• अनुवाद करें: |
मुख्य समाचार

बदायूं : क्या अब तिलक लगाना और कलावा बांधना स्कूलों में अनुशासनहीनता माना जाएगा?

  • Share:

  • facebook
  • twitter
  • whatsapp

-क्या अब उत्तर प्रदेश के स्कूलों में शिक्षा से ज्यादा धर्मिक पहचान पर बहस होगी?

-क्या स्कूलों में कुछ शिक्षिकाएं अपने निजी विचारों को नियमों की तरह थोपने लगी हैं?

-क्या अब तिलक लगाना और कलावा बांधना स्कूलों में अनुशासनहीनता माना जाएगा?
 
ऐसे कई सवाल उस वक्त उठ खड़े हुए जब कक्षा 6 की छात्रा वैष्णवी मिश्रा को केवल इसलिए स्कूल आने से मना कर दिया गया क्योंकि वह तिलक लगाकर और हाथ में कलावा बांधकर स्कूल आई थी। 

छात्रा के अभिभावकों के अनुसार, स्कूल की शिक्षिकाएं फरहा और सबिता ने स्पष्ट रूप से छात्रा से कहा कि "तिलक और कलावा पहनकर स्कूल आना मना है".यहां तक कि छात्रा से यह भी कहा गया कि "इन चीजों से भगवान खुश नहीं होते। 

जब छात्रा के परिजन इस मामले का पता चला तो उन्होंने स्कूल पहुंचकर इस पर आपत्ति जताई, तो मामला शिक्षा विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों तक पहुँचा और मामले की गंभीरता को देखते हुए प्रशासनिक कार्रवाई की जा रही है। 

जिस दिन ये घटना हुई उस दिन विद्यालय के प्रधानाचार्य तैयब अली ने अवकाश पर थे, वो कहते हैं अगर शिक्षिकाओं ने कहा होगा तो उसकी भलाई के लिए कहा हो, लेकिन उसे अलग तरीके से ले लिया गया हो। 

लेकिन इस घटना ने एक बार फिर इस प्रश्न को जन्म दिया है कि धार्मिक प्रतीकों को लेकर विद्यालयों में दोहरे मापदंड क्यों अपनाए जाते हैं? क्या यह व्यक्तिगत आस्था का हनन नहीं है? जहाँ एक वर्ग हर स्थान पर बुर्के की मांग करता है उसको इन्टरनेशनल मुद्दा बना लेता है, वही दूसरी तरफ ऐसे मुद्दों पर गहरी चुप्पी क्यों?

कहना गलत नहीं होगा सनातन प्रतीकों पर इस प्रकार के सुनियोजित हमले होते रहते हैं, अब देखना यह होगा कि प्रशासन इस मामले में कितनी तत्परता से कार्यवाही करता है।