भारत में ई-कचरा निस्तारण और प्रबंधन
भारत ई-कचरा यानी ई-अपशिष्ट उत्पादन के मामले में दुनिया में तीसरे नंबर पर है। पहले और दूसरे स्थान पर क्रमशः चीन और अमेरिका हैं। बिजली के घरेलू, ऑफिस के इलेक्ट्रॉनिक सहित संचार के तमाम पुराने उपकरण इस श्रेणी में आते हैं। सबसे अधिक ई-अपशिष्ट कंप्यूटर, लैपटॉप, मोबाइल और टेलीविजन सेट से पैदा होते हैं। सामान्य तौर पर ई-अपशिष्ट के तीन रूप होते हैं, पहला बड़े घरेलू उपकरण, दूसरा आईटी एवं टेलीकॉम और तीसरा ग्राहक उपकरण। बड़े घरेलू उपकरण के तहत रेफ्रिजरेटर और वाशिंग मशीन आते हैं, आईटी एवं टेलीकॉम के तहत पर्सनल कंप्यूटर, लैपटॉप और मॉनिटर आते हैं जबकि ग्राहक उपकरण के तहत टेलीविजन आते हैं। हालांकि ई-अपशिष्ट के दायरे में पुराने मोबाइल, प्रिंटर, रेडियो, कैलकुलेटर, कंप्यूटर बैटरी और लेड एसिड बैटरी, प्रिंटेड सर्किट बोर्ड, कैपेसिटर्स, ट्रांसफॉर्मर्स, केबल इन्सुलेटर्स, चिकित्सा उपकरण आदि आते हैं। इसमें कई खतरनाक रसायन मसलन सीसा, कैडमियम, पारा, निकिल आदि होते हैं, जो पर्यावरण और स्वास्थ्य को हानि पहुंचाते हैं।
आंकड़े बताते हैं कि भारत के कुल 65 ऐसे शहर हैं जो भारत के कुल ई-अपशिष्ट का 60 प्रतिशत उत्पादन करते हैं, जबकि दस राज्य इसका 70 प्रतिशत उत्पादन करते हैं। भारत में मुंबई, दिल्ली, बेंगलूरु, चेन्नई, कोलकाता, अहमदाबाद, हैदराबाद, पुणे, सूरत और नागपुर में सबसे अधिक ई-अपशिष्ट पैदा होता है। भारत सरकार के आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2017-2018 के मुकाबले 2021-2022 का ई-अपशिष्ट दोगुना से अधिक हो गया है और यह लगातार बढ़ता जा रहा है।
संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास की रिपोर्ट के अनुसार, 2010 और 2022 के बीच स्क्रीन, कंप्यूटर और छोटे आईटी और दूरसंचार उपकरण (एससीएसआईटी) से इलेक्ट्रॉनिक कचरा उत्पन्न करने में भारत में वैश्विक स्तर पर सबसे अधिक 163 प्रतिशत की वृद्धि थी। ‘2024 डिजिटल इकोनॉमी रिपोर्ट: पर्यावरण की दृष्टि से टिकाऊ और समावेशी डिजिटल भविष्य को आकार’ के मुताबिक भारत की दुनिया में ई-अपशिष्ट उत्पादन में हिस्सेदारी वर्ष 2010 में 3.1 प्रतिशत से दोगुनी होकर वर्ष 2022 में 6.4 प्रतिशत थी। रिपोर्ट के अनुसार, एशिया में 2022 में इस तरह का अधिकांश कचरा उत्पन्न हुआ, जिसमें चीन का योगदान लगभग आधा था।
वहीं, भारत प्लास्टिक कचरे के उत्पादन के मामले में दुनिया में पांचवें नंबर पर है। प्रत्येक वर्ष भारत करीब 5.8 मिलियन टन प्लास्टिक जलाता है। सिंगल-यूज प्लास्टिक के मामले में भारत दुनिया में तीसरे पायदान पर है और इसका योगदान 5.5 मिलियन टन का है। भारत सरकार के आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक उत्पादित प्लास्टिक का केवल 60 प्रतिशत ही पुनर्चक्रित किया जाता है, शेष 9400 टन प्लास्टिक पर्यावरण में अप्राप्य छोड़ दिया जाता है जिससे भूमि, वायु और जल प्रदूषण फैलता है। पैकेजिंग में उपयोग होने वाला कुल 70 प्रतिशत प्लास्टिक कुछ ही समय में प्लास्टिक कचरे में परिवर्तित हो जाता है।
ई-अपशिष्ट के निस्तारण के लिए कई गलत प्रक्रिया अपनाई जाती हैं। जैसे भूमि पर या जल निकायों में डंपिंग करना, नियमित कचरे के साथ-साथ लैंडफिलिंग, खुले में रखना, जलाना या गर्म करना, एसिड डालना, प्लास्टिक कोटिंग्स को अलग करना या टुकड़े करना अथवा इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को मैन्युअल रूप से अलग करना आदि। इन गतिविधियों से पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है क्योंकि वे जहरीले प्रदूषक छोड़ते हैं, जो रीसाइक्लिंग स्थलों और वातावरण यथा हवा, मिट्टी, धूल और पानी को दूषित करते हैं।
