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कार्यशाला

पत्रकारिता के विभिन्न आयाम

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नोएडा स्थित प्रेरणा शोध संस्थान न्यास के भवन में नागरिक पत्रकारिता के विभिन्न आयामों को लेकर तीन दिवसीय कार्यशाला (दिनांक 10, 11, 12, अगस्त, 2019) का शुभारंभ  दिनांक 10 अगस्त, 2019 को प्रातः 9.30 बजे हुआ। उद्घाटन सत्र में कार्यशाला के मुख्यवक्ता ख्यातिलब्ध पत्रकार, पांचजन्य और आॅर्गेनाइजर के पूर्व समूह संपादक एवं प्रेरणा जनसंचार शोध न्यास नोएडा के निवर्तमान अध्यक्ष श्रीमान जगदीश जी उपासने रहे। मंच पर उनके साथ, कार्यशाला के वर्गाधिकारी रिटायर्ड अधिकारी एवं निदेशक, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, नई दिल्ली तथा प्रेरणा जनसंचार शोध न्यास के कार्यकारी अध्यक्ष श्रीमान अरुण कुमार सिन्हा जी तथा उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखण्ड, संयुक्त क्षेत्र प्रचार प्रमुख (राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ) श्रीमान कृपाशंकर जी रहे। कार्यशाला का प्रारंभ सभी प्रतिभागियों के परिचय एवं मंचासीन अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ। कार्यशाला के अकादमिक संयोजक श्रीमान कृपाशंकर जी ने प्रेरणा की गतिविधियों तथा श्रीमान प्रमोद कामत जी ने कार्यशाला के उद्देश्य एवं तीन दिवसीय कार्यक्रमों के विभिन्न सत्रों की जानकारी दी।



मुख्यवक्ता श्रीमान जगदीश उपासने जी ने प्रतिभागियों को नागरिक पत्रकारिता की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए बताया कि यह वह विधा है, जिसमें नागरिक अपने संसाधनों एवं मीडिया माध्यम से घटनाओं को जन-जन तक पहुंचा सकता है। मीडिया आज तेजी एवं हडबडी के दौर से गुजर रहा है, जिसमें घटनाओं को बिना समय गंवाए लोगों तक पहुंचाने का दवाब है। किंतु त्वरितता के साथ खबर की सत्यता का ध्यान रखना महत्वपूर्ण चुनौती है। खबर देरी से पहुंचने के कारण अब खबर की प्रभावकारिता कम हो जाती है। उन्होंने आगे कहा कि नागरिक पत्रकारिता नई विधा नहीं है, बल्कि यह पत्रकारिता एवं मीडिया के साथ विकसित हुई है। समाचार आज पत्रकारों के पास ही नहीं, बल्कि आमजनों के पास भी होते हैं। 

सुखद संयोग है कि आज मोबाइल आने के बाद कंटेंट सृजन करना, संपादित करना एवं प्रसारित करना सुलभ एवं सहज हो गया है। संचार का आधार डाटा है, जिसमें टेक्स्ट एवं इलैक्ट्राॅनिक तथ्य दोनों सम्मिलित हैं। जाने एवं अनजाने में हम सुबह से लेकर शाम तक कंटेंट सृजित करते हैं। नागरिक पत्रकारिता के दौर में नागरिक सम्राट है, क्योंकि कंटेंट से लेकर प्रसारण तक का कार्य बिना किसी पर निर्भर हुए उसने अपने हाथ में ले रखा है।  


नागरिक पत्रकारिता के दौर में संचार बहुआयामी एवं बहुद्देशीय हो गया है, जिस पर नियंत्रण करना आसन नहीं है। 

खबरें स्थानीय स्तर से उठती हैं तथा व्यापकता का स्वरूप ले लेती हैं। हमें अपना स्थानीय नेरेटिव स्थापित करना चाहिए। मोबाइल का सही उपयोग, विचार के सृजन उसे समृद्ध करने एवं गलत विचारों में हस्तक्षेप एवं उसकी दिशा परिवर्तन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। अतः हमें मोबाइल फोन का सही उपयोग करना आना चाहिए। मोबाइल से फोटो खींचना आना चाहिए, किंतु उस फोटो में समाचार तत्व आवश्यक है। कंटेंट अपडेट करने हेतु विचार विनिमय करते रहना चाहिए। नागरिक पत्रकारिता को लेकर हमारा उद्देश्य स्वांत सुखाय न रहकर, राष्ट्र के उत्थान के प्रति समर्पित रहनाचाहिए। अपनी तैयारी अच्छी रखें। सुनना है, लिखना है, पढ़ना है, करना है, करके दिखाना भी है। 


