13 दिसम्बर 2021,विक्रमसम्वत2078 मार्गशीर्ष, शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि काशी के लिए महत्वपूर्ण तिथि है क्योंकि इस दिन हमारे यशस्वी प्रधानमन्त्री नरेन्द्र दामोदर मोदी जी ने काशी विश्वनाथ के नवनिर्मित भव्य कॉरिडोर का उद्घाटन किया। यह हमारे लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत में सांस्कृतिक नवजागरण हो रहा है। इस वर्ष भारत आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। राष्ट्र की सम्पूर्ण संस्कृति को अक्षुण्ण रखने के लिए अपने प्राणों का बलिदान करने वाली अनेक महान आत्माओं के लिए इससे बढ़कर श्रद्धांजलि और क्या हो सकती है कि आजादी के अमृतमहोत्सव की शुभबेला पर काशी की इस धरती से भारत के एक नए युग का सूत्रपात हो रहा है। यह संकेत है आने वाले स्वर्णिम काल का जब माँ भारती पुन:जगतगुरु के पद पर प्रतिष्ठित होगी और अपने पुराने वैभव को प्राप्त करेगी।
इस अनुपम बेला पर
पुनरोद्धार के बाद जैसे ही प्रथम भक्त ने
मन्दिर परिसर में प्रवेश किया वह दृश्य मनमोह लेने वाला था। परिसर डमरूनाद से गूंज
रहा था और उपस्थित जन समुदाय हर्ष उल्लास में डूबा हुआ था, ऐसा अद्भुत भक्ति भाव का दृश्य अनुपम है अकल्पनीय है। जलाभिषेक के बाद परिसर में पौधा लगाकर
पर्यावरण रक्षा का सन्देश दिया गया। इस बीच एक और दृश्य ने सभी का ध्यान आकृष्ट किया, वह था जब देश के प्रधान सेवक ने मन्दिर
परिसर को भव्य रूप देने वाले शिल्पियों एवं श्रम-साधकों कापुष्पों से अभिनन्दन किया तथा उनके बीच बैठकर उनके योगदान
के महत्व और सामर्थ्य को नमन किया। प्रधानमन्त्री का यह रूप वर्ष २०१९ में प्रयागराज
में भी देखने को मिला था जब उन्होंने स्वच्छता
सेनानियों के पैर धोकर यह सन्देश दिया था कि वे हमारे लिए आदर और सम्मान के पात्र हैं।
यह अभिनन्दन भारत की महान परम्परा को दर्शाता है जहाँ हम श्रम और परिश्रम को महत्व
देते हुए कर्म को ही भगवान की पूजा मानते हैं और ऐसे व्यक्तियों को कर्मयोगी कहा जाता
है।
यह दिन इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों
में अंकित हो गया, जिसे चाहकर भी कोई मिटा नहीं सकता।
2000 वर्ग फीट के परिसर को 5000 हेक्टेयर के परिसर की भव्यता प्रदान कर
ना मात्र एक राजनैतिक दल की उपलब्धि अपितु सम्पूर्ण भारतियों की उपलब्धि है। इस उपलब्धि
पर पक्ष विपक्ष सभी को एकजुट होकर गर्व का अनुभव करना चाहिये। प्रधानमन्त्री नरेन्द्र
मोदी ने भी कहा कि यह परिसर भव्य भवन भर नहीं है यह हमारे भारत की सत्य सनातन संस्कृति
का प्रतीक है, यह प्रतीक है हमारी अध्यात्मिक आत्मा का, यह प्रतीक है भारत की प्राचीनता का, परम्पराओं का, भारतकीऊर्जाऔरगतिशीलताका।यहाँ केवल आस्था के दर्शन ही नहीं अपितु अपने अतीत के गौरव का दर्शन भी होगा।
