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मंगलयान से गगनयान तक : ब्रह्मांड नापने की तैयारी

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अपनी प्रतिभा , लगन, मेहनत और जुनून के बल पर जल, जमीन और आकाश पर जीत हासिल करने के बाद भारतीय अभिप्रेरणाओं का नया लक्ष्‍य है, यह विशाल, अथाह ‘अंतरिक्ष’…

15 अगस्‍त, 1969 को ‘इन्‍कोस्‍पर’ यानि ‘अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए भारतीय राष्‍ट्रीय समिति’, जिसे आज हम ‘भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो)’ के नाम से जानते हैं, की स्‍थापना के बाद से अब तक भारत ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक लंबा सफर तय किया है। 19 अप्रैल, 1975 को सोवियत संघ की मदद से छोड़ा गया हमारा पहला उपग्रह आर्यभट्ट हो या 7 जून, 1979 को दूसरा उपग्रह भास्‍कर, या फिर 1980 में भारत का पहला स्‍वदेश निर्मित रोहिणी…हर उपलब्‍धि के साथ हम अंतरिक्ष की और अधिक गहराई तक पहुंचने में सफलता हासिल करते गए हैं। पहले धीरे-धीरे और फिर बाद में बहुत तेज गति से हमारे अभियानों की संख्‍या और रफ्तार, लगातार बढ़ती ही गई है।

अर्द्धशती से भी अधिक समय से सतत् जारी हमारी इस अंतरिक्ष यात्रा ने पिछले एक दशक में, जिस तरह बार-बार एक के बाद एक अभूतपूर्व उपलब्धियां हासिल की हैं, वह विश्‍व को विस्मित करती रही हैं और हमें गौरवान्‍वि‍त। 2014 से 2022 तक इसरो द्वारा 42 लॉन्च व्‍हीकल मिशन, 44 अंतरिक्ष यान मिशन और 5 प्रौद्योगिकी प्रदर्शक मिशन लॉन्च किये गए हैं।

2014 वह साल था, जब हमने पहली बार पूर्ण स्‍वदेशी क्रायोजेनिक इंजन का प्रयोग करते हुए जीएसएलवी-डी 5 की मदद से हमारे संचार उपग्रह जीसैट-14 को सफलतापूर्वक कक्षा में स्‍थापित किया।

मंगलयान ने बढ़ाई शान

24 सितंबर, 2014 को हमने भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रमों की श्रृंखला में एक नया इतिहास रचा। यह था हमारा बहुचर्चित मार्स ऑर्बिटर मिशन यानि ‘मंगलयान’। इसने पूरे विश्‍व में भारतीय अंतरिक्ष मेधा के झंडे गाड़ दिये। मंगलयान मिशन की जिन दो विशेषताओं ने दुनिया को सबसे ज्‍यादा प्रभावित किया, उनमें पहली यह थी कि भारत पहले ही प्रयास में अपने यान को मंगल ग्रह की कक्षा में प्रवेश कराने में सफल रहा। और दूसरी थी, इस पूरे अभियान पर आई बेहद कम लागत। नासा के ‘मावेन मिशन’ पर आए खर्च की महज एक प्रतिशत लागत, 460 करोड़ रुपये में सफलतापूर्वक सम्‍पन्‍न हुए इस मिशन को लेकर उन दिनों एक बात बहुत मशहूर हुई थी, कि साल 2013 में प्रदर्शित, स्‍पेस मिशन पर आधारित हॉलीवुड मूवी ‘ग्रेविटी’ का बजट भी इससे डेढ़ गुना अधिक, लगभग 690 करोड़ रुपये था। इस सफलता ने वैश्विक स्‍तर पर भारत की प्रतिष्‍ठा में तो चार चांद लगाए ही, साथ ही हमारे अंतरिक्षीय कारोबार को भी काफी फायदा पहुंचाया। अपनी इन्‍हीं उपलब्धियों के लिए इसरो को वर्ष 2014 के लिए शांति, निरस्त्रीकरण और विकास के लिए इंदिरा गांधी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

