राहुल गाँधी अपने बेतुके बयानों के लिए जाने जाते हैं। खास तौर से जब वे विदेश दौरे पर होते हैं तब अपने ही देश के विरुद्ध ब्यान देते रहते हैं। कई बार तो लगता है कि वे विदेश जाते ही इसलिए हैं कि भारत विरोधी भ्रम फैलया जा सके। उन्हें लगता है ऐसा करके वे भारत में वर्तमान लोकतंत्र को खतरे में होने का भ्रम फैलाकर अपने विदेशी मित्रों को खुश कर सकते हैं। भारत और भारतवासियों के सन्दर्भ में झूठी और तथ्यों से परे बातें फैलाकर उन्हें ज़रा भी शर्मिंदगी महसूस नहीं होती कि एक देश के नागरिक के रूप में वे प्रसिद्धि पाने के लिए अपने ही देश के विरुद्ध देश के बाहर किसी सार्वजनिक मंच पर गैर-तथ्यात्मक ब्यान दे रहे हैं। राजनैतिक प्रतिद्वंदिता और नेता प्रतिपक्ष के चलते सरकार का विरोध करना, सरकार से प्रश्न पूछना उनका अधिकार बनता है और देश की संसद में उनको यह अधिकार मिला भी है। किन्तु अंतर्राष्ट्रीय फलक पर अपने ही देश के प्रति, अपने ही लोगों के प्रति टिप्पणी करना और देश की संसद में वाद प्रतिवाद करने का अंतर उन्हें पता नहीं है या वे इसे समझना ही नहीं चाहते हैं।
इस बार भी उन्होंने अपने अमेरिका दौरे में ऐसा ही किया, उन्होंने भारत के सम्बन्ध में अनेक भ्रम फैलाने का प्रयास किया है जिनमें से एक है सिख समुदाय को लेकर उनकी टिप्पणी। इस पर विवाद भी हो गया है। बात दरअसल यह है कि अमेरिका में एक मीडिया हाउस के सीईओ एक सिख है और उनका नाम भलिंदर सिंह वीरमानी है। एक कार्यक्रम के दौरान राहुल गाँधी ने उनसे कहा था, ''मेरे पगड़ीधारी भाई, आपका क्या नाम है? लड़ाई इस बात की है कि क्या एक सिख को भारत में पगड़ी या कड़ा पहनने का अधिकार है या नहीं। क्या सिख के रूप में वे गुरुद्वारे जा सकते हैं या नहीं। यह सिर्फ एक धर्म में नहीं, बल्कि सभी धर्मों के लिए है।'' बाद में स्वयं वीरमानी जी ने एक इंटरव्यू में कहा है कि कांग्रेस सांसद राहुल गाँधी की बातों में कोई भी तथ्य मौजूद नहीं है। इंटरव्यू में उनसे पूछा गया कि क्या आप पगड़ी और कड़ा इसलिए पहन पा रहे हैं कि आप अमेरिका में हैं? हिन्दुस्तान में क्या इसे नहीं पहन पाएंगे? इस पर भलिंदर ने जवाब दिया, ''मैं इसे पहनकर बेझिझक भारत आ सकता हूं। मुझे जो पहचान मिली है, वह इस पगड़ी की वजह से ही मिली है। बिना किसी वजह के राहुल गांधी ने इस मुद्दे को छेड़ा है। इस मुद्दे में कोई भी तथ्य मौजूद नहीं है। जब भी कोई सिख स्कूल, कॉलेज या किसी और जगह जाता है, तो वहां आजतक ऐसा नहीं हुआ कि उसे पगड़ी और कड़ा पहनने का हक नहीं मिला हो। सभी को यह हक हमेशा मिला है। जो हमारे धार्मिक चिह्न हैं, उसे पहनकर हम लोग गुरुद्वारे, मेट्रो स्टेशन पर जा सकते हैं।'' भलिंदर सिंह वीरमानी ने आगे कहा, ''राहुल गांधी अपने 15-20 मिनट के संबोधन के बाद तुरंत हॉल से बाहर चले गए और हमें सवाल पूछने का मौका ही नहीं मिला। उन्होंने हमें सवाल पूछने का समय ही नहीं दिया। मैं उनसे पूछना चाहता था कि आखिर आपसे किसने कहा है कि ऐसे पगड़ी पहनने की आजादी नहीं है और न ही कड़ा पहन सकता है कोई सिख। मैं जानना चाहता था कि आखिर राहुल से किसने ऐसा कहा, क्या वजह कोई खास एजेंसी है या कोई खास लोग हैं, जिन्होंने ये बातें बताई हैं। राहुल ने कोई भी मीडियाकर्मी के सवाल नहीं लिए।''
ध्यान देने वाली एक बात यह भी है कि राहुल गाँधी के बयान के एक दिन बाद खालिस्तानी आतंकवादी और सीआईए के एजेंट पन्नू ने राहुल गांधी की प्रशंसा की और उनके बयान का इस्तेमाल भारत विरोधी एजेंडा चलाने के लिए किया और जनमत संग्रह और सिखों के लिए अलग देश खालिस्तान की मांग की। इसका मतलब है भारत का एक और विभाजन राहुल गांधी का बयान जुबान की फिसलन नहीं था, यह सुनियोजित बयान था राहुल गांधी ने भारत के खिलाफ युद्ध की घोषणा की है और भोले-भाले भारतीय अभी भी समझ नहीं पा रहे हैं जाति जनगणना के लिए लोगों को भड़काना, भाषा युद्ध के लिए लोगों को भड़काना, किसानों, युवाओं, अल्पसंख्यकों को एक-दूसरे के खिलाफ भड़काना, झूठ और गलत सूचनाओं पर भारत को दुनिया भर में बदनाम करना, लोगों को बुनियादी ढांचे को निशाना बनाने के लिए उकसाना, ये सब बातें संयोग नहीं हैं। यह भारत के विरुद्ध एक षड्यंत्र है।
दूसरी ओर एक अच्छी बात यह है कि भारत में राहुल गांधी की षड्यंत्रकारी कुटिलताओं को लोग अब समझने लगे हैं यही कारण है कि राहुल गांधी की टिप्पणी पर भारत के सिख समाज ने अपना आक्रोश जताया है। अमेरिका में सिखों को लेकर दिए गए बयान की राष्ट्रवादी स्वाभिमानी पंजाबी मोर्चा व राष्ट्रवादी सिख मोर्चा ने घोर निंदा की। 11 सितम्बर को चुक्खुवाला में आयोजित बैठक में संयोजक कुलदीप सिंह ललकार ने कहा कि अमेरिका में राहुल गांधी ने सिखों को लेकर जो बयान दिए हैं, उन्हें उसके लिए माफी मांगनी चाहिए।