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घट-घट के राम की लीला

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घट-घट के राम की लीला

राम इस लोक के अस्तित्व हैं। राम घट-घट में व्याप्त हैं। सृष्टि के प्रत्येक काया-पिण्ड में राम का वास है। इसलिए जम्बूद्वीप/आर्यावर्त या अखण्ड भारत में राम के स्वरूप का विमर्श वैदिक राम व लौकिक राम के रूप में होता है। इतिहास में राम नीतिमान राजा हैं और शास्त्रों में राम विष्णु के अवतार हैं। जबकि राम की लोक में व्याप्ति, ब्रह्म के रूप में हैं। राम लोक चेतना के पर्याय हैं। तभी तो श्रीराम लोक के हर मंगल, शुभ और अंतिम सत्य के प्रतिरूप हैं। लोक चेतना में आदर्श राज्य के रूप में रामराज्य, होली के अवसर पर होली रघुवीर ही खेलते हैं, दशहरा, दीवाली के अवसर पर रामलीला की जन-जन में व्याप्ति भी इसी का परिणाम है। इसीलिए रामलीला की व्यापकता का दायरा देश की सीमाओं से परे नेपाल, मॉरीशस, सूरीनाम, इंडोनेशिया, थाईलैंड, लाओस, कंबोडिया, म्यांमार आदि करीब 9 देशों में है। शारदीय नवरात्र में देश-विदेश में रामलीला के मंचन की धूम होती है। हिंदू जनमानस में नैतिकता, परस्पर सहयोग, बुराई पर अच्छाई की जीत, त्याग और आदर्श के लिए रामकथा का दुनिया भर में किसी न किसी रूप में मंचन होता है। रामलीला का मंचन भारत के साथ-साथ दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग रूप में बड़े धूमधाम के साथ किया जाता है। दक्षिण और पूर्वी एशिया के लगभग सभी देशों में किसी न किसी रूप में रामलीला विद्यमान है। यानी रामलीला वसुधैव कुटुम्बकम् की वाहक है।

रामलीला शाब्दिक रूप से मर्यादा पुरुषोत्तम राम के जीवन से जुड़ी विभिन्न लीलाओं का मंचन है। मुख्यतया यह आदकवि वाल्मीकि रचित आदि महाकाव्य रामायण और तुलसीदास कृत श्री रामचरितमानस महाकाव्य पर आधारित होती है। एक श्रृंखला के रूप में इसमें गीत, कथन, गायन और संवाद शामिल होते हैं। रामलीला का मंचन समग्र उत्तर भारत समेत देशभर में दशहरे के दौरान होता है। कई शताब्दियों से चली आ रही विश्व प्रसिद्ध, भव्य और प्राचीन रामलीला में बनारस के रामनगर की रामलीला, अयोध्या की रामलीला, वृंदावन, अल्मोड़ा, सतना, मधुबनी, प्रयागराज और दिल्ली की रामलीलाएं शामिल हैं।

रामलीलाओं का मंचन वाल्मीकि रामायण, श्रीरामचरितमानस, राधेश्याम रामायण जैसे ग्रंथों में वर्णित प्रसंगों से सराबोर करीब दस-बारह दिनों तक चलता है। लेकिन वाराणसी के रामनगर की रामलीला पूरे एक महीने तक चलती है। साथ ही वाराणसी की रामलीला सबसे पुरानी ज्ञात रामलीला में से एक है। इसकी शुरुआत करीब 477 साल पहले हुई थी। यानी 16वीं शताब्दी में।

इस तरह जन-जन के आराध्य राम की लीला मनोरंजन से कहीं अधिक विकारों से मुक्ति का ब्रह्मास्त्र है। शारदीय नवरात्र के करीब दस दिनों तक चलने वाली रामलीला से जन-जन को आदर्श परिवार, त्याग और राष्ट्र के प्रति वचनों को निभाने का समर्पण बोध प्राप्त होता है। इससे सहज ही रामनाम का बोध आत्मशोधन का आलंबन बनता है। चूंकि राजा, मर्यादा पुरुषोत्तम या अवतार से कहीं अधिक लोक में भगवान श्रीराम की स्वीकार्यता है। राम सार्वभौमिक संबल और मंगल के रूप में स्वीकार्य हैं। गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्रीरामचरितमानस की रचना से कई हजार वर्ष पहले रामायण महाग्रन्थ की रचना हो चुकी थी। थी। रामायण की रचना महर्षि वाल्मीकि ने संस्कृत भाषा में, वहीं तुलसीदास ने श्रीरामचरितमानस की रचना अवधी भाषा में की थी। साथ ही करीब दो सौ से ज्यादा ऐसी रामकथाएं हैं जो दुनिया के अलग-अलग हिस्सों और भाषाओं में मौजूद हैं। इसके अलावा हजारों लोक कथाएं भी राम से जुड़ी हैं। यानी राम सगुण-निर्गुण और धर्म से परे संपूर्ण वसुधा एवं सभी मानव के हैं।

