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महर्षि वाल्मीकि ने रामायण के माध्यम से श्री राम को घर-घर तक पहुंचाया – डॉ. मोहन भागवत जी

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कामठी, नागपुर

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि महर्षि वाल्मीकि जी की महानता को तो हम सब लोग जानते हैं। हमारे जीवन में राम लाने वाले वही हैं। राम तो थे, और हो गए, परंतु घर-घर में राम महर्षि वाल्मीकि के कारण पहुंचे। उन्होंने रामायण लिखी और सब तक पहुंचाई। क्योंकि उनके मन की संवेदना सबको अपना मानने वाली थी। दुनिया का दुःख दूर हो, इसलिये उन्होंने यह किया। उस पर चिंतन करने की आवश्यकता है। सरसंघचालक जी वाल्मीकि समाज सेवा मंडल, कामठी, नागपुर द्वारा आयोजित महर्षि वाल्मीकि जन्मोत्सव समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। इस अवसर पर मंच पर सांसद सुमित्रा वाल्मीकि, अंशु रघुवंशी, विदर्भ प्रान्त सह संघचालक श्रीधर जी गाडगे और विधायक आशीष जायसवाल मंच पर उपस्थित रहे। सरसंघचालक जी ने कहा कि महर्षि वाल्मीकि जी का जन्म जयंती उत्सव मनाने के लिए हम यहां एकत्रित हैं। उत्सव शब्द से उत्साह शब्द आता है। उत्सव मनाते हैं, तो उत्साह बढ़ता है। लेकिन कौन-सा उत्साह बढ़ना चाहिए? तो जिनका उत्सव मनाते हैं, उनके जीवन के जो गुण हैं, उन गुणों का आचरण, अनुकरण करने का उत्साह बढ़ना चाहिए।

रामायण का मूल उद्देश्य

महर्षि वाल्मीकि जी ने दुनिया दुःख दूर करने के लिये रामायण लिखी और सब तक पहुंचाई। अगर दुनिया का दुःख दूर होना है, तो वो कोई जादू से दूर नहीं होता। क्योंकि दुःख क्यों पैदा होता है? दुःख हम लोग ही पैदा करते हैं। अपने स्वयं के जीवन में भी दुःख पैदा करने वाले हम ही हैं। दोष दूसरों को देते हैं। लेकिन कहीं न कहीं हमारा ही कर्म हमको खाता है। हमारे मन में स्वार्थ, भेद है, हम किसी नियम में बैठते नहीं, हम अपने आप को सबसे अलग और बड़ा मानते हैं, बाकी लोगों को नीच मानते हैं, ये बातें मन के अहंकार के कारण उत्पन्न होती हैं, उसके कारण जीवन में दुःख होता है। जो अहंकारी नहीं है, जो अपने फायदे-नुकसान की परवाह नहीं करता, यश-अपयश, जय-पराजय, मान-अपमान, इससे अलग होकर हर किसी परिस्थिति में जो मनुष्यता का बर्ताव करता है, सबके साथ अपने आप को जोड़कर एक मानकर बर्ताव करता है, वो स्वयं तो सुखी होता ही है, लेकिन दुनिया में सर्वदूर सुख का अवतरण करने का कारण बनता है। ऐसे उदाहरण को सारे समाज के सामने रखने के लिए उन्होंने रामायण रची।