मुख्यवक्ता के उदबोधन के बाद प्रतिभागियों ने प्रश्न किए तथा मंचासीन अतिथियों ने प्रतिभागियों की जिज्ञासा शांत की।

दूसरे सत्र में प्रेरणा की मीडिया माॅनीटरिंग टीम के संपादक श्री यशार्थ ने सभी प्रतिभागियों को ईमेल के तकनीकी एवं व्यवहार्य पक्षों को समझाया एवं सभी प्रतिभागियों को अपना ईमेल बनाकर आपस में मेल भिजवाकर अभ्यास करवाया एवं प्रतिभागियों की शंका का समाधान किया।

भोजन सत्र के पश्चात सभी प्रतिभागियों को तीन समूहों में विभक्त किया गया। इन तीन समूहों में नोएडा अंतराष्ट्रीय विश्वविद्यालय के डीन प्रोफेसर अमिताभ श्रीवास्तव जी ने ब्लॉग लेखन, प्रेरणा संस्थान के निदेशक, समन्वय श्री रवि पाराशर जी  ने रिपोर्ट लेखन एवं  राष्ट्रीय सहारा समाचार पत्र के वरिष्ठ श्री रामेंद्र चैहान जी ने संपादक के नाम पत्र की सैद्धांतिक एवं व्यावहारिक जानकारी दी। 

प्रोण् श्रीवास्तव ने कहा कि ब्लाॅग लेखन के माध्यम से समय एवं स्थान की सीमाओं से परे जाकर व्यक्ति के विचारों को विस्तृत रूप से दुनिया के कोने-कोने तक पहुंचाया जा सकता है। इसने नागरिक पत्रकारिता में जहां आम भारतीय को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए पूरा आकाश उपलब्ध कराया है, वहीं उसकी जिम्मेदारियां भी कई स्तरों पर बढ़ी हैं। समाज में सौहार्द की स्थापना के साथ राष्ट्र सेवा की भावना का विकास नागरिक पत्रकारिता का लक्ष्य होना चाहिए। साथ ही ब्लाॅग लेखन में विभिन्न कानूनी पहलू तथा मानहानि, संसदीय विशेषाधिकार, न्यायालय की अवमानना काॅपीराइट आदि के विषय में प्रतिभागियों को अवगत कराया एवं लेखन को प्रभावी बनाने एवं गुणवत्ता उन्नयन के लिए सूत्र भी दिए। प्रतिभागियों ने उनके निर्देशन में ब्लाॅग का सृजन किया तथा राष्ट्र समाज के निर्माण के लिए अपने विचार ब्लाॅग में रखे। सभी ब्लाॅगों का गहन अवलोकन एवं मूल्यांकन कर उन्हें और बेहतर बनाने हेतु सुझाव दिए गए।  

रवि पाराशर के अनुसार नागरिक पत्रकारिता के लिए समाचार लेखन की कला में पारंगत होना बहुत आवश्यक होता है। आप जितने कम शब्दों में कोई समाचार अथवा अपने विचार व्यक्त कर सकते हैं, उतना ही अच्छा होता है। बहुत लंबा लिखेंगे, तो उसकी पठनीयता पर नकारात्मक असर पड़ता है। आमतौर पर माना जाता है कि कोई व्यक्ति अपने स्मार्ट फोन पर किसी समाचार, सूचना या विचार को तीन बार स्लाइड अप करके पढ़ता है। रवि पाराशर ने बताया कि सोशल मीडिया पर एक बार में अधिकतम सौ शब्द मोबाइल फोन की स्क्रीन पर रहते हैं। इस लिहाज से कोई भी समाचार ज्यादा से ज्यादा 300 शब्दों में लिखा जाना चाहिए। लेकिन अगर विषय बहुत संवेदनशील और महत्वपूर्ण हो, तो शब्द सीमा बढ़ाई जा सकती है।  

