सभी लोग इसी कार्य पद्धति से
आगे बढ़ते हैं।
तीसरा है अनामिकता संप का कोई भी व्यक्ति अपने बारे में प्रचार नहीं
करता बल्कि यह कहे कि वह कितना भी बड़ा काम क्यों ना करें लेकिन अपना प्रचार कभी
नहीं करता। संघ में इतने बड़े-बड़े लोग रहकर चले गए जो भींव के पत्थर रहे परंतु
उन्होंने कभी अपने नाम की चिंता नहीं की, कभी अपना प्रचार नहीं किया यहीं अनामिकता है। और यहीं संघ की कार्य
पद्धति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
चौथा है पारदर्शिता लोग कहते हैं कि संघ को समझना है, तो हम कहते हैं संप को समझना है तो
शाखा में आइये। शाखा में आने पर किसी पर किसी पर कोई भी प्रतिबंध नहीं है कोई भी
व्यक्ति या किसी भी समाज का कोई भी व्यक्ति वहां आ सकता है। तो संघ में पूरी
पारदर्शिता है।
पांचवी है अनौपचारिकता सिर्फ फॉर्मल या औपचारिक रहने से काम नहीं
चलता है। अनौपचारिकता एक महत्वपूर्ण कार्यपद्धति है क्योंकि हम सभी एक परिवार की
तरह काम करते हैं और परिवार में कोई औपचारिकता नहीं होती। इस प्रकार की कार्य
पद्धति ही संघ का मूल आधार है। इस प्रकार की ही कार्य पद्धति व्यक्तियों की
कार्यशैली बननी चाहिए। संप में इसे कार्य पद्धति और स्वयंसेवकों में इसको
कार्यशैली कहते हैं। और इस प्रकार की कार्यशैली से संघ में स्वयंसेवक तैयार होते
हैं जो संघ के लिए समाज जीवन में सही नेतृत्व करते हुए विभिन्न क्षेत्रों में
दिखाई दे रहे हैं। आपातकालीन स्थिति में आप संघ को
और संघ के स्वयंसेवकों को कैसे देखते हैं? कई लोग जो संघ से परिचित नहीं हैं या
दूर से संघ को देखते हैं या अनावश्यक विरोध करते हैं तो वह कहते हैं कि संघ ने इस
देश के लिए क्या किया है? में
कहना चाहूंगा कि संघ की इस सी वर्षों की यात्रा में, जीवन के हर मोड़ पर आपको संघ खड़ा दिखाई देता है। चाहे वह बाढ़ आई
हो. आपदाएं आई हों, चाहे
विदेशी आक्रमण हुआ हो. चाहे भूकंप आया हो. चाहे एक्सीडेंट हुआ हो इस प्रकार की
विभिन्न आपदाओं में संघ का स्वयंसेवक हमेशा खड़ा दिखाई देता है। कोरोना में आपने
देखा होगा कि देश में सभी लोग भयभीत थे कि क्या करें और क्या ना करें ऐसे में भी
अपनी जान का जोखिम उठाते हुए संघ के लाखों-लाखों स्वयंसेवकों ने देश भर में कोरोना
से पीड़ित लोगों की सेवा की और अनेक प्रकार से सेवा के कार्य किये। समाज में एक
आत्मविश्वास जागृत किया कि इस विपरीतकालीन स्थिति में भी हम खड़े हो सकते हैं और
आगे बढ़कर कार्य कर सकते हैं। इस स्थिति में, कोई भी स्थिति में किसी भी परिस्थिति में चाहे वह आपातकालीन स्थिति
ही क्यों नहीं हो संघ का स्वयंसेवक हमेशा खड़ा दिखाई देता है। एक अच्छे स्वयंसेवक
में क्या गुण होने चाहिए?
सबसे पहले तो एक अच्छे स्वयंसेवक का सर्वोत्तम गुण होता है उसका
उत्कृष्ट चरित्र। दूसरा उसकी रग-रग में कण-कण में राष्ट्रभक्ति के संस्कार होते
हैं। संघ के स्वयंसेवक की यही मुख्य पहचान है। इसके कारण ही देश भर में संघ की
विश्वसनीयता बनी हुई है। राष्ट्रभक्त होना, समाज के प्रति संवेदनशील होना, चरित्रवान होना, इस
प्रकार सभी की छवि को आगे बढ़ाने का कार्य संघ के स्वयंसेवक करते हैं।
संघ के विभिन्न वैचारिक संगठनों का क्या उद्देश्य है?
