- कला और संस्कृति के क्षेत्र में भी एक अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण
- लोक कला, हस्तशिल्प, वस्त्र निर्माण, मृदंग कला, शिल्प कला, काष्ठ कला आदि होंगे शामिल
- भारतीय कारीगरों को भी अंतरराष्ट्रीय बाजारों में अपनी कला का प्रदर्शन करने का मौका
प्रयागराज। महाकुंभ 2025 में इस बार एक नई पहल के तहत विदेशी टॉप 100 हस्तशिल्पियों की झलक देखने को मिलेगी। यह आयोजन भारतीय संस्कृति, कला और हस्तशिल्प को वैश्विक स्तर पर प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से किया जा रहा है। महाकुंभ, जो एक विशाल धार्मिक और सांस्कृतिक मेला होता है, में अब कला और संस्कृति के क्षेत्र में भी एक अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण को शामिल किया जा रहा है।
विदेशी हस्तशिल्पियों का भागीदारी -
महाकुंभ में विदेशी टॉप 100 हस्तशिल्पियों का चयन किया गया है, जो अपनी पारंपरिक और समकालीन कला के माध्यम से भारतीय हस्तशिल्प के साथ तालमेल बैठाकर अपनी कला का प्रदर्शन करेंगे। यह हस्तशिल्पी विभिन्न देशों से होंगे और उनकी कला में लोक कला, हस्तशिल्प, वस्त्र निर्माण, मृदंग कला, शिल्प कला, काष्ठ कला आदि शामिल होंगे। ये कलाकार अपने देशों की पारंपरिक कला और शिल्प को महाकुंभ में प्रदर्शित करेंगे, जो भारतीय संस्कृति और कला के साथ मेलजोल दिखाएगा।
सांस्कृतिक आदान-प्रदान -
इस पहल का उद्देश्य भारतीय और विदेशी कला के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देना है। विदेशी हस्तशिल्पियों के साथ भारतीय कारीगरों का भी मेलजोल होगा, जिससे दोनों देशों के शिल्पकला में नए विचार और तकनीक का संयोग होगा।
वैश्विक मंच पर भारतीय हस्तशिल्प का प्रचार -
महाकुंभ का यह आयोजन भारतीय हस्तशिल्प को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाने के लिए एक आदर्श मंच साबित होगा। यहां पर भारतीय कारीगरों को भी अंतरराष्ट्रीय बाजारों में अपनी कला का प्रदर्शन करने का मौका मिलेगा।
आर्थिक लाभ -
हस्तशिल्पियों के बीच सहयोग और सांस्कृतिक आदान-प्रदान से दोनों देशों के शिल्प उद्योग को आर्थिक रूप से भी फायदा होगा। इसके अलावा, महाकुंभ जैसे बड़े आयोजन में भागीदारी से इन हस्तशिल्पियों को बड़े पैमाने पर व्यापार और विपणन के अवसर मिलेंगे।
महाकुंभ में प्रदर्शनी और कार्यशालाएं -
महाकुंभ 2025 में इन हस्तशिल्पियों की कला को प्रदर्शित करने के लिए विशेष प्रदर्शनी -
आयोजित की जाएंगी, जहां विदेशी और भारतीय शिल्पकला का अद्भुत संगम देखने को मिलेगा। इसके साथ ही, कार्यशालाओं का भी आयोजन किया जाएगा, जिसमें भारतीय कारीगरों और विदेशी कलाकारों को एक साथ काम करने और कला की नई विधियों को समझने का मौका मिलेगा।
मेले का सांस्कृतिक महत्त्व -
महाकुंभ का आयोजन सिर्फ धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि यह सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। यहाँ पर विभिन्न देशों से आने वाले कलाकार और कारीगर भारतीय कला और संस्कृति के साथ संवाद करते हैं, जिससे दोनों संस्कृतियों के बीच एक नए आयाम का निर्माण होता है।
इस पहल से महाकुंभ 2025 न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से एक ऐतिहासिक घटना बन जाएगा, बल्कि यह वैश्विक स्तर पर भारतीय कला और हस्तशिल्प को बढ़ावा देने का एक प्रमुख माध्यम भी बनेगा।