उन्होंने बताया कि समाचार लेखन में ‘5 डब्ल्यू 1 एच’ नियम का पालन किया जाना चाहिए। ॅींज अर्थात क्या हुआ? ॅीमतम- कहां हुआ?  ॅीमद- कब हुआ?  ॅीव- किसने किया, किसके साथ हुआए ॅील- क्यों हुआ? भ्वू- कैसे हुआ? इन सभी सवालों के जवाब समाचार लेखन में होने चाहिए। उनके अनुसार समाचार लेखन का एक सिद्धांत और है- कोई भी व्यक्ति पहले वर्तमान यानी च्तमेमदज को जानना चाहता है अर्थात सबसे पहले यह जानना चाहता है कि अभी क्या हुआ है। वर्तमान जानने के बाद व्यक्ति उसे भूतकाल यानी च्ंेज से जोड़ता है अर्थात जो अभी हुआ है, वह पहले भी हो चुका है। भूतकाल के साथ ही व्यक्ति को ब्वदजमदज या घटना से जुड़े विभिन्न संदर्भ याद आते हैं और अंत में व्यक्ति को भविष्य काल या थ्नजनतम की याद आती है कि अब आगे क्या होगा या होने वाला है। इस फॉर्मूले को प्रेजेंट, पास्ट, कॉन्टेक्स्ट, फ्यूचर कहते हैं। पाठकों अथवा दर्शकों के इस मनोविज्ञान को समझ कर आप अच्छा समाचार लेखन कर सकते हैं।

समानांतर सत्र में तीसरे समूह को श्री रामेंद्र चैहान जी ने संपादक के नाम पत्र की बारीकियों को समझाया। सभी प्रतिभागियों को पत्र लिखना सिखाने के लिए अलग अलग विषय दिया गया। प्रतिभागियों ने दिए गए विषय पर पत्र लिखा, जिसकी समीक्षा श्री रामेंद्र्र चैहान ने की।  

संपादकीय पृष्ठ पर जो भी लेख एवं संपादक के नाम पत्र प्रकाशित होते हैं, उन्हें पाठक गंभीरता से लेते हैं। एक बार उन्हें अवश्य पढ़ते हैं, क्योंकि वह पत्र संपादक की ओर से चयन कर प्रकाशित होते हैं। संबंधित विभाग या सरकार भी इन पत्रों और विषयों का संज्ञान लेती है जिससे यदि कोई गंभीर समस्या प्रकाशित होती हैए तो उसके निदान की संभावनाएं अधिक रहती है। इसलिए पत्र लेखन हेतु सदैव विषयों को लेकर जागरूक रहना चाहिए। समाज में निकलते, बैठते  लेखक की पैनी दृष्टि विषयों पर होनी चाहिए। कहीं कोई घटना या प्रकरण सामने आए, तो उसे फौरन अपने लेखकीय दृष्टि से तत्काल ग्रहण करना चाहिए।

पहले दिन का आखिरी सत्र 6.30से 8.00 बजे तक रहा, जिसमें संस्थान की समाचार वाचिका पल्लवी सिंह के संचालन में प्रतिभागियों ने अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया। सभी ने अपनी रुचि और दक्षता के अनुसार देशभक्ति गीत, कविताएं और अपने द्वारा किए गए अच्छे कार्यों को सबके साथ साझा किया। इस सत्र की अध्यक्षता प्रतिभागियों में से ही शिवांगी शर्मा ने की। प्रतिभा प्रकटीकरण के सत्र की समाप्ति पर शिवांगी शर्मा ने बहुत ही ओजश्वी भाषण दिया। इस सत्र के बाद सभी प्रतिभागी एक दूसरे को भली भांति जान गए और उनमें अपनत्व का भाव जागा। सत्र की समाप्ति पर सभी ने एक साथ भोजन किया और रात्रि विश्राम के लिए प्रस्थान किया। 

दूसरे दिन का पहला सत्र डिजिटल मीडिया पर आधारित था। जिसके मुख्यवक्ता ख्यातिलब्ध पत्रकार एवं नई दिल्ली स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट आॅफ माॅस क्मयुनिकेशन के पूर्व महा निदेशक श्रीमान के जी सुरेश रहे। 