समाज परिवर्तन का जो यह व्यापक कार्य है इसमें प्रमुख रूप से तीन
बातें आवश्यक हैं पहली बात व्यक्ति निर्माण की जो संघ का आधारभूत कार्य है। दूसरी
बात है जन आंदोलन खड़ा करना, आंदोलन का तात्पर्य रास्ते पर रैली निकालना,
या
मात्र धरना देना ही नहीं है बल्कि एक वैचारिक आंदोलन खड़ा करना है और व्यवस्था
परिवर्तन करना है। तो संघ के विभिन्न वैचारिक संगठन पूर्ण रूप से स्वायत्त एवं
स्वतंत्र हैं। बहुत बड़ी बात है संघ की शाखा से निकले स्वयंसेवक सेवा के कार्य कर
रहे हैं परंतु वह पूर्ण रूप से स्वायत्त एवं स्वतंत्र हैं। संघ जैसा आदेश देता है
वैसा वह कार्य करते हैं उनके अंदर मूल संस्कार हैं. और राष्ट्रमक्ति के संस्कार
हैं समाज के लिए संवेदनाएं हैं। भारत को परम वैभव ले जाने वाला यह मूल संस्कार को
दिए गए हैं इसके आधार पर विभिन्न क्षेत्रों में जिन-जिन क्षेत्रों में स्वयंसेवक
काम कर रहे हैं उन-उन क्षेत्रों में भारतीयता का जो मूल आधारभूत चिंतन है उस चिंतन
को आधार बनाते हुए आज की आधुनिकता से समन्वय बनाते हुए नई व्यवस्था देना यह कार्य
संघ के स्वयंसेवक कर रहे हैं। अगर मैं कहूं कि मैं शिक्षा के क्षेत्र में काम कर
रहा हूं तो शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास में हम सब यहीं कार्य कर रहे हैं कि जैसे
भारतीय ज्ञान परंपरा हमारी संवाद परम्परा है तो उसको आधार बनाते हुए देश की शिक्षा
में आधारभूत बदलाव लाने के उद्देश्य से परंपरागत एवं आधुनिकता का समावेश करते हुए
हम लोग यह कार्य कर रहे हैं। तो इस प्रकार विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न
स्वयंसेवक इसी प्रकार से कार्य कर रहे हैं संघ का मूल चिंतन अलग नहीं हे भारतीय
चिंतन सत्य सनातन चिंतन ही देश का चिंतन है और यहीं संघ का चिंतन भी है कुछ लोग
देश का चिंतन, संघ
का चिंतन यह अलग अलग मान लेते हैं जबकि दोनों का चिंतन एक ही है जिसमें भारत को
परम वैभव पर ले जाते हुए विश्व कल्याण का मार्ग प्रशस्त करना यही संघ का और यहीं
भारतीय चिंतन है।
आपका संघ का कोई ऐसा संस्मरण जिससे संघ को समझने में आपको बहुत
सहायता मिली हो?
