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विशेष

राहुल गांधी के नाम खुला पत्र

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प्रिय राहुल,

गत दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आपके द्वारा लिखित पत्र सार्वजनिक विमर्श का हिस्सा बना। कश्मीरी हिंदुओं पर केंद्रित इस चिट्ठी में आपने लिखा, "आतंकियों द्वारा हाल में कश्मीरी पंडितों व अन्य लोगों की लगातार की जा रही टारगेटेड हत्याओं ने घाटी में डर और निराशा का माहौल बना दिया है...।" इस पत्र से ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे घाटी में भय-निराशा का वातावरण अभी हाल ही में बना है, जिसका कारण मोदी सरकार है। राहुल जी, आपको यह चिट्ठी लिखने में बहुत विलंब हो गया। वास्तव में, इसकी आवश्यकता लगभग साढ़े तीन दशक पहले अधिक थी, जब घाटी में मजहब के नाम पर हिंदुओं का सांस्कृतिक विध्वंस और नरसंहार प्रारंभ हुआ। दुर्भाग्य से तब आपकी पार्टी और लगभग सभी स्वघोषित सेकुलर दलों ने इस दुखद घटनाक्रम पर न केवल मौनव्रत रखा, अपितु जो लोग या संगठन इसके लिए प्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार थे— उनका महिमामंडन किया। 


आपके पत्र के विषयवस्तु और कश्मीरी पंडितों को लेकर दल-सहयोगियों के व्यवहार-चिंतन में विरोधाभास है। घाटी में आप अपनी 'भारत जोड़ो यात्रा' के दौरान किन लोगों के साथ थे? क्या यह सच नहीं कि आप उन अब्दुल्ला-मुफ्ती परिवारों के साथ मंच साझा कर रहे थे, जो धारा 370-35ए की बहाली हेतु ललायित है और इनके राजनीतिक दर्शन ने ही घाटी को संकटग्रस्त बनाया है? आप 2004 से सक्रिय राजनीति में है और तब से लोकसभा सांसद भी है। परंतु आपने इतने वर्षों में संभवत: पहली बार कश्मीरी पंडितों की सुध ली है। क्यों? 


यह सच है कि लोक-स्मृति अल्पकालीन होती है, परंतु यह इतनी भी कमजोर नहीं होती कि कुछ तस्वीरों और घटनाओं को भूल जाए। सुधी पाठकों को आज भी स्मरण है कि जब आपकी संप्रग सरकार ने फरवरी 2006 को कश्मीर वार्ता हेतु उस जिहादी यासीन मलिक को निमंत्रण भेजा था, जिसपर श्रीनगर में 25 जनवरी 1990 को भारतीय वायुसेना के चार अधिकारियों की नृशंस हत्या करने न केवल पुख्ता आरोप है, अपितु यह 26/11 मुंबई आतंकी हमले के साजिशकर्ता हाफिज सईद के साथ मंच तक साझा कर चुका था। अब भी इंटरनेट पर यासीन मलिक के साथ तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह की तस्वीरें उपलब्ध है। 


वास्तव में, आपको कश्मीरी पंडित या उनके उत्थान और उनके प्रति हो रहे प्रतिबद्ध प्रयासों से कोई सरोकार नहीं है। यदि ऐसा होता, कश्मीरी हिंदुओं के हत्यारे फारूक अहमद डार उर्फ बिट्टा कराटे, जिसने साक्षात्कार में 20 निरपराध पंडितों को मारने का दंभ भरा था— वह वर्ष 2006 में 'साक्ष्यों के आभाव' में जेल से छूटकर स्वतंत्र नहीं घूम पाता। उस समय टाडा अदालत के तत्कालीन न्यायाधीश एन.डी.वानी ने जो कुछ कहा, वह कश्मीरी पंडितों को न्याय दिलाने में ढुलमुल सरकारी रवैये को उजागर करता है। तब न्यायाधीश वानी ने कहा था, "अभियोजन पक्ष ने मामले पूरी तरह से उदासीनता दिखाई है।" इसी बिट्टा ने कश्मीर में प्रशासनिक अधिकारी असबाह आरज़ूमंद ख़ान से निकाह भी किया। अनुमान लगाना कठिन नहीं कि घाटी में मजहब के नाम पर जिहादियों से स्थानीय लोगों से लेकर प्रशासनिक अधिकारियों की सहानुभूति कितनी गहरी है। धारा 370-35ए हटाने के बाद जहां 2019-20 से यासीन मलिक और बिट्टा कराटे जेल में है, वही घाटी मानवता-बहुलतावाद के शत्रुओं को चुन-चुनकर निपटाया जा रहा है। 