उन्होंनेे  बताया कि मीडिया काल को दो भागों में बांटा जा सकता है। बी.जीण् और ए.जी. यानी बिफोर गूगल और आफ्टर गूगल। आज एक ‘माउस क्लिक’ के नीचे सारा सूचना का भंडार है। इन्फाॅरमेंशन तो बहुत हैं, किंतु नालेज की कमी है। उन्होंने मीडियाकर्मियों की अज्ञानता की ओर ध्यान दिलाते हुए कहा कि बड़े समाचारों ने भी दीपा दासमुंशी को प्रियरंजन दासमुंशी की बेटी बताया। ‘इंसाक्लोपीडिया ब्रिटानिका’ का स्थान विकीपीडिया ले रहा हैए जिस कारण गंभीर अध्ययन एवं लेखन में गिरावट आ रही है। डिजिटल मीडिया आज भले ही सुलभ हो, किंतु उसका प्रयोग करते समय सावधान रहने की जरूरत है। डिजिटल मीडिया को आज आसानी से भरमाया जा सकता है। 

सुरेश जी ने कहा एक ओर हमें इंटरनेट कनेक्शन ने सूचना से जोडा़ हैए तो वहीं इसने हमें समाज से डिस्कनेक्ट भी किया है। हम पड़ोस एवं परिवार से कटते जा रहे हैं। आज हम ‘साइन लैंग्वेज’ की ओर बढ़ रहे हैं। डिजिटल मीडिया ने मीडिया को प्रजातांत्रीकरण की ओर अग्रसर किया है। मुख्य मीडिया के एकाधिकार को तोड़ा है। आज मोबाइल घर-घर तक हर वर्गों तक पहुंचा है। आज भाषा की मर्यादा टूट रही है, किंतु यह युवाओं को आकर्षित कर रही है। सबसे ज्यादा वाॅट्सएप के सबस्क्राइबर भारत में हैं। सबसे अधिक वीडियो भारत में हैं, किंतु उपभोक्ता इस तकनीकी से अनभिज्ञ है। माॅर्फिंग करके भ्रामक वीडियो और तस्वीरें बनाई जा सकती हैं तथा उन्हें फेक न्यूज के रूप में परोसा जा सकता है। आज स्कूलों में मीडिया साक्षरता कार्यक्रम की महती आवश्यकता है, ताकि छात्रों में नीर-क्षीर विवेक उत्पन्न किया जा सके। हमें डिजिटल मीडिया का अंधानुकरण नहीं करना चाहिए। तथ्यों की परख का विवेक आवश्यक है। डिजिटल मीडिया के कारण मिसएडवेंचर की संभावना का खतरा बना रहता है। यदि वीडियो लायक हैए तो लाइक होना चाहिए। इंस्टाग्राम ने लाइक की संख्या न दिखाने का  फैसला लिया हैए क्योंकि इससे बच्चों में हीनभावना एवं अवसाद की घटनाएं बढ़ रही हैं। जो बदलाव प्रिंट मीडिया एवं टीवी नहीं ला सका, वह डिजिटल मीडिया ला रहा है। डिजिटल मीडिया ने लोगों को सशक्त बनाया है। इसके कई सार्थक परिणाम भी रहे हैं। डिजिटल मीडिया सेे भी पत्रकार की धारणा बलवती हो रही है। आज प्रतिभाशाली लोग यूट्यूब चैनल को अपना कैरियर बना रहे हैं। करियर एवं स्टडीज को लेकर यूट्यूब चैनल आ रहे हैं। यदि आप 10 हजार व्यूअरशिप टच करते हैंए तो गूगल एड्स आपके पास स्वतः ही आ जाता हैं। 

सुरेश जी ने कहा कि यह परिवर्तन का माध्यम हो सकता हैए किंतु इसकी कमियां भी सामने आती हैं। अतः हमें सावधान रहने की भी जरूरत रहती है। ये खतरे  प्रिंट एवं परंपरागत मीडिया में भी थे किंतु अब खतरा ज्यादा बढ़ रहा है। अतः डिजिटल मीडिया में रहते हुए भी जमीन से जुड़ा रहना आवश्यक है। खबरों का पुष्टि करना आवश्यक है। आज पत्रकार कम हैं, पक्षकार ज्यादा हैं। आप को तटस्थ रहने की आवश्यकता है। काॅमनसेंस इस्तेमाल करना चाहिए। लिंक को वेरिफाई करें, समाचार को अन्य वेबसाइटों से पुष्ट कर रिवाइस इमेज सर्च कर आप चित्र डालकर उनकी भी पुष्टि कर सकते हैं। 