इसके एक साल बाद 28 सितंबर, 2015  को इसरो ने देश की पहली स्‍पेस ऑब्‍जर्वेटरी ‘एस्ट्रोसैट’ की स्थापना की। आकाशगंगा, ग्रहों और खगोलीय पिंडों के अध्‍ययन के लिए समर्पित एस्‍ट्रोसैट ने इसके बाद कई महत्‍वपूर्ण उपलब्‍धियां अपने खाते में दर्ज कीं। यह एस्‍ट्रोसैट का ही कमाल था, जिसने पहली बार 9.3 बिलियन प्रकाश वर्ष दूरी पर लाइमैन अल्फा से निकलने वाली आकाशगंगा ए.यू.डी.एफ.01 से एफ.यू.वी. फोटोन की खोज को संभव बनाया। इसके बाद उसने, एंड्रोमेडा आकाशगंगा का गहन सर्वेक्षण कर नाभिक के बाहर युवा सितारों की मौजूदगी का पहली बार पता लगाया और यह भी कि आकाशगंगाओं की सीमाओं से दूर बह रही गैस धाराओं में नए तारों का बनना जारी है। इसी वेधशाला के माध्‍यम से हमें पता चला कि बाइनरी में ब्‍लैकहोल के घूर्णन की जो गति है, वह अधिकतम संभव गति के काफी करीब है। 2020 में अपना पांच वर्ष का निर्धारित कार्यकाल पूरा करने के दो साल बाद भी ‘एस्‍ट्रोसैट’ ब्रह्मांड के अवलोकन, निरीक्षण और विश्‍लेषण का अपना काम बदस्‍तूर जारी रखे हुए है और कई साल तक इसमें कोई रुकावट आने की कोई आशंका भी नहीं है।  

स्‍वयं के जीपीएस ने खत्‍म की निर्भरता

28 अप्रैल, 2016 को इसरो ने, नेविगेशन सैटेलाइट ‘आईआरएनएसएस-1’ जी लॉन्च कर देश को अपना खुद का जीपीएस (ग्‍लोबल पोजीशनिंग सिस्‍टम) दिलाया। 2013 में शुरू हुई 1420 करोड़ रुपये बजट वाली ‘आईआरएनएसएस’ (इंडियन रीजनल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम) परियोजना श्रृंखला का यह सातवां और आखिरी सैटेलाइट था। इसकी सफल लॉन्चिंग के बाद, भारत क्षेत्रीय उपग्रह नौवहन प्रणाली रखने वाले विशि‍ष्‍ट देशों के क्‍लब में शामिल हो गया। इससे पहले सिर्फ अमेरिका, यूरोपियन यूनियन, चीन और रूस ही थे, जिनके पास अपना खुद का नेविगेशन सिस्टम है। नेवी और कोस्ट गार्ड्स को नेविगेशन में मदद करने वाले ‘आईआरएनएसएस-1 जी’ की लॉन्चिंग के वेबकास्‍ट के दौरान प्रधानमंत्री ने इसे देश के मछुआरों को समर्पित करते हुए 'नाविक' नाम दिया और इस उपलब्‍धि पर हर्ष व्‍यक्‍त करते हुए कहा कि, ''अब हम अपना रास्ता खुद ही तय करेंगे। कैसे जाना है और कहां पहुंचना है, ये हमारी अपनी टेक्नोलॉजी के जरिए होगा।’’ अमेरिका के जीपीएस पर निर्भरता समाप्‍त करने वाली,  भारत की यह सफलता, हमारे उस स्‍वाभिमान को भी बढ़ाती है, जिसे कारगिल वॉर के वक्त अमेरिका ने हमारे साथ जीपीएस इन्फॉर्मेशन शेयर करने से इंकार करके ठेस पहुंचाई थी। तभी से भारत में अपने खुद के जीपीएस की जरूरत महसूस की जा रही थी। नाविक से भारत ही नहीं, बल्कि सार्क देशों को भी फायदा मिलेगा।

एक साथ 104 सैटेलाइट भेजकर बनाया कीर्तिमान

फिर आया 2017 का फरवरी महीना। इसरो ने एक और कीर्तिमान बनाते हुए भारत को अंतरिक्ष क्षेत्र में एक बहुत बड़ी कामयाबी दिलाई। इसरो के प्रक्षेपण यान ‘पीएसएलवी-सी37’ ने श्रीहरिकोटा स्थित अंतरिक्ष केन्द्र से एकल मिशन में रिकार्ड 104 उपग्रहों, जिनका संयुक्‍त वजन 1378 किलोग्राम था, का प्रक्षेपण करते हुए उन्‍हें सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापित कर दिया। इनमें भारत के सिर्फ तीन सेटेलाइट थे, बाकी 101 सैटेलाइट इजराइल, संयुक्‍त अरब अमीरात, कजाखस्तान, नीदरलैंड, स्विटजरलैंड और अमेरिका जैसे देशों के थे। इस कामयाबी से, भारत एक साथ इतने सारे उपग्रहों का प्रक्षेपण और स्‍थापना करने वाला  दुनिया का पहला देश बन गया। ऐसी ही एक सफलता भारत ने जून, 2015 में भी अपने खाते में दर्ज की थी, जब उसने एक बार में 57 उपग्रहों का प्रक्षेपण किया था। इससे पहले एकल अभियान में सर्वाधिक सैटेलाइट अंतरिक्ष में भेजने का यह रिकॉर्ड रूस के नाम था, जिसने 2014 में एक साथ 37 सैटेलाइटों का प्रक्षेपण किया था। अंतर्राष्ट्रीय ग्राहकों के नैनो-सैटेलाइटों के प्रक्षेपण के लिए इसरो ने ‘एंट्रिक्स कॉपरेरेशन लिमिटेड’ नाम से अपनी एक व्यावसायिक शाखा बनाई हुई है।