अभी आपकी अति-महत्वकांशी 'भारत जोड़ो यात्रा' का समापन श्रीनगर में हुआ। इस दौरान 23 जनवरी को जम्मू स्थित एक सभा के दौरान आपने कहा, "...आज बाहर के लोग जम्मू-कश्मीर को चला रहे हैं। हमारी आवाज को प्रशासन नहीं सुनता। सारा व्यापार बाहर के लोग करते हैं।" राहुल जी, आपने तथाकथित 'बाहरी' के खिलाफ जहर तब उगला है, जब कश्मीर पंडितों के साथ उन प्रवासियों को जिहादी चिन्हित करके निशाना बना रहे, जो शेष भारत से व्यापार करने कश्मीर आए है। आपके इस त्रासदीपूर्ण बयान से ठीक तीन सप्ताह पहले चार हिंदुओं को आधार कार्ड से चिह्नित करने के बाद आतंकवादियों ने मौत के घाट उतार दिया था। 


भले ही आपकी यात्रा का नाम 'भारत जोड़ो' था, किंतु इसने प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से 'घृणा फैलाने' और 'भारत तोड़ने' के विचार को और पुष्ट किया है। आपका यह चिंतन केवल जम्मू-कश्मीर तक सीमित नहीं। जब आप यात्रा के दौरान गुजरात में थे, तब आपने आदिवासियों को देश का "पहला मालिक" बताकर यह कह दिया, "आपसे देश लिया गया था।" वास्तव में, यह अभिव्यक्ति-विचार ब्रितानी उपनिवेशिक उपक्रम और भारत-हिंदू विरोधी वामपंथी चिंतन से जनित है, जो भारत को तोड़ने वाले उपक्रम का महत्वपूर्ण भाग है। यदि आदिवासी इस देश के "पहले मलिक" हैं, तो शेष लोगों का क्या? क्या यह आपके द्वारा शेष भारतीयों के खिलाफ निर्दोष 'जनजातियों' को खड़ा करने की कुटिल चाल नहीं? 


इसी प्रकार आपने महाराष्ट्र में क्रांतिकारी वीर सावरकर के पत्राचार में 'आज्ञाकारी सेवक' को आधार बनाकर उन्हें 'ब्रितानी एजेंट' घोषित करने का प्रयास किया। ऐसा करके आपने अनेकों स्वतंत्रता सेनानियों की भूमिका को कलंकित किया है, क्योंकि उस समय गांधीजी सहित आदि सेनानी अंग्रेजों से पत्राचार के समय अक्सर ब्रिटिश साम्राज्य का 'समर्पित शुभचिंतक' या 'वफादार' होने की कसमें खाते थे। क्या इस आधार पर इन सभी का भी चरित्र हनन कर दिया जाए? चाहे हिंदुओं के खिलाफ घृणित बयानबाजी करने वाले पादरी जॉर्ज पोनैया हो या 2017 में सार्वजनिक रूप से बछड़े को मारने वाले कांग्रेसी नेता रिजिल मकुट्टी या फिर देश के विकास में 'बाधक'- मेधा पाटकर रूपी 'आंदोलनजीवी'— आपकी इस यात्रा ने वैमनस्य को बढ़ावा देने वालों को मंच दिया है। 


राहुल जी, आज कश्मीर किस प्रकार सकारात्मक परिवर्तन से गुजर रहा है, यह आपके द्वारा श्रीनगर के लालचौक पर भारत जोड़ो यात्रा के समापन कार्यक्रम में तिरंगा फहराने और सकुशल घर लौटने से स्पष्ट है। क्या अगस्त 2019 से पहले यह सब संभव था? यह परिवर्तन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा रूपी संगठनों की वैचारिक सुस्पष्टता और राजनीतिक कटिबद्धता के साथ इस दिशा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल आदि के संयुक्त प्रयासों से आया है। किंतु आपने इनके खिलाफ जिस प्रकार का विषवमन किया और जिहादियों-आतंकवादियों पर मौन साधे रखा— वह आपके मानस और उद्देश्यों को रेखांकित करता है। 


(नोट : ये लेखक के निजी विचार हैं )