संघ संस्मरण
सामाजिक समरसता पर 8 मई 1974 को पुणे में आयोजित एक व्याख्यान श्रृंखला में स्वयंसेवकों और समाज को संदेश देते हुए बालासाहब देवरस ने कहा, “समाज द्वारा हाशिए पर रखे गए कुछ वर्गों ने सदियों से कष्ट झेले हैं। उनके दिलों में यह दर्द घर कर गया है। हमें भी इस दर्द का एहसास है। हमें इस दशा को बदलना है। समाज का उपेक्षित वर्ग तथा समाज के अन्य वर्गों को एक दूसरे के साथ इस प्रकार से पेश आना चाहिए कि असमानता दूर हो जाए। भूतकाल के विवादों को वर्तमान में नहीं लेकर आना चाहिए, नहीं तो भविष्य में खतरा पैदा होगा। मुझे पूर्ण विश्वास है कि समाज के उपेक्षित वर्गों को आप की दया दृष्टि की आवश्यकता नहीं है। वह चाहते हैं कि उनके साथ समान व्यवहार हो। वे अपने स्वयं के प्रयत्नों से ही सब कुछ पाना चाहते हैं। अगर इसे पाने के लिए उन्हें कुछ सुविधाओं की आवश्यकता है तो वे उनको मिलनी चाहिए। उन्हें कब तक भी सुविधाएं देनी होंगी, यह भी उन पर छोड़ देना चाहिए। परंतु अंततः एक समय आना चाहिए, जब प्रत्येक व्यक्ति यह महसूस करें कि हम सब एक समान हैं तथा एक जैसे पढ़े लिखे हैं। समाज में इसकी स्थापना होनी ही चाहिए।”
।। 5 सरसंघचालक, अरुण आनंद, प्रभात प्रकाशन, प्रथम संस्करण-2020, पृष्ठ-122 ।।