वैसे तो संघ में छोटी उम्र में जब शाखा में जाते थे तो खेलते थे बड़ा
आनंद आता था और मित्र भी बनते थे,
पर ऐसा समय तब आया जब संघ को बहुत निकट से जानने का अवसर प्राप्त हुआ
जब गुजरात में मोरवी में एक बड़ी अनर्थ हुई। जब 1979 में बाढ़ आई उस समय हम काम के
लिए वहां गए हुए थे तो जो उस समय जो चित्र दिखा जिसमें हम लोग भी काम में सम्मिलित
थे इस प्रकार की बाढ़ आई कि कई व्यक्तियों की मृत देह पेड़ों पर लटकी हुई थी। और
दो चार पांच दिन हो गया तो उनमें से दुर्गंध भी आती थी ऐसी स्थिति में प्रशासन के
लोग भी वहां नहीं जा रहे थे ऐसी जगह संघ के स्वयंसेवकों ने जाकर सारे काम किए, तो यह संघ है सही अर्थों में समाज के
सुख-दुख में, हर
क्षण, हर पल, हर आपत्ति विपत्ति में संघ का
स्वयंसेवक आपको तत्पर खड़ा दिखाई देगा।
एक बड़े लेवल पर हमने यह अनुभव किया छोटे-मोटे लेवल पर तो हम अनुभव
करते ही हैं लेकिन महीनों तक, वर्षों तक काम किया। यहां संघ में ऐसी
अनेक घटनाएं हैं एक घटना और है जब कच्छ में भूकंप आया तो उस समय में ट्रेन में था
जब भूकंप आया यानी ट्रेन में झटकों का पता नहीं चलता और में दक्षिण की तरफ था तो
इसलिए वहां भूकंप का इतना ज्यादा प्रभाव नहीं था। जब मैं गुजरात पहुंचा जब मैं
सूरत उतरा तो समझ में आया कि वहां पर कुछ बड़ा हुआ है मैं फिर संघ के कार्यालय पर
गया, वहां पर बातचीत की, वहां के प्रचारक से मिला। और पाया कि
जहां पर ज्यादा असर था तो वहां पहले काम शुरू हो गया था। जब से भूकंप आया तो उसी
दिन से हजारों स्वयंसेवक काम में लग गए थे।
मैं वहां सारा देखकर
अहमदाबाद गया और अहमदाबाद से दूसरे दिन कच्छ में गए तो वहां जाकर देखा कि अंजार
जिला संघचालक जी जो अपने काम में लगे हुए थे, उनसे नमस्कार हुई बातचीत हुई वह थोड़ा काम में व्यस्त थे दूसरे
स्वयंसेवक वहां खड़े थे उन्होंने बताया कि आपको मालूम है क्या? हमने पूछा बताइए तो उन्होंने बताया कि
जिला संघचालक की दोनों बेटियां इस भूकंप की भेंट चढ़ गई।
माननीय जिला संघचालक जी व उनकी पत्नी ध्वज वंदन के लिए स्कूटर से जा
रहे थे तो अचानक भूकंप आ गया और भूकंप आने से वह स्कूटर से गिर गए भूकंप लगभग 5 से
7 मिनट में पूरा हो गया तो वह तुरंत घर की तरफ वापस आए। वापस आकर देखा तो उनका
पूरा घर ध्वस्त हो गया था और उनकी दोनों बेटियां उसी मलबे में नीचे दब चुकी थी उन
दोनों की मृत्यु हो गई थी। तुरंत उन्होंने वहां सफाई करके दोनों का पड़ोसियों की
सहायता से अंतिम संस्कार किया। और पुनः अपने सेवा के कार्य में लग गए। ऐसी हजारों
घटनाएं जो देश में घटित होती हैं तब संघ क्या है, सही मायने में समझ में आता है।
संघ में प्रचार विभाग की आवश्यकता क्यों पड़ी?
मेरी दृष्टि से संघ के कई कार्य हैं उसमें प्रचार विभाग बहुत
महत्वपूर्ण है। विभिन्न क्षेत्रों में जो काम चल रहा है वह पूर्णतया स्वतंत्र है।
संघ का मूल कार्य जैसा कि संघ के बारे में बहुत भ्रम फैलाया गया है तो इस दृष्टि
से समाज का हर व्यक्ति स्वयं सेवक नहीं बन सकता। हर व्यक्ति शाखा पर नहीं जा सकता
लेकिन उनके मन में गलत धारणा फैली हुई है उनकी गलत धारणा को कम करने के लिए प्रचार
विभाग की आवश्यकता पड़ी। और आज की इस दुनिया में बिना प्रचार के काम नहीं चलेगा।
आज के समय में सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया में भी संघ ने सेवा के अनेक
कार्य किए हैं। जैसे यूक्रेन और रूस के युद्ध में स्वयंसेवकों ने बहुत से सेवा के
कार्य किए यह इसके बिना मीडिया की दुनिया में बात पता नहीं चलेगी, बात नहीं फैलेगी इस प्रकार मीडिया की
प्रचार के कार्य में बड़ी भूमिका है। दूसरा संघ का पूरा काम सकारात्मक है, पॉजिटिव है। और आज क्या है कि कई बातों
में मीडिया में बहुत कुछ नकारात्मकता दिखाई देती है। जैसे दुनिया में समाचार जाता
है बहुत गलत हो रहा है और कुछ अच्छा नहीं हो रहा है। जबकि ऐसा नहीं है बहुत कुछ
अच्छा भी हो रहा है इसलिए नेगेटिविटी या यूं कहे की नकारात्मकता को कम करने के लिए
प्रचार माध्यमों का बहुत महत्व है और प्रचार माध्यमों के द्वारा ही इस सोशल मीडिया
में फैली हुई नकारात्मकता को दूर किया जा सकता है क्योंकि संघ का कार्य है
सकारात्मकता को बढ़ावा देना है। इस प्रकार से प्रचार विभाग जो मुख्यतः मैं यहां पर
सोशल मीडिया की बात कर रहा हूं सोशल मीडिया पर कोई प्रतिबंध नहीं होता है इसलिए
पॉजिटिविटी को बढ़ावा देने के लिए और नेगेटिविटी को कम करने के लिए प्रचार विभाग
की नितांत आवश्यकता है।
आप प्रेरणा मीडिया के माध्यम से हमारे पाठकों को क्या संदेश देना
चाहेंगे?
