संघ संस्मरण
वर्ष 1957 के चुनाव से पहले श्री गुरु जी ने कहा, “ मैं अपने महान हिंदू लोगों का संबोधन करता हूं, उनके लिए मैं यत्न करता हूं, जिनके लिए मेरा धर्म बना है, यह पक्के अनश्वर हिंदू लोग, जिन्हें में चिरकालिक देवत्व के प्रामाणिक दर्शनों के रूप में पूजता हूं। मैं प्रार्थना करता हूं कि वह स्वयं को अपनी आत्म चेतना से ऊंचा उठाएं और स्वतंत्र रूप से तथा निडर होकर अपने वोट के अधिकार का निर्वहन करें, बिना भ्रमित हुए, बिना विचलित हुए अथवा बिना डरे, किसी भी व्यक्ति या पार्टी के वर्चस्व के प्रति। उन्हें सावधान रहना होगा और दृढ़ता के साथ ऐसे लोगों या पार्टियों को वोट देना होगा, जो हिंदुओं तथा हिंदू हितों को समर्पित हो चुकी हैं और संकीर्ण प्रांतवाद से स्वतंत्र हैं, प्रगतिवादी हैं, बेकार की नफरत और अपने विरोधियों के प्रति अनावश्यक शत्रुता से स्वतंत्र हैं, दृढ़ता से तथा आवश्यक रूप से हिंदू हैं, जिनका चरित्र उज्जवल है, व्यक्तिगत अथवा राष्ट्रीय, जो लोगों और राष्ट्र की सेवा के लिए पूर्ण समर्पण भाव से दृढ़ निश्चय ले चुके हैं, जो एक समरूप तथा समन्वित कार्य के मूल्य तथा प्रणाली को जानते हैं और अपनी मातृभूमि, राष्ट्र और लोगों के प्रति निष्ठा एवं समर्पण रखते हैं और जो सर्वाधिक भारी तथा सर्वाधिक कष्टमय कार्य को संपूर्ण रूप से अपने कंधों पर उठा सकते हैं, अपने निजी सुखों का परित्याग करते हुए और जो अपने वोट को बेकार नहीं होने देना चाहते। वे ही ठीक प्रकार का चुनाव कर पाएंगे और एक उज्जवल होते हुए राष्ट्र जीवन की कभी न हिल पाने वाली जड़ों को डालने में सहायक होंगे, इन सबके साथ, जो हमारी प्रिय मातृभूमि की ओर संकेत करता है- हमारी भारत माता।”
।। 5 सरसंघचालक, अरुण आनंद, प्रभात प्रकाशन, प्रथम संस्करण-2020, पृष्ठ- 97 ।।