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मतदान: अधिकार और कर्तव्य

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मतदान: अधिकार और कर्तव्य 

मतदान हमारा अधिकार भी है और कर्तव्य भी, यह एक संवैधानिक अधिकार है। भारतीय संविधान के अनुसार देश के नागरिकों को अपने प्रतिनिधि निर्वाचित करने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 326 के द्वारा मिला है। लोकतंत्र का अर्थ ही है जनता की, जनता के द्वारा, जनता के लिए। इसलिए मतदान का लोकतंत्र में बहुत महत्व होता है। भारतीय संविधान के अनुसार, 18 वर्ष से अधिक आयु के सभी भारतीय नागरिक जिन्होंने खुद को मतदाता के रूप में पंजीकृत किया है, वे मतदान करने के योग्य हैं। मतदाता सूची में पंजीकृत नागरिक राष्ट्रीय, राज्य, जिला और स्थानीय सरकारी चुनावों में मतदान कर सकते हैं। मतदाता केवल उसी निर्वाचन क्षेत्र में मतदान कर सकता है जहां उसने खुद को पंजीकृत किया है। मतदाताओं को उस निर्वाचन क्षेत्र में खुद को पंजीकृत करना होता है जहां वे रहते हैं, जिसके बाद उन्हें फोटो चुनाव पहचान पत्र जारी किया जाता है। यदि किसी व्यक्ति ने मतदाता सूची में नाम नहीं लिखवाया है तो उसे चुनावी प्रक्रिया में भाग लेने की अनुमति नहीं है। ये हमारा कर्तव्य है कि हम अपना नाम मतदाता सूची में लिखवाएं और समय-समय पर मतदाता सूची का अवलोकन कर ये सुनिश्चित करें कि हमारा नाम सूची में है।

भारतीय संविधान में मतदाताओं के कुछ अधिकार भी हैं। सभी नागरिकों को चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के बारे में जानने का अधिकार है। यह अधिकार भारतीय संविधान की धारा 19 के तहत मतदाताओं को दिया गया है। यह धारा मतदाताओं को उम्मीदवारों के चुनाव घोषणापत्र, उनकी कुल वित्तीय संपत्ति और उनके आपराधिक रिकॉर्ड (यदि कोई हो तो) से संबंधित जानकारी मांगने का अधिकार देती है। मतदाताओं को अपना मत न देने का अधिकार भी दिया गया है, जिसे सिस्टम में दर्ज किया जाता है। इसे छव्ज्। (इनमें से कोई नहीं) वोट के रूप में भी जाना जाता है। मतदाता चुनाव में भाग लेता है लेकिन चुनाव लड़ रहे किसी भी उम्मीदवार को अपना मत नहीं देने का विकल्प चुनता है। इस प्रकार, मतदाता चुनावी प्रक्रिया में भाग ले रहे हैं और यह चुनने के अपने अधिकार का प्रयोग कर रहे हैं। जो मतदाता शारीरिक विकलांगता या अन्य दुर्बलता के कारण मतदान में असमर्थ हैं तथा डाक मतपत्र के माध्यम से अपना मत नहीं डाल सकते, वे निर्वाचन अधिकारी की सहायता ले सकते हैं, जो उनका मत दर्ज करेगा। सीमा पर नियुक्त या ऐसे कर्मचारी जिनकी चुनाव आयोग द्वारा उनकी सेवा मतदान वाले दिन चुनाव केंद्रों पर है वह सब डाक मतपत्र द्वारा मतदान कर सकते हैं। पहले एनआरआई (अनिवासी भारतीय) को मतदान की अनुमति नहीं थी। हालांकि 2010 में एक संशोधन किया गया था जो एनआरआई को मतदाता के रूप में खुद को पंजीकृत करने और चुनावों में मतदान करने की अनुमति देता है, भले ही वे किसी भी कारण से 6 महीने से अधिक समय तक देश में न रहे हों। लेकिन किसी अन्य देश की नागरिकता न ली हो। वर्तमान कानून के अनुसार कैदियों को अपने मताधिकार का प्रयोग करने की अनुमति नहीं है।

मतदान का बहुत महत्व है। विश्व में  ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जब मात्र एक मत से सरकार नहीं बनी। एआईएडीएमके के समर्थन वापस लेने के बाद वाजपेयी सरकार को विश्वास प्रस्ताव रखना पड़ा। विश्वास प्रस्ताव के पक्ष में 269 और विरोध में 270 मत पड़े और अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार चली गई। राजस्थान विधानसभा के चुनाव में सीपी जोशी को 62,215 व कल्याण सिंह को 62,216 वोट मिले। जोशी मुख्यमंत्री पद के प्रमुख उम्मीदवार थे। गौर करने की बात है कि उनकी माँ, पत्नी व ड्राइवर ने मत नहीं डाला था। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में जेडीएस पार्टी के एआर कृष्णमूर्ति को 40,751 मत मिले और कांग्रेस के आर धु्रवनारायण को 40,752 मत मिले। ए आर कृष्णमूर्ति के ड्राइवर को छुट्टी न मिलने के कारण वह मतदान नहीं कर सका। साल 1885 में फ्रांस की राजशाही एक मत कम होने से खत्म हुई और लोकतंत्र का आगाज हुआ। अमेरिका को 1776 में एक मत के  कारण जर्मन की जगह अंग्रेजी मातृभाषा मिली थी। अमेरिकी राष्ट्रपति पद के लिए हुए 1876 के चुनाव में रदरफोर्ड बी हायेस ने 185 मत हासिल किए थे और सैमुअल टिल्डेन को 184 मत मिले थे। एक और उद्धरण है कि एक मत से 1910 में रिपब्लिकन उम्मीदवार हार गया था। जर्मनी के लोग जानते हैं कि क्या होती है एक मत की ताकत? 1923 में एडोल्फ हिटलर एक मत से जीत कर नाजी दल का मुखिया बन गया था।

आपके एक मत में महत्वपूर्ण बदलाव लाने की क्षमता है। आप बेहतर सरकार के लिए वोट कर सकते हैं। अगर आप मतदान नहीं करते हैं, तो वही पार्टी अगले पांच साल तक सत्ता में रहेगी जिसको आप बदलना चाहते हैं। अंत में, अगर देश में शासन ठीक से काम नहीं कर रहा तो यह लोगों की गलती है कि उन्होंने गलत तरीके से मतदान किया या बिल्कुल भी मत नहीं दिया। प्रत्येक मत का महत्व है और वो बदलाव ला सकता है। जब अधिकांश लोगों का मत यह हो जाये कि ‘मेरे एक मत से कोई फर्क नहीं पड़ता’ तो मतदान प्रतिशत कम होता है। इसलिए इस सोच को बदलना पड़े़गा। इस हेतु चुनाव आयोग भी विभिन्न समय पर मतदाताओं को जागरूक करने के लिए अनेक कार्यक्रम करता है। देश को विकास की ओर ले जाने वाली सरकार बने ये जिम्मेदारी हम सबकी है। अरस्तू ने कहा था कि जैसे राजतन्त्र तानाशाही में बदल जाता है वैसे ही लोकतंत्र भीड़तंत्र में बदल जाता है। लोकतंत्र भीड़़तंत्र में न बदले ये हम सभी का कर्तव्य है। इसलिए मतदान करें और मतदान करने के लिए प्रेरित करें।