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विभिन्न समुदायों को उत्सवों के लिए एक साथ लाता सितम्बर

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विभिन्न समुदायों को उत्सवों के लिए एक साथ लाता सितम्बर

इस माह के त्योहार दुनियाभर में सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और प्राकृतिक अनुभवों का अनूठा मेल दिखाते हैं। कटाई के महीने की शुरुआत भी हो जाती है। गणपति उत्सव, दुर्गापूजा और ओणम तो चल ही रहा है। संगीत उत्सवों का आनन्द और बढ़ा भी देता है।

चक्रधर समारोह 2 से 12 सितम्बर संगीतमय चक्रधर समारोह भारत की सांस्कृतिक विरासत को दर्शाता कलाप्रेमियों के लिए एक अमूल्य अनुभव है। छत्तीस के रायगढ़ का यह वार्षिक उत्सव महाराजा चक्रधर के सम्मान में भारतीय संगीत और नृत्य का जश्न मनाता है।

दक्षिण भारत में ओणम केरल का प्राचीन पारंपरिक, धार्मिक, सांस्कृतिक उत्सव हैं, जिसे दुनियाभर में मलयाली समाज मनाता है। 5 सितम्बर को इसका समापन होगा। केरल में चार दिन की छुट्टी होती हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन प्रत्येक वर्ष राजा महाबलि पाताल लोक से धरती पर अपनी प्रजा को आशीर्वाद देने आते हैं और नई फसल आने की खुशी भी होती है। 

गणेशोत्सव आनन्द चतुर्थी (6 सितम्बर) दस दिन तक दक्षिण के कला शिरोमणि गणपति के लिए महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु गणपतिमय रहता है और पूरे देश में पूजा अर्चना के साथ-साथ सांस्कृतिक कार्यक्रम चलते हैं। बप्पा के आवाहन से लेकर विसर्जन तक श्रद्धालु, आरती, पूजा, सांस्कृतिक कार्यक्रमों में, लगभग सभी उपस्थित रहते हैं। घरों में भी गणपति 1,3,5,7,9 दिन बिठाते हैं। इसमें गौरी पूजन, दो दिन महालक्ष्मी पूजन, छप्पन भोग हैं। अष्टमी को ऐसा माना जाता है कि इस दिन गौंरा अपने गणपति से मिलने आती हैं। उपवास रखकर, कुल्हड़ गुड़ियों के रुप में गौरी को पूजते हैं और सबको भोजन कराते हैं। अगले दिन शाम को आरती के बाद कीर्तन होता है। मंगलकारी बप्पा साल में एक बार तो आते हैं इसलिए उनके सत्कार में कोई कमी न रह जाए। अपनी सामर्थ्य के अनुसार मोदक, लड्डू के साथ तरह तरह के व्यंजनों का भोग लगाते हैं।

आनंद चतुर्दशी 6 सितम्बर के दिन गणपति विसर्जन होता है। ढोल के साथ नाचते हुए गणपति से विनती करते हुए कहते हैं कि अगले बरस तूं जल्दी आ और विसर्जन जूलूस में जाते हैं।  

गणपति की कथाएं बड़ी रोचक हैं। महर्षि वेदव्यास महाभारत की कथा लिखना चाह रहे थे पर उनके विचार प्रवाह की रफ्तार से, कलम साथ नहीं दे रही थी। उन्होंने गणपति से लिखने को कहा। उन्होंने लिखना स्वीकार किया पर पहले तय कर लिया कि वे लगातार लिखेंगे, जैसे ही उनका सुनाना बंद होगा, वह आगे नहीं लिखेंगे। महर्षि ने भी गणपति से प्रार्थना कर, उन्हें कहा,’’ आप भी एडिटिंग साथ-साथ करेंगे।’’ गणपति ने स्वीकार कर लिया। जहां गणपति करेक्शन के लिए सोच विचार करने लगते, तब तक महर्षि अगले प्रसंग की तैयारी कर लेते। वे लगातार कथा सुना रहे थे। दसवें दिन जब महर्षि ने आखें खोलीं तो पाया कि गणपति के शरीर का ताप बढ़ गया है। उन्होंने तुरंत पास के जलकुंड से जल लाकर उनके शरीर पर प्रवाहित किया। उस दिन भाद्रपद की चतुर्दशी थी। इसी कारण प्रतिमा का विर्सजन चतुर्दशी को किया जाता है। महाराष्ट्र इसे मंगलकारी देवता के रूप में व मंगलपूर्ति के नाम से पूजता है। 

