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इतिहास

स्पष्ट ध्येय तथा तदर्थ समर्पण का विशुद्ध भाव का होना जरुरी – श्री गुरुजी

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स्पष्ट ध्येय तथा तदर्थ समर्पण का विशुद्ध भाव का होना जरुरी – श्री गुरुजी

अपने दिनांक 2 मार्च, 1960 के पत्रोत्तर में श्री गुरुजी लिखते हैं, "(साधना) सफल हो। विद्यार्थी जीवन में बहुत उथल-पुथल होना स्वाभाविक है। स्पष्ट ध्येय तथा तदर्थ समर्पण का विशुद्ध भाव न होने से, साथ ही चारों ओर की आंदोलनकारी ध्वंसात्मक प्रणालियों में यौवन सुलभ झुकाव हो जाने से जीवन अस्तव्यस्त होकर आगे राष्ट्रोपयोगी होने की सम्भावना कम होती जा रही है। इसमें सब को मिलकर सुधार करने की चेष्टा करने की अत्यन्त आवश्यकता है। केवल छात्रों को उद्दंड आदि अपशब्दों का 'उपहार' देना ठीक नहीं, लाभदायी भी नहीं। "

।। श्री गुरूजी व्यक्तित्व एवं कृतित्व, डॉ. कृष्ण कुमार बवेजा, पृष्ठ – 138 ।।