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दो मुस्लिम रोहिंग्या महिलाओं को 15 महीने की सजा

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अलीगढ़। 

-बिना पासपोर्ट के कैसे रहते हैं लोग, अभी तक नहीं है कोई ठोस नीति 

-भारत में रोहिंग्या शरणार्थियों की संख्या 18,000 के करीब

- भारत ने संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी कन्वेंशन 1951 पर नहीं किए थे हस्ताक्षर

-भारत के पास नहीं है कोई शरणार्थी नीति 

अलीगढ़ में दो मुस्लिम रोहिंग्या महिलाओं को बिना पासपोर्ट के पकड़ा गया था, जिसके बाद उन्हें 15 महीने की सजा सुनाई गई। ये महिलाएँ म्यांमार की रोहिंग्या समुदाय की सदस्य हैं, जो भेदभाव और अत्याचार के चलते अपने देश से भागकर भारत में शरण लेने आई थीं। गिरफ्तारी के बाद, स्थानीय पुलिस ने मामले की जांच शुरू की और पता चला कि ये महिलाएं अवैध रूप से भारत में रह रही थीं। उनके पास कोई वैध दस्तावेज नहीं था, जिसके कारण उन्हें गिरफ्तार किया गया। इस घटना ने भारत में रोहिंग्या शरणार्थियों के अधिकारों और उनके कानूनी स्थिति पर एक बार फिर बहस छेड़ दी है, क्योंकि भारत में फिलहाल कोई ठोस शरणार्थी नीति नहीं है।

भारत में रोहिंग्या शरणार्थियों की संख्या लगभग 18,000 के करीब है, और इन्हें अक्सर भेदभाव और अन्याय का सामना करना पड़ता है। हाल की घटनाओं ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत में रह रहे रोहिंग्याओं की स्थिति अत्यंत नाजुक है और उन्हें अधिकारों से वंचित रखा जा रहा है। पुलिस ने अन्य रोहिंग्या प्रवासियों की भी पहचान करने के लिए जांच प्रक्रिया को आगे बढ़ाया है रोहिंग्या लोग म्यांमार के एक मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदाय हैं, जो मुख्य रूप से राख़िन राज्य में निवास करते हैं। उन्हें लंबे समय से भेदभाव, अत्याचार और हिंसा का सामना करना पड़ा है, खासकर म्यांमार की सेना द्वारा। 2017 में, म्यांमार की सरकार के खिलाफ बड़े पैमाने पर हिंसा के कारण लाखों रोहिंग्या लोग पड़ोसी देशों, खासकर बांग्लादेश और भारत, में शरण लेने के लिए आ गए।


भारत में लगभग 18,000 रोहिंग्या लोग अवैध रूप से रह रहे हैं, और उन्हें अक्सर स्थानीय अधिकारियों द्वारा उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। इस समुदाय के लिए कोई विशेष शरणार्थी नीति नहीं होने के कारण उनकी स्थिति बहुत नाजुक है, और उन्हें अक्सर कानूनी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

भारत में रोहिंग्या शरणार्थियों के लिए कोई विशिष्ट शरणार्थी कानून नहीं है। हालांकि, कुछ मुख्य बिंदुओं पर गौर किया जा सकता है:

नागरिकता का अभाव:

रोहिंग्या लोगों को म्यांमार में नागरिकता से वंचित किया गया है, और भारत में भी उन्हें नागरिक अधिकार नहीं दिए गए हैं। भारत में रहने वाले रोहिंग्याओं को अवैध प्रवासी माना जाता है, जिससे उनकी कानूनी स्थिति अत्यंत कमजोर हो जाती है।

शरणार्थी कानून की कमी:

भारत ने संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी कन्वेंशन 1951 पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं और इसलिए यहां कोई ठोस शरणार्थी नीति नहीं है। इसके कारण, रोहिंग्या जैसे शरणार्थियों को कानूनी संरक्षण नहीं मिलता।

स्थानीय प्राधिकरण का दखल:

विभिन्न राज्य सरकारें और स्थानीय प्राधिकरण अक्सर रोहिंग्याओं के खिलाफ कार्रवाई करते हैं। जैसे कि, हाल ही में उत्तर प्रदेश में रोहिंग्या शरणार्थियों की गिरफ्तारी की गई, जिसमें कई को अवैध रूप से देश में रहने के आरोप में पकड़ा गया।

मानवाधिकार मुद्दे: मानवाधिकार संगठनों ने रोहिंग्या समुदाय की स्थिति को लेकर चिंता जताई है। इन संगठनों का मानना है कि रोहिंग्या लोगों को शरण और सुरक्षा की आवश्यकता है, और भारत को एक शरणार्थी नीति विकसित करने की आवश्यकता है।