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कुमाऊँनी संस्कृति को आधुनिक रूप दे रही है शिवांशी जोशी, लोग कर रहे हैं पसंद

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आत्मनिर्भर भारत की कहानी में आज हम आपको एक ऐसी लड़की से मिलवाने जा रहे हैं जिन्होंने अच्छी पैकेज वाली जॉब छोड़ स्थानीय लोक कला और संस्कृति को सहेजने के साथ ही उसे अपने स्वरोजगार का माध्यम बना लिया। दरअसल सदियों से चली आ रही इस लोककला को जीवंत रखने का काम उत्तराखंड के ग्रामसभा गागर की शिवांशी जोशी कर रही हैं।

उन्होंने बताया कि वह बचपन से ही ऐपण की शौकीन रही हैं और अपने इस शौक को ही उन्होंने अब अपने स्वरोजगार का माध्यम बना लिया है जो लोगों को बहुत पसंद आ रहा है। उन्होंने की-चेन, टी कोस्टर, पूजा थाल, दीए, कैनवास पेंटिग्स समेत कई चीजों को ऐपण कला के माध्यम से सजाया है और इसके माध्यम से उत्तराखण्ड की इस ऐपण कला को आधुनिक रूप दिया है। उनके बनाए गए आइटम्स की दिल्ली समेत कई राज्यों में भारी मांग है। शिवानी बताती हैं कि वह अपने पहाड़ की संस्कृति को समृद्ध करने और लोगों के सामने इसे मॉडर्न स्वरुप में पेश करने के लिए कुछ अलग करना चाह रही थी इसलिए मैंने जॉब छोड़कर वर्ष 2018 में ‘पहाड़ी चेली’ नाम से अपने ब्रांड की शुरुआत की।

वह इंस्टाग्राम पेज के माध्यम से ही ऑर्डर लेती हैं और अपने उत्पादों को देश के विभिन्न राज्यों में भी बेचती हैं। इसके अलावा वह कई जगह प्रदर्शनी में भी अपने उत्पादों को लेकर जाती हैं और स्टॉल लगाकर उत्पादों की मार्केटिंग करती हैं। शिवांशी ने युवाओं से अपील करते हुए कहा कि आधुनिकता के दौर में अपनी संस्कृति को न भूले अपनी जड़ों से जुड़े रहकर भी बहुत कुछ किया जा सकता है।