इसी साल जून में इसरो ने भू स्थिर अंतरिक्ष प्रक्षेपण वाहन मार्क-III (जीएसएलवी एमके- III डी 1) के जरिए अपना 3,136 किग्रा वजनी, जो अब तक का सबसे भारी संचार उपग्रह है, ‘जीसैट-19’ लॉन्च किया। यह उपलब्धि इसलिए भी ऐतिहासिक थी, क्‍योंकि इससे पहले 2,300 किलोग्राम से अधिक भार वाले उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिए हमें विदेशी प्रक्षेपकों पर निर्भर रहना पड़ता था। इस सफलता के बाद हम भी दुनिया के उन गिने-चुने लोगों में शुमार हो गये, जिनके पास यह स्‍पेस टेक्‍नोलॉजी है।

11 अप्रैल, 2018 को इसरो ने अपना नेविगेशन सैटेलाइट ‘आईआरएनएसएस-1आई’ लॉन्‍च किया, जो पूरी तरह स्‍वदेशी तकनीक से निर्मित नेवीगेशन सेटेलाइट है।

अंतरिक्ष में मार करने वाली एंटी सैटेलाइट मिसाइल

मार्च 2019 में, भारत ने एक और इतिहास रचते हुए अंतरिक्ष में मार करने वाली एंटी सैटेलाइट मिसाइल का सफल प्रयोग किया और अमेरिका, रूस तथा चीन के बाद दुनिया का चौथा ऐसा देश बना, जिसके पास अंतरिक्ष में मार करने वाली मिसाइल की तकनीक है। इस प्रयोग में भारतीय मिसाइल ने प्रक्षेपण के तीन मिनट के भीतर ही लो अर्थ ऑर्बिट में एक सैटेलाइट को मार गिराया। भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को सुरक्षित रखने वाली इस एंटी सैटेलाइट (ए सैट) प्रणाली का विकास, इसरो और डीआरडीओ के संयुक्त प्रयासों के द्वारा संभव हुआ। एंटी सैटेलाइट प्रणाली का इस्‍तेमाल किसी भी देश के सामरिक उद्देश्यों में मदद पहुंचाने वाले उपग्रहों को निष्क्रिय करने या नष्ट करने के लिए किया जाता है।


2019 में ही 7 सितंबर को हमें एक झटका भी लगा, जब ‘चंद्रयान-2’ का रोवर चंद्रमा की सतह पर उतरने ही वाला था, तभी अचानक उसका  लैंडर विक्रम से संपर्क टूट जाने की वजह से मून मिशन चंद्रमा की सतह से 2.1 किलोमीटर दूर रह गया और ‘चंद्रयान-2’ का सैतालीस दिनों का सफर अंतिम क्षण में अधूरा रह गया। लेकिन, भारतीय हौसलों को पूरी दुनिया यूं ही सलाम नहीं करती है। हमने इस असफलता को खुले दिल से स्‍वीकार किया। इससे हतोत्‍साहित होने की बजाय, हमने इसे एक सबक के तौर पर लिया और ज्‍यादा सतर्कता के साथ ‘चंद्रयान-3’ की तैयारियों में जुट गए।