रामायण यह कल्पना की बात नहीं है। यह ग्रंथ हमको बताता है कि उस समय जो प्रत्यक्ष राजा राम थे, वह जब बालक राम थे, जब वनवासी राम थे, जब युद्ध में लड़ने वाले राम थे, जब राजा राम थे, और उसके बाद एक कुटुंब वत्सल राम भी थे। राम के अनेक रूप हैं। तो एक पूरे जीवन का वर्णन किया। हमें रामायण में एक आदर्श व्यक्ति, राजा राम का उदाहरण मिलता है। रामायण में एक आदर्श परिवार का भी उदाहरण मिलता है । भाई हो तो भरत जैसा, माता हो तो कौशल्या जैसी। रामायण में जितने पात्र हैं, राम के कुटुंब में भी और रावण के कुटुंब में भी, दोनों की करनी अलग-अलग है, परस्पर विरुद्ध भी है, लेकिन एक-दूसरे के साथ कुटुंब में आचरण करने के मूल्य समान हैं। हमको व्यक्ति के नाते कैसा रहना चाहिए जीवन में, राम बताते हैं। हमारे कुटुंब में हम सबको परस्पर व्यवहार कैसा रखना चाहिए, रामायण बताता है। आदर्श सेवक कैसा हो, आदर्श मंत्री कैसा हो राजा को सलाह देने वाला, श्री राम है, उनके भक्त हनुमान हैं। भक्ति के तो इतने उदाहरण हैं, विभीषण भी हैं, सुग्रीव भी हैं। जीवन के हर प्रकार के व्यक्ति के लिए आचरण का मार्गदर्शन वाल्मीकि जी की रामायण में है। उन्होंने केवल कथा नहीं बताई, उन्होंने हमारे लिए एक शाश्वत उपदेश दिया है।

मोहन भागवत जी ने कहा कि विश्व में भारत अपनी आध्यात्मिकता, सद्भावना, सद्-व्यवहार के कारण प्रसिद्ध है। और वह आध्यात्मिकता, सद्-व्यवहार, यह किसके कारण आया? वो सद्भावना सारे विश्व के प्रति हमारे मन में क्यों आई? उसके मूल में राम-कथा है, और राम-कथा का मूल है महर्षि वाल्मीकि जी की करुणा, महर्षि वाल्मीकि जी का आदर्शवाद। महर्षि वाल्मीकि जी ने केवल कथा नहीं लिखी, उनका स्वयं का जीवन ऐसा था। उनके कथा के नायक राम थे, वह वास्तविक थे, कल्पना नहीं थी। उन्होंने देखकर उनका जीवन लिखा। ऐसा उत्तम चरित्र उन्होंने स्वयं चरितार्थ किया, जो चरितार्थ कर रहा था उसकी कहानी बताई। इसलिए बताई कि यह संस्कारों की परंपरा, गुणवत्ता की परंपरा, विश्व के प्रति सद्भाव की परंपरा सतत चलती रहे। परिस्थिति आती है उल्टी-सीधी। लेकिन दिमाग ठिकाने पर रहे, मन में शांति रहे, मन में प्रेम रहे, सद्भावना रहे और कष्ट उठाकर भी, सहन करके भी, लोग अच्छाई के मार्ग पर चलें, बुराई के मार्ग पर न चलें। सरसंघचालक जी ने कहा कि आज की गणना के अनुसार कहते हैं कि रामायण 8000 वर्ष पूर्व हो गई। तो 8000 वर्ष पूर्व जो उन्होंने सपना देखा था, वह 8000 वर्ष बाद आज भी हम लोग ऐसे प्रयत्नों से, धैर्यपूर्वक, सतत, मेहनत करते हुए, अपनी इन्हीं आँखों से, इसी देह में, इस देश में साकार कर सकते हैं और साकार करना चाहिए। मानवता के प्रति हमारा यह कर्तव्य है। क्योंकि हम भारतीय हैं, यह हमारी संस्कृति, हमारी परंपरा है, उसको आगे सरसाना हमारा कर्तव्य है। उस संस्कृति के कारण ही हम वास्तविक मनुष्य का जीवन पाते हैं। और एक व्यक्ति के नाते, हमारे अपने समाज के प्रति, हमारे अपने परिवार के प्रति अपना यह कर्तव्य है। ये त्रिविध कर्तव्य अपने पूरे हो जाएं, इसलिए इस प्रकार के उत्सव सहायभूत होते हैं। आज के प्रसंग का यह महत्व समझकर हम सब लोग इसका चिंतन करें और आचरण करें।