मूल बात यह है कि कोई भी कार्य हम करें तो हमारी सोच सकारात्मक होनी
चाहिए। जैसे न्यास में हमारा ध्येय वाक्य है कि 'समस्या नहीं
समाधान की बात करें' तो इतने बड़े देश में इतने वर्षों में समस्या तो होगी पर हम सभी को
समस्याओं के समाधान के लिए हम सबको मिलकर कार्य करने की आवश्यकता है। जो सारी
व्यवस्था है उसको ठीक करने का माध्यम एक ही है वह है शिक्षा। कौन सा ऐसा परिवार है
जिसमें जो शिक्षा से जुड़ा हुआ नहीं है। शिक्षा एक आधारभूत विषय होना चाहिए। भारत
जब विश्व गुरु था तो हमारी शिक्षा उस प्रकार की थी। यदि हम चाहते हैं कि हमारा
नागरिक सुसंस्कृत हो, समाज
मूल्यवान हो और राष्ट्र समृद्ध शक्तिशाली विकसित हो। लेकिन वैसी शिक्षा व्यवस्था
तो नहीं है तो जब तक शिक्षा उस प्रकार की नहीं होगी तब तक वैसा नागरिक, वैसा समाज और वैसा राष्ट्र नहीं बन
सकता। इस दृष्टि से इस दिशा में सकारात्मक सोच के साथ हम सबको मिलकर कार्य करने की
आवश्यकता है। ठीक है सभी संगठन प्रत्यक्ष रूप से कार्य नहीं कर सकते परंतु
अपने-अपने स्तर पर शिक्षा के सुधार के लिए तो हम कार्य कर ही सकते हैं। इस दिशा
में शिक्षा प्रत्येक समाज, राष्ट्र
और व्यक्ति का विषय होना चाहिए। यह न केवल समाज, सरकार बल्कि प्रत्येक व्यक्ति को भी अपने स्तर पर शिक्षा सुधार में
योगदान देना चाहिए तभी जैसा देश हम बनाना चाहते हैं वैसा देश हम बना सकते हैं।
बहुत बहुत धन्यवाद भाईसाहब। संघ जैसा आपने देखा संघ का पावन उद्देश्य, संघ की कार्यपद्धति, संघ के आनुषांगिक संगठन, आपातकालीन स्थिति में संघ एवं
स्वयंसेवकों की भूमिका उनके गुणों के बारे में आपने विस्तार से बताया।
जिससे एक बात तो बिल्कुल स्पष्ट है
कि संघ को लेकर लोगों में जो भ्रांतियां हैं वो निश्चित रूप से दूर
होंगी और आपने सही कहा कि संघ को समझना है तो संघ की शाखा में आइए और भारत को परम
वैभव पर ले जाकर विश्व कल्याण का मार्ग प्रशस्त करने के पावन उद्देश्य को तत्पर
संघ के समर्पित, निष्ठावान, चरित्रवान, राष्ट्रभक्त स्वयंसेवकों के आचरण को
देखिए तब आपको सही अर्थों में संघ क्या है परिचय होगा। वास्तव में
सत्य ही है कि-संघ साधना की अभिव्यक्ति।
आचरण से करते हम।।
सेवा भावी हो समाज ।
तो होगा अपना देश सबल ।।
तो होगा अपना देश महान।।
शिक्षित, सुसंस्कृत
हो अपना समाज ।