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काला दिखने लगा हिमालय, पर्यावरणविद चिंतित

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- पर्यटन बढ़ा तो पिघलने लगी बर्फ, प्रदूषण की वजह 

हिमालय में बढ़ते पर्यटन और जलवायु परिवर्तन की वजह से वहां की पारिस्थितिकी को गंभीर खतरे का सामना करना पड़ रहा है। वैज्ञानिक और पर्यावरणविद इस बात को लेकर चिंतित हैं कि ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, जिससे हिमालय का भूगोल और पर्यावरण दोनों प्रभावित हो रहे हैं।

बढ़ते खतरे - 

ग्लेशियरों का पिघलना- ग्लोबल वार्मिंग के कारण हिमालय के ग्लेशियरों की पिघलने की दर में 65% तक वृद्धि हुई है। अनुमान है कि अगर यही हाल रहा तो सदी के अंत तक 30-80% तक बर्फ खत्म हो सकती है। इससे गंगा, ब्रह्मपुत्र और अन्य नदियों के जल स्तर में कमी आएगी, जो करोड़ों लोगों के लिए संकट बन सकता है।

कालापन और गर्मी का प्रभाव -

हिमालय में बर्फ का काला होना (अल्बीडो प्रभाव का घटाव) और सतह पर जमा धूल और कार्बन के कारण सूर्य की किरणें अधिक अवशोषित हो रही हैं। इससे बर्फ पिघलने की गति तेज हो रही है। पर्यटन और मानवीय गतिविधियां इस समस्या को और बढ़ा रही हैं।


चरम मौसमी घटनाएं -

हिमालयी क्षेत्र में असामान्य गर्मी और बारिश की घटनाएं बढ़ रही हैं, जिससे खेती और पारिस्थितिक संतुलन प्रभावित हो रहा है। अनियमित तापमान के चलते स्थानीय वनस्पतियां और फसलें भी प्रभावित हो  रही हैं।

उपाय और सुझाव -

पर्यावरण-हितैषी पर्यटन -

पर्यटन को नियंत्रित और पर्यावरण के अनुकूल बनाना जरूरी है ताकि प्रदूषण और कचरे का प्रभाव कम हो।

स्थानीय जागरूकता - 

हिमालयी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को जलवायु परिवर्तन और उसके प्रभावों के प्रति शिक्षित करना।

वैज्ञानिक अध्ययन और नीतियां -

सरकार को जलवायु अनुकूल नीतियों और ग्लेशियरों की निगरानी के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। हिमालय को बचाने के लिए वैश्विक और स्थानीय स्तर पर मिलकर प्रयास करना अत्यंत आवश्यक है। यह केवल पर्यावरण का मुद्दा नहीं है, बल्कि करोड़ों लोगों की आजीविका का सवाल भी है।