350 अरब डॉलर की स्‍पेस इकोनॉमी

कोरोना के प्रभाव के चलते वर्ष 2020 और 2021 के दौरान दूसरे तमाम क्षेत्रों की तरह इस दिशा में कुछ उल्‍लेखनीय नहीं हो पाया, लेकिन नीतिगत स्‍तर पर हमने काफी कुछ किया। वैसे तो 2014 में सत्ता संभालने के बाद से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार ने भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र में सुधार और उसमें निजी क्षेत्र की भूमिका को बढ़ाने पर विचार आरंभ कर दिया था। इस विचार को अमली जामा पहनाते हुए इसरो ने अंतरिक्ष गतिविधियां विधेयक का मसौदा तैयार किया। इसका सबसे महत्‍वपूर्ण हिस्‍सा निजी संस्थाओं को अंतरिक्ष से जुड़ी वाणिज्यिक गतिविधियों के लाइसेंस देने और उनके नियमन की प्रक्रिया से संबंधित था। फिर 2020 में इसरो ने राष्‍ट्रीय अंतरिक्ष परिवहन नीति (एनएसटीपी) भी प्रस्‍तुत की, जिसके अंतर्गत निजी उद्यमों को सहयोग, प्रोत्‍साहन और दिशानिर्देश उपलब्‍ध कराये जाते हैं।


यह नीति भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन और प्राधिकरण केंद्र (इन-स्‍पेस) की अनुमति और इसरो की निगरानी के दायरे में निजी क्षेत्र से जुड़े संगठनों को भारत में और भारत से बाहर रॉकेट लॉन्च से जुड़े साइट्स स्थापित करने, उनका संचालन करने और व्‍यावसायिक अंतरिक्ष गतिविधियों के संचालन का अधिकार प्रदान करती है।


अंतरिक्ष को मद्देनजर रखकर बनाई गई नीतियों के पूरक के तौर पर भारत सरकार ने ‘इन-स्‍पेस’ के अलावा ‘न्‍यू स्‍पेस इंडिया लिमिटेड’ नामक एक और उपक्रम शुरू किया है। इन-स्‍पेस अंतरिक्ष विभाग के तहत एक स्वतंत्र संगठन है, जो निजी क्षेत्र को प्रोत्‍साहन देने के साथ-साथ एक नोडल अथॉरिटी की तरह भी काम करेगा। वहीं एनएसआईएल पूरी तरह से भारत सरकार के अधीन सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी है, जिसे इसरो की मार्केटिंग शाखा के तौर पर काम करना है। इसरो द्वारा विकसित प्रौद्योगिकी को निजी ग्राहकों को बेचने की जिम्मेदारी इसी की होगी। बीते कुछ सालों तक अंतरिक्ष क्षेत्र को अंतर्राष्‍ट्रीय विषय की तरह देखने की परंपरा का अनुसरण करने की बजाय, अब इसे घरेलू विषय के रूप में देखने की मोदी सरकार की पहल सराहनीय भी है और दूरदर्शिता से भरपूर भी। आज दुनिया की सबसे सस्‍ती और कारगर तकनीक की उपलब्‍धता के बावजूद, करीब 350 अरब डॉलर के वैश्विक अंतरिक्ष बाजार में भारत की हिस्‍सेदारी महज दो फीसदी ही है। ऐसे में, जब अंतरिक्ष अर्थव्‍यवस्‍था का आकार वर्ष 2040 तक करीब एक खरब डॉलर और वर्ष 2050 तक करीब पांच खरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने की उम्‍मीद (बैंक ऑफ़ अमेरिका की इकाई मेरिल लिंच का आकलन) की जा रही है, यह अवश्‍यंभावी हो गया था कि हम भी अपने दिल को अंतरिक्ष की तरह ही विशाल बनाएं और इस क्षेत्र को प्राइवेट सेक्‍टर के आंत्रेप्रेन्‍योर्स के लिए खोल दें, ताकि वे छोटे ग्रहों की पड़ताल, पृथ्वी की निगरानी, अंतरिक्ष पर्यटन, प्रक्षेपण, अंतरिक्ष अनुसंधान आदि क्षेत्रों में तेजी से बढ़ रही गतिविधियों का हिस्‍सा बन सकें। मोदी सरकार ने अभी तक इस दिशा में कई बेहद सकारात्‍मक कदम उठाये हैं, जिनके अच्‍छे नतीजे भी देखने को मिल रहे हैं।

निजी क्षेत्रों के लिए खुले दरवाजे

संक्षेप में देखें तो विगत वर्ष में हम इसरो सिस्टम फॉर सेफ एंड सस्टेनेबल ऑपरेशन एंड मैनेजमेंट (आईएस4ओएम) के आरंभ (जुलाई माह), एलवीएम 3 (जीएसएलवी एमके III) एम 2/ वनवेब इंडिया-1 मिशन के सफलतापूर्वक पूरा होने (अक्‍टूबर), इनफ्लेटेबल एयरोडायनामिक डिसेलेरेटर (आईएडी) के सफल प्रदर्शन, पीएसएलवी-सी 54 को भारत-भूटान सैट (आईएनएस-2 बी) सहित आठ नैनो-उपग्रहों के साथ ईओएस-06 उपग्रह की कामयाब लॉन्च‍िंग (नवंबर) जैसी अंतरिक्षीय घटनाओं के साक्षी बनें। लेकिन 2022 जिस चीज के लिए एक गेमचेंजर वर्ष के रूप में जाना जायेगा, वह है इसरो के सहयोग से निजी अंतरिक्ष गतिविधियों को वैचारिक दायरे से बाहर आकर यथार्थ के धरातल पर उतरते हुए देखना।