दूसरी ओर, प्लास्टिक को जलाने से कैंसर, एंडोमेट्रियोसिस, तंत्रिका संबंधी क्षति, अंतःस्रावी व्यवधान, जन्म दोष और बच्चों में विकासात्मक विकार, प्रजनन क्षति, प्रतिरक्षा क्षति, अस्थमा और एकाधिक अंग हानि जैसी बीमारियां मनुष्य को हो सकती है। प्लास्टिक कचरे में मौजूद हानिकारक रसायन जैसे कि बिस्फेनॉल-ए (बीपीए) और पैथलेट्स मानव स्वास्थ्य के लिए खतरे पैदा करते हैं। प्लास्टिक कचरे के कारण समुद्री जीवन, जल स्रोत और मिट्टी में प्रदूषण बढ़ रहा है। हर साल लगभग आठ मिलियन टन प्लास्टिक समुद्रों में पहुंच जाता है, जिससे समुद्री जीवों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
वर्ष 2022 के आंकड़ों के अनुसार, भारत में लगभग 3.2 मिलियन टन ई-अपशिष्ट उत्पन्न होता है। यह संख्या 2025 तक 5.2 मिलियन टन तक पहुंचने का अनुमान है। भारत में ई-अपशिष्ट का केवल पांच प्रतिशत ही सही तरीके से रिसाइकिल किया जाता है, जबकि 95 प्रतिशत ई-अपशिष्ट असंगठित क्षेत्र में नष्ट हो जाता है या लैंडफिल में चला जाता है। भारत में औद्योगिक और चिकित्सा क्षेत्रों से हर साल 1.3 मिलियन टन खतरनाक कूड़ा उत्पन्न होता है। केवल 30 प्रतिशत खतरनाक कूड़ा सही तरीके से प्रबंधित किया जाता है, जबकि बाकी 70 फीसदी असंगठित तरीके से नष्ट किया जाता है। वहीं, भारत में हर साल लगभग 3.5 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होता है। यह मात्रा बढ़ती जा रही है, और इसके 2030 तक 10 मिलियन टन तक पहुंचने का अनुमान है।
भारत सरकार ने ई-अपशिष्ट से निस्तारण के लिए कई कानून बनाये हैं। ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) नियम, 2022 के तहत ई-अपशिष्ट प्रबंधन प्रक्रिया को डिजिटल बनाने और दृश्यता बढ़ाने पर जोर है। यह बिजली और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के निर्माण में खतरनाक पदार्थों (जैसे सीसा, पारा और कैडमियम) के उपयोग को भी प्रतिबंधित करता है जो मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। इसके तहत ई-अपशिष्ट एटीएम को सार्वजनिक स्थानों पर स्थापित करने पर भी जोर दिया गया है। यहां व्यक्ति पुराने इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को जमा कर सकते हैं और बदले में सार्वजनिक परिवहन या आवश्यक वस्तुएं छोटे वित्तीय प्रोत्साहन या वाउचर प्राप्त कर सकते हैं। ई-अपशिष्ट ट्रैकिंग और प्रमाणीकरण इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के संपूर्ण जीवन चक्र को ट्रैक करने के लिए ब्लॉकचेन-आधारित प्रणाली की स्थापना करने पर जोर दिया गया है। प्रत्येक उपकरण के साथ एक डिजिटल प्रमाणपत्र संलग्न करने पर जोर दिया गया है जो उसके विनिर्माण, स्वामित्व और निपटान इतिहास को रिकॉर्ड करेगा।
जुलाई, 2023 में केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने संसद में कहा था कि ई-अपशिष्ट का उत्पादन देश में बड़े पैमाने पर हो रहा है। इससे पहले ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) नियम, 2016 भी लागू किया गया था। इस कानून के तहत 21 तरह के इलेक्ट्रिकल एंड इलेक्ट्रॉनिक इक्विपमेंट पुराने हो जाने पर ई-अपशिष्ट के दायरे में आते हैं। उन्होंने संसद में एक आंकड़ा पेश किया था जिसके तहत वर्ष 2017-2018 में जहां 7.08 लाख टन ई-कचरा पैदा होता था, वहीं 2021-22 तक यह आंकड़ा 16.01 टन हो गया। गौरतलब है कि ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) नियम, 2022 को 1 अप्रैल, 2023 से लागू किया गया।
ऐसे में आवश्यक है कि भले ही भारत सरकार अपनी ओर से तमाम प्रयत्न कर रही है लेकिन जब तक देश का आम जन इस ई-अपशिष्ट के प्रति जागरूक नहीं होगा, प्लास्टिक के प्रयोग से खुद को दूर नहीं करेगा तब तक इसका निष्पादन करना संभव नहीं है। यदि हमें ई-अपशिष्ट मुक्त भारत या विश्व बनाना है तो हर व्यक्ति की जिम्मेदारी है कि वह खुद भी इसके दुष्प्रभाव की जानकारी रखे और दूसरों को भी इसके बारे में बताये।