नागरिक पत्रकारिता कार्यशाला के दूसरे दिन द्वितीय सत्र में वरिष्ठ पत्रकार रवि पाराशर ने मोबाइल रिपोर्टिंग के बारे में प्रतिभागियों को जानकारी दी और उनसे प्रेक्टिकल कराए। उन्होंने बताया कि अगर आप मोबाइल रिपोर्टिंग करने जा रहे हैं, तो प्रकाश का ध्यान विशेष तौर पर रखें। रोशनी का स्रोत अगर कैमरे के सामने होगा, तो तस्वीरें धुंधली आती हैं। लेकिन अगर घटना आपके नियंत्रण से बाहर है, तो फिर किसी भी एंगल से तस्वीरें ली जा सकती हैं। तब आपके पास कैमरा चलाने के सिद्धांतों का पालन करने का समय नहीं होता।

रवि पाराशर ने प्रतिभागियों को बताया कि अगर हम मोबाइल रिपोर्टिंग के अभियान पर निकलते हैं, तो हमें अपने चेहरे-मोहरे का भी ध्यान रखना चाहिए। वस्त्रों का भी ध्यान रखना चाहिए। महीन चेक और तीखी धारियों वाले कपड़े नहीं पहनने चाहिए। जेब में कंघा रखकर ही निकलें, जिससे बाल संवारे जा सकें। उन्होंने यह भी बताया कि अपनी जान जोखिम में डाल कर नागरिक पत्रकारिता का धर्म नहीं निभाना चाहिए। 

सत्र के उत्तरार्ध में उन्होंने प्रतिभागियों की स्टेंडअप रिपोर्टिंग की समीक्षा की और उनकी कमियों और अच्छाइयों को इंगित किया।

भोजनोपरांत के चार सत्रों में दो कक्षाओं में एबीपी न्यूज सोशल मीडिया के श्री वरुण कुमार, सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रशांत उमराव, कार्यशाला संयोजक प्रमोद कामत ने सोशल मीडिया के विभिन्न आयामों फेसबुक, यूट्यूब, ट्विटर, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप की जानकारी दी। श्री वरुण कुमार ने प्रतिभागियों की रिपोर्टिंग की रिकार्डिंग को भी देखा और टिप्स दिए। प्रयोगात्मक सत्रों में प्रतिभागियों ने प्रेरणा के समाचार वाचन कक्ष में जाकर टेलीप्राॅम्पटर के सामने बैठकर समाचार वाचन का अभ्यास भी किया। संस्थान की समाचार वाचिका सुश्री पल्लवी सिंह ने प्रतिभागियों को समाचार वाचन के टिप्स बताए। श्री रामसेवक ने सभी प्रतिभागियों का समाचार वाचन रिकाॅर्ड किया, जिसकी समीक्षा आखिरी सत्र में प्रख्यात टी वी एंकर सईद अंसारी ने की।

कार्यशाला का दूसरा दिन प्रयोगात्मक रहाए जिसमें प्रतिभागियों ने समाचार वाचन, मोबा

ल जर्नलिज्म, रिपोर्टिंग का प्रशिक्षण लिया। उनके द्वारा किए गए समाचार वाचन की समीक्षा आखिरी सत्र में आजतक के प्रख्यात एंकर सईद अंसारी ने की। इस सत्र में सईद अंसारी ने एक एक कर सभी प्रतिभागियों के द्वारा रिकार्ड समाचार वाचन को देखा और उसकी समीक्षा के साथ साथ उनको और बेहतर करने के टिप्स भी दिए। प्रतिभागियों के लिए यह सत्र बहुत ही आकर्षण वाला रहा। सभी सईद अंसारी को देखकर रोमांचित थे।


तीसरे दिन के बौद्धिक सत्र में लोकसभा टीवी के संपादक श्याम किशोर सहाय ने प्रतिभागियों को टीवी पत्रकारिता के उत्थान और प्रसार के बारे में बताया और इस बात पर जोर दिया कि नागरिक पत्रकार होने के नाते भारत भूमि की श्रेष्ठता जानना अति आवश्यक है।

उन्होंने बताया कि भारत में टेलीविजन की शुरुआत 1959 से हुई। प्रसारण व्यापक क्षेत्र में 1965 से हुआ और एशियाड खेलों के दौरान देश के शहरों में 1982 से फैला। 60 लाख घरों तक 1984 में टीवी का प्रसार हो गया था। 1991 में खाड़ी युद्ध का सीधा प्रसारण लोगों ने देखा। 1991 में सीएनएन में भारत का पहला विदेशी चैनल था। दूरदर्शन न्यूज चैनल  2003 से शुरू हुआ। डीडी न्यूज चैनल 1995 से चल रहा है। 1999 में 24 घंटे चलने वाले चैनलों की शुरूआत हुई। बीआईटीवी पहला प्राइवेट चैनल था। सन 2000 में आज तक चैनल की शुरूआत हुई। आज 1000 के लगभग चैनल देश में प्रसारित हो रहे हैं। दूरदर्शन की पहुंच सर्वाधिक हैए क्योंकि इसका अपना सेटेलाइट है। 