नवंबर के महीने में देश के पहले निजी रॉकेट ‘विक्रम-एस’ की सफल लॉन्चिंग और कुछ ही दिन बाद, आंध्र प्रदेश के श्री हरिकोटा में पहले निजी लॉन्चपैड की शुरूआत, दो ऐसे ऐतिहासिक पल थे, जिन्‍होंने भारतीय अंतरिक्ष बाजार में बेशुमार संभावनाओं के द्वार खोल दिये। मिशन 'प्रारंभ' के अंतर्गत ‘स्काईरूट एयरोस्पेस कंपनी’ का विक्रम-एस तीन उपग्रहों को ले जाकर कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित करने वाला देश का पहला निजी रॉकेट बना। वहीं, श्रीहरिकोटा स्थित निजी लॉन्चपैड को स्पेस टेक स्टार्टअप ‘अग्निकुल कॉसमोस’ द्वारा डिजाइन किया गया था। इससे पहले इसरो के एकाधिकार वाले अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी कंपनियों के प्रवेश की ये घटनायें, भविष्य के अंतरिक्ष अभियानों को नई दिशा देने वाली साबित होंगी, इसमें कोई संदेह नहीं है। साथ ही इससे अंतरिक्ष अभियानों में नवाचार, भारतीय अंतरिक्ष बाजार में विदेशी निवेश,  स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को भी काफी बढ़ावा मिलेगा। ऐसा होगा तो दूसरे बहुत सारे देश भी अपने अंतरिक्ष कार्यक्रमों के लिए भारत का रुख करेंगे, जिससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की प्रतिष्ठा और साख बढ़ेगी और कारोबार भी।

‘सेंटर फॉर डेवलपमेंट स्टडीज’ और ‘भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान संस्थान’ की एक साझा रिपोर्ट बताती है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में स्पेस सेक्टर का योगदान अभी 36,794 करोड़ रुपये का है। लेकिन, यह हमारी जीडीपी का सिर्फ 0.23% ही है। वर्ष 2025 तक इसमें 6% की वृद्धि की उम्‍मीद है।  इसलिए, इस क्षेत्र में प्राइवेट प्लेयर्स का आना, हालात को काफी बेहतर बना सकता है। ऐसा मानने की वजह यह है कि स्पेस स्टार्टअप्स में निवेशकों का भरोसा लगातार बढ़ रहा है। ‘स्काईरूट’ 400 करोड़ रुपये व ‘अग्निकुल’ 160 करोड़ रुपये का निवेश हासिल कर चुके हैं। इन्हीं बदलते हुए हालातों का नतीजा है कि आज 150 से अधिक कंपनियां/स्टार्टअप्स अंतरिक्ष उद्योग से संबंधित विभिन्न उपक्रमों से जुड़ने के लिए भारत सरकार को आवेदन कर चुकी हैं। इन कंपनियों में ‘एस्ट्रोबोर्न स्पेस एंड डिफेंस टेक्नोलॉजीज’ और ‘स्पेस ऑरा एयरोस्पेस टेक्नोलॉजी प्राइवेट लिमिटेड’ प्रमुख हैं। एस्ट्रोबोर्न का जोर अगर भारत की पहली निजी अंतरिक्ष यात्री प्रशिक्षण सुविधा स्थापित करने पर है, तो स्पेस ऑरा की योजना 2025 तक स्पेस कैप्सूल का पहला प्रक्षेपण करने की है, जिसके जरिये वह  छह पर्यटकों और पायलट को स्पेस में ले जाने की तैयारी में है।

सूर्य पर जाने वाले ‘आदित्‍य एल-1’, ‘चंद्रयान 3’ और ‘गगनयान’ जैसे महत्‍वाकांक्षी मिशनों के साथ भारत, नए साल में अंतरिक्ष में नई छलांग लगाने को तैयार है। आप भी अपनी कुर्सी की पेटियां कस लीजिये।



लेखक भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली में  महानिदेशक हैं