प्रेरणा डेस्क
छत्रपति शिवाजी महाराज भारत की स्वतंत्रता के महान नायक हैं, जिन्होंने ‘स्वराज्य’ के लिए संगठित होना, लड़ना और जीतना सिखाया। मुगलों के लंबे शासन और अत्याचारों के कारण भारत का मूल समाज आत्मदैन्य की स्थिति में चला गया था। विशाल भारत के किसी न किसी भू-भाग पर मुगलों के शोषणकारी शासन से मुक्ति के लिए संघर्ष तो चल रहा था, लेकिन उन संघर्षों से बहुत उम्मीद नहीं थी। भारत के वीर सपूत अपने प्राणों की बाजी तो लगा रहे थे, लेकिन समाज को जागृत और संगठित करने का काम नहीं कर पा रहे थे। जबकि छत्रपति शिवाजी महाराज ने समाज के भीतर विश्वास जगाया कि यदि सब एकजुट हो जाएं तो हम मुगलों के शासन को जड़ से उखाड़कर फेंक सकते हैं। यही कारण है कि छत्रपति शिवाजी महाराज के देवलोकगमन के बाद भी ‘हिन्दवी स्वराज्य’ का विचार पल्लवित, पुष्पित और विस्तारित होता रहा। ‘हिन्दू साम्राज्य दिवस’ या ‘श्री शिव राज्याभिषेक दिवस’ भारतीय इतिहास की महत्वपूर्ण घटना है। घटना ने बताया कि भारत के भाग्य विधाता मुगल नहीं हैं। भारत का हिन्दू समाज ही भारत का भाग्य विधाता है।
विक्रम संवत 1731, ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष त्रयोदशी को स्वराज्य के प्रणेता एवं महान हिन्दू राजा श्री शिव छत्रपति के राज्याभिषेक और हिन्दू पद पादशाही की स्थापना से भारतीय इतिहास को नयी दिशा मिली। दासता के घोर अंधकार में स्वराज्य की एक चमकदार रोशनी था – हिन्दवी स्वराज्य। हिन्दू साम्राज्य दिवस को हम भारत के स्वराज्य की हुंकार भी कह सकते हैं, जब हिन्दुओं ने आत्मविश्वास से सीना ठोंककर मुगलों को ललकारा और कहा कि भारत में एक बार फिर स्वराज्य की स्थापना हो गई है, जिसमें सबका कल्याण है। अनेक इतिहासकार एवं विद्वान कहते हैं कि छत्रपति शिवाजी महाराज ने हिन्दवी स्वराज्य की स्थापना न की होती, तो भारत का इतिहास कुछ और होता। यह अतिशयोक्तिपूर्ण विचार नहीं है। अपितु भारत के पड़ोसी देशों एवं दूर-दराज के उन देशों की स्थिति को देखकर सहज कल्पना की जा सकती है, जहाँ मूल समाज की अपेक्षा बाहरी आक्रांताओं का शासन स्थायी हो गया। ऐसे देशों में वहाँ के मूल समाज की संस्कृति लगभग समाप्त हो गई है। हम कल्पना ही कर सकते हैं कि जिस प्रकार के अत्याचार मुगल शासक भारत में कर रहे थे, उसके बाद हिन्दू समाज किस स्थिति को प्राप्त होता।
प्रसिद्ध मराठा इतिहासकार जीएस सरदेसाई ने लिखा है कि “मुस्लिम शासन के अधीन पूर्ण अंधकार छाया हुआ था। न कोई पूछताछ होती थी, न न्याय मिलता था। अधिकारी जो चाहें, वही करते थे। स्त्रियों के सम्मान का हनन, हत्याएं, हिन्दुओं का जबरन धर्म परिवर्तन, उनके मंदिरों का विध्वंस, गायों का वध – ऐसे घिनौने अत्याचार उस शासन में आम बात थे। निजामशाही ने तो खुलेआम जीजाबाई के पिता, उनके भाइयों और पुत्रों की हत्या कर दी थी। बजाजी निंबालकर को जबरन मुसलमान बनाया गया। ऐसे अनगिनत उदाहरण दिए जा सकते हैं। हिन्दू सम्मानजनक जीवन नहीं जी सकते थे। यही बातें थीं, जिन्होंने शिवाजी के भीतर धर्मसम्मत क्रोध जगा दिया। विद्रोह की प्रबल भावना ने उनके मन को पूरी तरह घेर लिया। उन्होंने तुरंत कार्य आरंभ कर दिया। उन्होंने मन ही मन सोचा, जिसके हाथ में शस्त्र की शक्ति है, उसे कोई भय नहीं होता, कोई कठिनाई नहीं आती”। औरंगजेब का शासन तो हिन्दुओं के लिए किसी नर्क से कम नहीं था।
मुगलों के अनीतिपूर्ण शासन के बरक्स छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा स्थापित स्वराज्य में लोकहित सर्वोपरि था। उन्होंने शासन को ‘स्व’ के आधार पर विकसित किया, इसलिए वह सबका अपना स्वराज्य था। महाराज ने राज्य के प्रत्येक तत्व यानी जल, जंगल, जमीन और जन के लिए नीतियां बनायीं। भारत की संस्कृति का संरक्षण किया। हिन्दू धर्म और उसके पवित्र स्थलों को प्राथमिकता दी। आज भी हम हिन्दू साम्राज्य को याद करते हैं, उसका कारण है कि वह सार्वकालिक एवं सार्वभौमिक है। प्रसिद्ध इतिहासकार जदुनाथ सरकार लिखते हैं – “शिवाजी के राजनीतिक आदर्श ऐसे थे, जिन्हें हम आज भी बिना किसी परिवर्तन के स्वीकार कर सकते हैं। उनका उद्देश्य था अपनी प्रजा को शांति देना, सभी जातियों और धर्मों के लिए समान अवसर सुनिश्चित करना, एक कल्याणकारी, सक्रिय और निष्पक्ष प्रशासनिक व्यवस्था स्थापित करना, व्यापार को बढ़ावा देने के लिए नौसेना का विकास करना और मातृभूमि की रक्षा के लिए एक प्रशिक्षित सेना तैयार करना”। छत्रपति शिवाजी महाराज की नीतियों पर चलकर हम आज भी एक श्रेष्ठ भारत का निर्माण कर सकते हैं।