श्याम जी ने कहा कि विचारों की शक्ति सबसे बड़ी शक्ति है। संचार माध्यम इन्हीं विचारों को प्रसारित व संचालित करते हैं। पाॅजिटिव एवं निरपेक्ष पत्रकारिता की आवश्यकता है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा बाजार है। हमें अपने इतिहास  और संस्कृति को जानना आवश्यक है। विष्णुपुराण में भारत भूमि का विस्तृत उल्लेख है। भारत की धरती अकेली ऐसी संस्कृति हैए जिस पर स्वर्ग से ऊपर की कल्पना अर्थात् मोक्ष की कल्पना की गई है। 

भारत श्रेष्ठ था क्योंकि आम जन श्रेष्ठ था। शिक्षा, मीडिया पुनर्जागरण का माध्यम हैं। जिन्होंनेे अपना दायित्व पूर्ण इमानदारी से नहीं निभाया। कश्मीर को कश्यप ऋषि ने बसाया। कल्हण ने इसे धरती का सिरमौर माना। लेकिन मीडिया ने इस सच्चाई से स्वंय को दूर ही रखा है। तथ्य निर्धारित होते हैं, परंतु विचार की व्याख्या हमें स्वयं करनी है। महिलाओं में जागरूकता अत्यावश्यक है। बालक की पहली पाठशाला मां की गोद है। महान पुरुषों का निर्माण मातृशक्ति ने किया है। भारतीयता सनातन संस्कृति पर आधारित जीवन मूल्य है। वेद मानव सभ्यता का पहला लिखित दस्तावेज हैं। हमारा दायित्व संसार में भारतीय ज्ञान को प्रसारित करना है।

बौद्धिक सत्र के बाद श्री अश्वनी उपाध्याय, श्री रवि पाराशर और संस्थान के मीडिया सेंटर में कार्यरत श्री अजय तिवारी ने प्रतिभागियों को क्रमशः आरटीआई एक्ट, संभाषण कला और मीडिया माॅनीटरिंग के बारे में बताया। 

देश में पी आई एल मैन के रूप में विख्यात समाजसेवी श्री अश्वनी उपाध्याय ने आरटीआई एक्ट और पीआईएल के संबंध में प्रतिभागियों को विस्तार से बताया कि उन सभी को ओपिनियन मेकर बनना है। यह दृष्टि रखते हुए उन्हें राष्ट्रवादी विचारों को गहनता से जानना चाहिए। उन्होंने कहा कि आरटीआई एक सशक्त कानून हैए जिसने इस लोकतंत्र को मजबूत बनाया है। आरटीआई से भ्रष्टाचार के मामलों में अच्छी तरह से लड़ा जा सकता है। उन्होंने किसी भी सरकारी विभागों में आईटीआई फाइल करने का तरीका प्रतिभागियों को बताया। पीआईएल के बारे में उन्होंने कहा कि देश के अनेक समस्याओं को उचित कानून बना कर दूर किया जा सकता है। लेकिन नागरिकों का कर्तव्य है कि वे समस्याओं से कानून बनाने वालों को अवगत करायें। जैसे जनंसख्या विस्फोट, धर्मांतरण, सरकारी विभागों में भ्रष्टाचार ऐेसी तमाम समस्याएं, जिनसे समाज को खतरा है, पीआईएल के माध्यम से दूर की जा सकती हैं। उन्होंने अपना उदाहरण देते हुए बताया कि पिछले 10 वर्षों मंे 60 से अधिक पीआईएल डालकर सरकार को समस्याओं से अवगत कराया। सरकार ने उचित कानून बनाकर समस्या दूर की। उन्होंने पीआईएल कैसे दाखिल करेंए इसका पूरा विवरण प्रतिभागियों के साथ साझा किया। 