हिन्दू धर्म में पितृ पक्ष (8 सितम्बर से 21 सितम्बर) का विशेष महत्व है। मान्यता है कि यमराज श्राद्ध पक्ष में पितरों को मुक्त कर देते हैं ताकि वे स्वजनों के यहां जाकर तर्पण ग्रहण कर सकें। पितरों के निमित्त किए गए तर्पण से पितर, तृप्त होकर वंशजों को आशीर्वाद देते हैं। जिससे जीवन में सुख समृद्धि प्राप्त होती है। महालय अमावस को पितृ विसर्जन करते हैं। 

सृजन, निर्माण, वास्तुकला, औजार, शिल्पकला, मूर्तिकला एवं वाहनों के देवता विश्वकर्मा की जयंती (17 सितम्बर) को मनाई जायेगी। कारीगरों का यह उत्सव का दिन है। सब एक जगह इक्कट्ठा होकर पूजा करते हैं और फिर मूर्ति का विर्सजन करते हैं।

आभानेरी महोत्सव (17 से 19 सितम्बर) में कालबेलिया नृत्य, लंगा नृत्य, कच्छी घोड़ी नृत्य, भवाई नृत्य, रास लीला, कठपुतली शो का आनन्द उठाते हुए हम राजस्थान की जातीय कलाकृतियां और हस्तशिल्प खरीद सकते हैं। ऊँट गाड़ी की सवारी करते हुए फूलों और रंगोली की सजावट देखने लायक होती है। जयपुर से 80 किमी. दूर आभानेरी गाँव में चांद बावड़ी और हर्षत माता मंदिर के बीच में मनाया जाता है। 

नीलमपेरूर पदायनी (21 और 22 सितम्बर) अलपुझा जिले में खूबसूरत गांव नीलमपेरूर में पल्ली भगवती मंदिर को उत्सव मनाने के लिए खूब सजाया जाता है। ओणम के महीने में होने से यह केरल में बहुत लोकप्रिय है। जिसमें पुतले लेकर एक जलूस निकाला जाता है। 

अग्रसेन जयंती (22 सि.) को महान हिंदू राजा महाराजा अग्रसेन का जन्मदिन उत्तर भारत में धूमधाम से मनाया जाता है। 

शरदोत्सव दुर्गोत्सव (22 सि. से 2 अक्तूबर) एक वार्षिक हिन्दू पर्व है। जिसमें प्रांतों में अलग अलग पद्धति से देवी पूजन है। गुजरात का नवरात्र में किया जाने वाला गरबा नृत्य तो पूरे देश का हो गया है। जो नहीं करते वे देखने जाते हैं।

बतुकम्मा महोत्सव (22 सि. से 30सि)ः- आंध्र प्रदेश और तेलंगाना राज्य की महिलाओं द्वारा, बड़े उत्साह से पूरे नौ दिन मनाया जाने वाला बतुकम्मा महोत्सव हैं। ये शेष भारत के शरद नवरात्रि से मेल खाता है। प्रत्येक दिन बतुकम्मा उत्सव को अलग नाम से पुकारा जाता है। जंगलों से ढेर सारे फूल लाते हैं। फूलों की सात पर्तों से गोपुरम मंदिर की आकृति बनाकर बतुुकम्मा अर्थात् देवी माँ पार्वती को महागौरी के रूप में पूजा जाता है। 

उत्तर भारत में नौ दिन तक देवी मंदिर सारा दिन खुले रहते हैं। भगवती जागरण, माता की चौंकी, भण्डारों का आयोजन किया जाता है। घरों में महिलाएं कीर्तन आयोजित करती हैं। जहां वे माबेाइल के जमाने में भी अपनी पुरानी भजनों की डायरियाँ लेकर जाती हैं।    