काशी भारत की सांस्कृतिक राजधानी है जो विश्व गुरु भारत के रूप में सभी को दिशा और मार्गदर्शन दे रही है। हमारे धर्म शास्त्रों, वेदपुराण और उपनिषद सहित ऐतिहासिक ग्रन्थों में भी काशी के अद्भुत और दिव्य स्वरूप का वर्णन है। हजारों वर्षों प्राचीन इस नगरी पर अनेकों आक्रान्ताकारियों ने आक्रमण कर इसे ध्वस्त करने के प्रयास किए, परन्तु यह काशी की भूमि जीवन्त भूमि है मृत्युंजय है।
प्रधानमन्त्री मोदी ने काशी से ललकारते
हुए कहा कि औरंगजेब के अत्याचार उसके आतंक का इतिहास साक्षी है जिसने सभ्यता को तलवार
के बल पर बदलने की कोशिश की, जिसने संस्कृति को कट्टरता से कुचलने की
कोशिश की, लेकिन इस देश की मिट्टी के बारे में पूरी
दुनिया जानती है, जब जब यहाँ औरंगजेब का आगमन होता है तब इसी मिट्टी से शिवाजी भी
उठ खड़े होते हैं। जब कोई सलार मसूद उधर बढ़ता है तो राजा सुहेलदेव जैसे वीर योद्धा
उसे हमारी एकता की ताकत दिखाते हैं। अंग्रेजों ने भीकाशी की सांस्कृतिक समृद्धि को
अवरुद्ध करने का भयंकर प्रयास किया परन्तु काशीवासियों ने और काशी के विद्वान सन्तों-महापुरुषों
ने ज्ञान की धारा को कोई हानि नहीं पहुँचने दी।
काशी का महात्म्य बताते हुए प्रधानमन्त्री मोदी ने कहा, काशी शब्दों का विषय नहीं है। काशी सम्वेदना की सृष्टि है, काशी वह है जहाँ जागृति ही जीवन है, जहाँ मृत्यु भी मंगलहै, काशी वह है जहाँ सत्य ही संस्कार है, काशी वह है जहाँ प्रेम ही परम्परा है। काशी वर्णन से परे है। काशी
अद्भुत अविश्वसनीय और अचम्भित कर देने वाला स्थान है। शास्त्र में काशी को नेतिनेति
कहा है अर्थात यहवह नहीं है जो दिखाई देती है उससे भी परे है।
प्रधानमन्त्री
नरेन्द्र
मोदी ने सभी भारतीयों से आह्वान करते हुए कहा कि भारत के उज्जवल भविष्य के लिए आज के
इस पावन दिवस पर हम सभी भारतीयों को तीन संकल्प लेने चाहिए। तीन संकल्प : स्वच्छता (अनुशासन), सृजन, आत्मनिर्भर भारत के लिए सतत
प्रयास।
ये वह तीन संकल्प है जिससे यह राष्ट्र फिर से अपने लुप्त हो चुके वैभव को पुनःप्राप्त
करेगा।
हमारे
तीर्थ स्थान और मन्दिर भारत की आध्यात्मिक ऊर्जा के केन्द्र रहे हैं इसलिए वर्तमान
में यह प्रयास किया जा रहा है कि भारत के इन सांस्कृतिक केन्द्रों का पुनर्जागरण हो, इन सभी धार्मिक स्थलों का विकास इस प्रकार
से हो कि यह राष्ट्र की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक समृद्धि जागरण केन्द्र बन जाए। क्योंकि
यहीं से भारत को ऊर्जा प्राप्त होगी जो उसेस
भी
क्षेत्र में विकास की ओर ले जाएगी। भगवान श्री राम के भव्य मन्दिर की आधार शिला और
उसके पश्चात काशी विश्वनाथ मन्दिर के परिसर जीर्णोद्धार के साथ भारत उस पथ पर बढ़ चुका
है जो उसे दिव्यता और भव्यता की ओर ले जाएगा। निश्चित रूप से यह भारत के नए भविष्य
की आहट है। बाबा काशीविश्वनाथ की कृपा से भारत के नए युग का शंखनाद होचुका है।