संस्कारों का
समुच्चय है राष्ट्र संस्कृति
हमने अपने सामने
हिंदूभूमि और हिंदू राष्ट्र कह कर राष्ट्र की एक कल्पना रखी है। राष्ट्र संस्कृति
का एक व्यावहारिक स्वरूप है, वह संस्कारों का
समुच्चय है। समाज की एकात्मता जिन संस्कारों पर आधारित हो, उन्हीं संस्कारों का समुच्चय संस्कृति है। अनेकानेक शुद्ध
और पवित्र संस्कारों द्वारा हमारे जीवन का दृष्टिकोण बना है। हममें यह भाव उत्पन्न
होता है कि एक स्त्री को छोड़कर बाकी सब जगन्माता के रूप में हैं, परंतु दूसरी संस्कृतियों में ऐसा नहीं है। उनके
संस्कार भिन्न हैं, उनका दृष्टिकोण
तुच्छ है, निंद्य है। वे एक भिन्न
जीवन-प्रणाली के संस्कारों में पले हैं, अतएव उनके जीवन का दृष्टिकोण भिन्न है। अपने संस्कार शुद्ध हैं। अपने जीवन की
आत्मा, जो राष्ट्रजीवन की नींव
है, संस्कृति और संस्कारों पर
निर्मित है।
श्री गुरूजी समय,
खंड-2, प्रथम संस्करण, सुरुचि प्रकाशन,
पृष्ठ 66-67