महाअष्टमी और महानवमी को नौ बाल कन्याओं की पूजा की जाती है जो देवी नवदुर्गा के नौ रूपों का प्रतिनिधित्व करतीं हैं। 

करणी माता महोत्सव दशनोक, बीकानेर राजस्थान में नवरात्र को मनाया जाता है। यहां नवरात्र में मेला लगता है।

तिरूमाला में ब्रह्मोत्सव (30 सि. से 8 अक्तू.) मनाया जा रहा है। किंवदंती है कि भगवान ब्रह्मा ने सबसे पहले तिरूमाला में ब्रह्मोत्सव मनाया था। तिरूमाला में तो हर दिन एक त्यौहार है और धन के भगवान श्री वेंकटेश्वर साल में 450 उत्सवों का आनन्द लेते हैं। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण ब्रह्मोत्सव है। जिसका शाब्दिक अर्थ है ’ब्रह्मा का उत्सव’ जिसमें हजारो श्रद्धालु इस राजसी उत्सव को देखने जाते हैं।

दशहरे की छुट्टियों में जगह-जगह रात को रामलीला मंचन, मंच पर होता है। जिसे बच्चे बहुत ध्यान से देखते हैं। लौटते हुए रामलीला के मेले से गत्ते, बांस, चमकीले कागजों से बने चमचमाते धनुष बाण, तलवार और गदा आदि शस्त्र खरीद कर लाते हैं और वे दिन में पार्कों में रामलीला का मंचन करते हैं। जिसमें सभी बच्चे कलाकार होते हैं। उन्हें दर्शकों की जरुरत ही नहीं होती। इन दिनों सारा शहर ही राममय हो जाता।

 दुर्गा पूजा- 28 सि. से 2 अक्तूबर यह भारतीय उपमहाद्वीप व दक्षिण एशिया में मनाया जाने वाला सामाजिक -सांस्कृतिक धार्मिक वार्षिक हिन्दू पर्व है। पश्चिम बंगाल, असम, बिहार, झारखण्ड, मणिपुर, ओडिशा और त्रिपुरा में सबसे बड़ा उत्सव माना जाता है। नेपाल और बंगलादेश में भी बड़े त्यौहार के रुप में मनाया जाता है। दुर्गा पूजा पश्चिमी भारत के अतिरिक्त दिल्ली, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब, कश्मीर, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक और केरल में भी मनाया जाता है। हिन्दू सुधारकों ने ब्रिटिश राज में इसे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलनों का प्रतीक भी बनाया। दिसम्बर 2021 में कोलकता की दुर्गापूजा को यूनेस्को की अगोचर सांस्कृतिक धरोहर की सूची में शामिल किया गया है। 

बहू मेला जम्मू और कश्मीरः जम्मू में आयोजित होने वाले सबसे बड़े हिंदू त्योहारों में से एक है। यह जम्मू के बहू किले में नवरात्रों के दौरान मनाया जाता है। इस दौरान पर्यटक और स्थानीय लोग रंगीन पोशाकें पहनते हैं और मेले में खरीदारी करते हैं और खाने के स्टॉल में वहां के पारम्परिक खानों का स्वाद लेते हैं।

तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक में दशहरे से पहले नौ दिनों को तीन देवियों की समान पूजा के लिए तीन तीन दिनों में बांट दिया है। पहले तीन दिन धन और समृद्धि की देवी लक्ष्मी को समर्पित हैं। अगले तीन दिन शिक्षा और कला की देवी सरस्वती को समर्पित हैं। और बाकि तीन दिन माँ शक्ति दुर्गा को समर्पित हैं 

जीरो संगीत महोत्सव (25 से 28 सि.) अरुणाचल प्रदेश की जीरो घाटी में आयोजित होने वाला यह चार दिवसीय संगीत महोत्सव है। जो इस क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत दिखाता है। यह महोत्सव स्वतंत्र कलाकारों के लिए प्राकृतिक सुंदरता के बीच संगीत कला प्रेमियों को मंच देता है।

नीरसता को समाप्त करते हमारे पर्व आनन्द के साथ पारिवारिक, सामाजिक व राष्ट्रीय एकता में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।