नागरिक पत्रकारिता कार्यशाला के तीसरे दिन के दूसरे सत्र में श्री रवि पाराशर ने प्रतिभागियों को भाषण कला की बारीकियों के बारे में समझाया। उन्होंने कहा कि बोलने से पहले विषय का ज्ञान कर लेना चाहिए। लेकिन गूगल पर मिले तथ्यों की पुष्टि आधिकारिक वैबसाइटों पर जरूर करनी चाहिए। अपने संबोधन में अगर आप आंकड़े देते हैं, तो कथन की विश्वसनीयता बढ़ती है। बोलते समय अगर कोई फंबल अथवा गलतबयानी हो जाए, तो क्षमा मांग कर सही तथ्य बता देना चाहिए। अपने भाषण में अगर हम किसी विद्वान व्यक्ति का कोई उद्धरण प्रयोग में ला रहे हैं, तो उसके नाम का उल्लेख अवश्य करना चाहिए। इसके अलावा अगर हम सही उच्चारण नहीं करेंगे, तो कितनी भी गंभीर बात हो, श्रोता पर अपेक्षाकृत रूप से ज्यादा असर नहीं पड़ता है। बोलते समय चेहरे की भंगिमाओं का, हाथों का भी इस्तेमाल करेंगे, तो अधिक असरदार तरह से अपनी बात संप्रेषित कर पाएंगे।

कार्यशाला के समापन सत्र में प्रतिभागियों ने कार्यशाला में बिताए तीन दिन के अनुभव  सबके साथ साझा किए। संस्थान के निदेशक, समन्वय श्री रवि पाराशर, कार्यशाला अध्यक्ष श्री अरुण कुमार सिन्हा, प्रेरणा जन सेवा न्यास की सदस्य नीता सिंह ने प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र प्रदान किए। कार्यशाला अध्यक्ष श्री अरुण कुमार सिन्हा ने सभी प्रतिभागियों को शुभकामनाएं दीं। अपने आशीर्वचन में उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड के संयुक्त क्षेत्र प्रचार प्रमुख श्री कृपाशंकर जी ने सभी का धन्यवाद किया और सफल कार्यशाला के लिए प्रेरणा परिवार को बधाई दी। अंत में वंदे मातरम गान हुआ और कार्यशाला का समापन हुआ। 



कार्यशाला का दूसरा दिन प्रयोगात्मक रहाए जिसमें प्रतिभागियों ने समाचार वाचन, मोबाइल जर्नलिज्म, रिपोर्टिंग का प्रशिक्षण लिया। उनके द्वारा किए गए समाचार वाचन की समीक्षा आखिरी सत्र में आजतक के प्रख्यात एंकर सईद अंसारी ने की। इस सत्र में सईद अंसारी ने एक एक कर सभी प्रतिभागियों के द्वारा रिकार्ड समाचार वाचन को देखा और उसकी समीक्षा के साथ साथ उनको और बेहतर करने के टिप्स भी दिए। प्रतिभागियों के लिए यह सत्र बहुत ही आकर्षण वाला रहा। सभी सईद अंसारी को देखकर रोमांचित थे।

तीसरे दिन के बौद्धिक सत्र में लोकसभा टीवी के संपादक श्याम किशोर सहाय ने प्रतिभागियों को टीवी पत्रकारिता के उत्थान और प्रसार के बारे में बताया और इस बात पर जोर दिया कि नागरिक पत्रकार होने के नाते भारत भूमि की श्रेष्ठता जानना अति आवश्यक है।

उन्होंने बताया कि भारत में टेलीविजन की शुरुआत 1959 से हुई। प्रसारण व्यापक क्षेत्र में 1965 से हुआ और एशियाड खेलों के दौरान देश के शहरों में 1982 से फैला। 60 लाख घरों तक 1984 में टीवी का प्रसार हो गया था। 1991 में खाड़ी युद्ध का सीधा प्रसारण लोगों ने देखा। 1991 में सीएनएन में भारत का पहला विदेशी चैनल था। दूरदर्शन न्यूज चैनल  2003 से शुरू हुआ। डीडी न्यूज चैनल 1995 से चल रहा है। 1999 में 24 घंटे चलने वाले चैनलों की शुरूआत हुई। बीआईटीवी पहला प्राइवेट चैनल था। सन 2000 में आज तक चैनल की शुरूआत हुई। आज 1000 के लगभग चैनल देश में प्रसारित हो रहे हैं। दूरदर्शन की पहुंच सर्वाधिक हैए क्योंकि इसका अपना सेटेलाइट है।