अमरावती
प्रज्ञा प्रवाह के अखिल भारतीय संयोजक जे. नंदकुमार जी ने कहा कि 1925 में जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना हुई थी, तब न कोई पद था, न कोई नेता, न कोई सचिव, फिर भी संघ अपने विचारों के प्रति निष्ठावान रहा और वटवृक्ष के रूप में संघ का पौधा तैयार किया। यह एक जैविक घटना है। संघ भारत की एकता और अखंडता के लिए कार्य करता रहा है। शाखा ही संघ की शक्ति है। हमारा दृढ़ विश्वास है कि भारत एक हिन्दू राष्ट्र था, है और भविष्य में भी रहेगा।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अमरावती महानगर 5 अक्तूबर को किरण नगर क्षेत्र स्थित नरसम्मा महाविद्यालय परिसर में आयोजित श्री विजयादशमी उत्सव में जे. नंदकुमार जी मुख्य वक्ता रहे। विभाग संघचालक चंद्रशेखर जी भोंदू, महानगर संघचालक उल्हास जी बापोरिकर मंच पर उपस्थित रहे।
नंदकुमार जी ने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार जी ने अपनी चिकित्सा की पढ़ाई के साथ-साथ अनुशीलन समिति में भी सक्रिय रूप से कार्य किया। यह समिति विभिन्न प्रकार से कार्य करने वाले लोगों का एक संगठन था। इसमें डॉक्टर हेडगेवार जी का योगदान अमूल्य था। जब डॉ. हेडगेवार देश की परतंत्रता के कारणों की खोज कर रहे थे, तब भाषा, क्षेत्र और जाति में विभाजित समाज उनकी आँखों के सामने आया और तभी उन्होंने व्यक्ति निर्माण के लिए कार्य करने का व्रत लिया। स्वामी विवेकानंद ने विदेशों में अपने भाषणों में दुनिया को केवल एक ही देवता की अर्थात भारत माता की पूजा करने को कहा था। डॉ. बाबासाहेब आम्बेडकर ने भी एक विदेशी विश्वविद्यालय में प्रस्तुत शोध पत्र में भारतीय संस्कृति और उसके विभिन्न मूल्यों का उल्लेख किया था। नंदकुमार जी ने कहा कि 1925 में स्थापित संघ का पौधा आज वटवृक्ष में प्रतिबिम्बित होता है। कोई भी राजनीतिक विचारधारा संघ की शक्ति नहीं है। संघ की शक्ति एक घंटे की दैनिक शाखा है और यही संघ का शक्ति केंद्र है। जब संघ संगठनात्मक रूप से विकसित हो रहा था, तब संघ ने कुछ नहीं किया। जिन क्षेत्रों में स्वयंसेवकों को कमियाँ महसूस हुईं, वहाँ स्वयंसेवकों ने स्वस्फूर्त रूप से कार्य करना प्रारंभ किया और वहाँ से विश्व हिन्दू परिषद, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, वनवासी कल्याण आश्रम जैसे विभिन्न समर्पित संगठन उभरे।
संघ की अक्सर स्वतंत्रता संग्राम के लिए आलोचना की जाती है। लेकिन, स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, स्वयंसेवकों ने छोटे और बड़े गाँवों में पूरे मन से भाग लिया। इसमें स्वयंसेवक रमाकांत देशपांडे ने आष्टी, चिमूर में आयोजित स्वतंत्रता संग्राम में अपने प्राणों की आहुति दी।
100 वर्षों से निरंतर कार्यरत संघ शाखा के बाल स्वयंसेवक संघर्ष के माध्यम से आज देश के सर्वोच्च प्रधानमंत्री पद तक पहुँचे हैं। समर्पण और निस्वार्थ सेवा इस सफलता की कुंजी है। पंच परिवर्तन करते हुए, प्रत्येक परिवार में हिन्दू संस्कृति के मूल्यों को पुनर्जीवित करना आवश्यक है। भजन, भोजन और भ्रमण में हिन्दू मूल्यों का विकास आवश्यक है।
डॉ. कमलताई गवई का संदेश –
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित न हो पाने के कारण, विपश्यना आचार्य डॉ. कमलताई गवई ने विजयादशमी और संघ शताब्दी की शुभकामना संदेश में कहा कि – मानव जीवन मानवीय मूल्यों से विकसित हुआ है और भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता विश्व के परिप्रेक्ष्य में सर्वश्रेष्ठ है। भारत प्राचीन काल से ही धार्मिक, सांस्कृतिक और शैक्षिक दृष्टि से विश्व के लिए एक आदर्श रहा है। तथागत बुद्ध, वर्धमान महावीर, सम्राट अशोक, संत कबीर, संत तुकाराम, महात्मा फुले, सावित्रीबाई फुले, महात्मा गांधी, स्वामी विवेकानंद, रामास्वामी पेरियार, डॉ. बाबासाहेब आम्बेडकर और अन्य अनेक महापुरुषों ने भारत में मानवीय मूल्यों को विकसित करने वाली एक महान परंपरा का निर्माण किया है।
डॉ. बाबासाहेब आम्बेडकर ने समानता, स्वतंत्रता, बंधुत्व, न्याय, वैज्ञानिक दृष्टिकोण और धर्मनिरपेक्षता के आधार पर भारतीय संविधान का निर्माण किया, जो आज भारत और उसके नागरिकों को विकास की ओर अग्रेसर कर रहा है। भारत सामाजिक, सांस्कृतिक और भाषाई विविधता वाला देश है और आज तक लोकतांत्रिक मूल्यों को केंद्र में रखकर विकास की ओर अग्रेसर हो रहा है। भारत को हमें एक अखंड (एकजीव) और सक्षम राष्ट्र के रूप में निर्माण करना है और यह समानता, स्वतंत्रता, बंधुत्व, न्याय, वैज्ञानिक दृष्टिकोण और धर्मनिरपेक्षता के माध्यम से ही संभव है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों के पास भी उपरोक्त मानवीय और संवैधानिक मूल्यों के माध्यम से भारत को एक सक्षम राष्ट्र के रूप में विकसित करने का एक बड़ा अवसर है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का शताब्दी विजयादशमी महोत्सव मनाया जा रहा है और मैं कुछ अपरिहार्य कारणों से उक्त कार्यक्रम में शामिल नहीं हो पा रहा हूँ। इस कार्यक्रम के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ।
विजयादशमी महोत्सव के प्रारंभ में, अतिथियों ने शस्त्र पूजन किया। गणवेश में स्वयंसेवकों ने ध्वज, दंड के साथ घोष की धुन पर अनुशासित ढंग से पथ संचलन किया। इस अवसर पर विभिन्न स्थानों पर महानगर वासियों ने पुष्प वर्षा कर स्वयंसेवकों का स्वागत किया।