‘रोज़गार मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है’ के साथ भारतीय मजदूर संघ की स्थापना करने वाले यशस्वी नेतृत्वकर्ता श्री दत्तोपंत ठेंगड़ी जी एक प्रतिभाशाली भाष्यकार, दूरदर्शी तत्वचिंतक और बहुआयामी लोकनेता थे। उन्होंने समाज के लिए अनेकों महत्वपूर्ण कार्य किए साथ ही कई
सामाजिक संगठनों की शुरुआत भी की। राष्ट्र
ऋषि श्रद्धेय श्री दत्तोपंत जी ठेंगड़ी का जन्म 10 नवम्बर, 1920 को, दीपावली के
दिन, महाराष्ट्र के वर्धा जिले के आर्वी नामक गाँव में हुआ
था।
दत्तोपंत जी बचपन से ही संघ की शाखाओं में
जाया करते थे। दिसम्बर 1934 में वर्धा जिले में आयोजित शीत शिविर में उन्हें पहली
बार परम पूज्य डॉक्टर जी को देखने और सुनने का अवसर प्राप्त हुआ। नागपुर आने के
बाद दत्तोपंत जी ने अपने सहपाठी श्री मोरोपंत पिंगले जी के साथ रहकर राष्ट्रीय स्वयं
सेवक संघ का तृतीय वर्ष तक का शिक्षण क्रम पूरा किया। माननीय मोरोपंत जी से
मित्रता के कारण कई बार उन्हें परम पूज्स डॉक्टर जी से मिलने का सौभाग्य प्राप्त
हुआ। आगे चलकर उन्हें परम पूजनीय श्री गुरूजी का अथाह स्नेह और अनवरत मार्गदर्शन
भी मिला।
दत्तोपंत जी का संघ के प्रति अतुलनीय और
सराहनीय योगदान रहा है। मार्च 1942 में उन्होंने संघ के प्रचारक का पद संभाला और केरल
प्रान्त में संघ का विस्तार करने के लिए ‘कालीकट’ पहुँचे। 1945 से 1947 तक कलकत्ता में तथा 1948 से 1949 तक बंगाल,असम
प्रान्त प्रचारक के पद पर सम्पादन किया।
दत्तोपंत ठेंगडी जी ने कई संगठनों की स्थापना भी थी। “स्वतंत्रता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है” की घोषणा
करने वाले लोकमान्य तिलक जी के जन्मदिवस पर 23 जुलाई,
1955 के दिन भोपाल में उन्होंने भारतीय मजदूर संघ की स्थापना की।
किसान समाज को एक मंच देने के लिए दत्तोपंत
जी ने मार्च 1979 में, कोटा
राजस्थान में किसानों के अखिल भारतीय संगठन भारतीय किसान संघ की स्थापना की और ‘‘हर किसान हमारा नेता है’’ कहकर असंगठित जन समुदाय
में आत्म विश्वास जाग्रत किया, साथ ही ‘‘देश के हम भंडार
भरेंगे, लेकिन कीमत पूरी लेगें’’ का नारा भी दिया। किसान समुदाय के लिए लगातार काम करते
हुए भारतीय किसान संघ आज किसानों और राष्ट्र के हितों का एक सजग और सुदृढ़ संगठन है।
‘‘सामाजिक समरसता के बिना सामाजिक समता असम्भव है’’
इस ध्येय वाक्य का उद्घोष करते हुए दत्तोपंत जी ने 14 अप्रैल 1983 को सामाजिक समरसता मंच की
नींव रखी। संयोग की बात तो यह थी कि इसी दिन परम पूज्य डॉक्टर जी का जन्मदिन
वर्ष-प्रतिपदा भी था।
आर्थिक साम्राज्यवाद के कारण उत्पन्न हुई आर्थिक
पराधीनता के विरोध में देशभर में आन्दोलन का आव्हान करते हुए उन्होंने 22 नवम्बर
1991 को महाराष्ट्र के नागपुर में स्वदेशी जागरण मंच की स्थापना की और इसे
स्वतंत्रता का दूसरा संग्राम का नाम दिया।
इसी प्रकार उन्होंने और भी कई जनसंघ और सामाजिक
संगठनों का स्थापना की और समाज के लिए अनेकों सकारात्मक कार्य किए।
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अक्टूबर 2004 को अमावस्या के दिन महाराष्ट्र के पुणे में इस महान चिंतक, दार्शनिक,
समाज सुधारक और देशभक्त का महानिर्वाण हुआ। आने वाली पीढ़ी में सकारात्मक और देशभक्ति
की भावना को जागृत करने के लिए उन्होंने लगभग 200 से भी अधिक पुस्तकें लिखीं और
हजारों आलेख पत्र-पत्रिकाएं प्रकाशित कीं।