संस्कृति, हिन्दी के अलावा अन्य भारतीय भाषाओं में भी राम कथा की उपलब्ध है। मराठी, बांग्ला, तमिल, तेलुगु ओडिया, गुजराती, मलयालम, कन्नड, असमिया, उर्दू, अरबी, फारसी आदि भाषाओं में राम कथा लिखी गयी है। इसके अलावा महाकवि कालिदास, भास, भट्ट, प्रवरसेन, भवभूति, राजशेखर, सोमदेव, रामानंद, गुणादत्त, ईश्वर दास, केशवदास, गुरु गोविंद सिंह, समर्थ रामदास, संत तुकडोजी महाराज, मैथिलीशरण गुप्त, सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला आदि करीब तीन सौ से अधिक कवियों तथा संतों ने अलग-अलग भाषाओं में राम तथा रामायण के अन्य पात्रों से संबंधित काव्यों/कविताओं की रचना की है।

इस तरह राम शब्दों, भाषाओं, उपमाओं, सीमाओं और परिणामों से परे हैं, लेकिन भावी पीढ़ी को अपनी संस्कृति की आत्मा अर्थात् राम से परिचित कराने के लिए किसी ध्वनि, दृश्य और कथा की आवश्यकता पड़ती है। ऐसे में कालातीत से रामलीला ही वह सर्वश्रेष्ठ माध्यम रही है जिससे सहज रूप से आम जन मानस सनातन धर्म के मूल से प्रेरणा लेकर भारतीय संस्कृति के तत्वों को आत्मसात करता रहा है। रामलीला के प्रमुख पात्र श्रीराम, सीता, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न, हनुमान, सुग्रीव, अंगद, बाली, रावण, जटायु, समुद्र, मेघनाद, कुंभकर्ण और विभीषण सभी के जीवन से जुड़े प्रसंग से हम सभी को प्रेरणादायक शिक्षा मिलती है। रामलीला एक चरित-काव्य की तरह है, जिसमें राम का सम्पूर्ण जीवन-चरित हमें शिक्षा देता है कि हमेशा बुराई पर अच्छाई की ही जीत होती है। अत्याचारी कितना भी शक्तिशाली क्यों ना हो वह सच्चाई से एक न एक दिन निश्चित परास्त ही होता है। इसी तरह रामलीला से विविधता में एकता, सच्ची भक्ति, समर्पण, समान व्यवहार और व्यक्तिगत स्वार्थ से बड़ा त्याग आदि की शिक्षा मिलती है। चूंकि उपर्युक्त बिंदु आदर्श जीवन के आधार स्तंभ हैं, इसलिए वर्तमान में असंतुष्ट मनुष्य को रामलीला सहज ही आदर्श जीवन जीने की कला सिखाती है। रामलीला के अनेक पात्रों और विभिन्न प्रेरक प्रसंगों से व्यक्ति, समाज, देश यहां तक समूचा विश्व सच्चाई की प्रेरणा से सद्मार्ग पर बढ़कर रामराज्य की स्थापना में समन्वित रूप से सहभागी बन सकता है। रामलीला के विभिन्न चरण जीवन को सीख देते हैं कि आदर्श, सदाचार और मर्यादा जैसे गुणों को धारणकर जीवन और समाज की समृद्धि का मार्ग प्रशस्त किया जा सकता है।

इस तरह रामलीला व्यक्ति को सुसंस्कृत बनाने का सबसे सशक्त माध्यम है। रामलीला हमारी दृष्टि और संवेदनशीलता को प्रखर करती है जिससे समझ और चिंतन में राष्ट्रीय एकता की भावना मजूबत होती है। आधुनिक टेक्नोलॉजी के दौर में रामलीला, प्राचीन और आधुनिकता के समन्वय का बेहतरीन मंच है जो भौतिकता, आध्यात्मिकता, व्यवहार और सिद्धांत में समन्वय स्थापित करती है। यही नहीं बिखरते पारिवारिक भाव और क्षरण होते नैतिक मूल्यों को रोकने में रामलीला अद्वित्तीय है। इस तरह रामलीला धार्मिक पक्ष से अधिक शैक्षिक पहलुओं के लिए समन्वित चिंतन का संगम है। रामलीला से आदर्श गार्हस्थ्य जीवन, आदर्श पारिवारिक जीवन, पतिव्रत धर्म, आदर्श भातृधर्म, ज्ञान, त्याग, वैराग्य के साथ आदर्श राजधर्म और सदाचार की शिक्षा मिलती है। एक लाइन में कहें तो रामलीला, भगवान श्री राम की आदर्श मानव लीला को व्यक्त करने का सर्वाेत्तम, अद्तवित्तीय और अनमोल माध्यम है।