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इतिहास

स्वर यात्री जुथिका राॅय

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20 अप्रैल/जन्म-दिवस

जो लोग कला जगत में बहुत ऊंचाई पर पहुंच जाते हैं, उनमें से अधिकांश को आचार-व्यवहार की अनेक दुर्बलताएं घेर लेती हैं; पर भजन गायन की दुनिया में अपार प्रसिद्धि प्राप्त जुथिका राॅय का जीवन इसका अपवाद था। इसका एक बहुत बड़ा कारण यह था कि उनका परिवार रामकृष्ण मिशन से जुड़ा हुआ था। अतः बचपन से ही उन्हें अच्छे संस्कार मिले।


जुथिका राॅय का जन्म 20 अपै्रल, 1920 को बंगाल में हावड़ा जिले के  आमता गांव में हुआ था। सात वर्ष की अवस्था से ही वे भजन गाने लगी थीं। 1933 में आकाशवाणी कोलकाता ने काजी नजरुल इस्लाम के निर्देशन में उनके दो गीत रिकार्ड किये, जो प्रसारित नहीं हुए। अगले साल ग्रामोफोन कंपनी के प्रशिक्षक कमल दासगुप्ता ने उन्हें फिर से रिकार्ड कर प्रसारित किया। इस प्रकार जुथिका राॅय के गायन की मधुरता से सबका परिचय हो सका। 


जुथिका ने मुख्यतः मीरा के भजन गाये हैं, जिन्हें गांधी जी, नेहरू और मोरारजी भाई जैसे लोग भी पसंद करते थे। एक बार वे हैदराबाद में थीं, तो सुबह ही सरोजिनी नायडू उनके आवास पर आ गयीं और वहीं उनसे कुछ भजन सुने।  उन्होंने जुथिका को आशीर्वाद देते हुए बताया कि गांधी जी पुणे जेल में रहते हुए प्रतिदिन उनके भजनों के रिकार्ड सुनते थे। जुथिका के लिए यह बड़े सम्मान की बात थी। सरोजिनी नायडू ने उन्हें गांधी जी मिलने को भी कहा।


1946 में मुस्लिम लीग के ‘डायरेक्ट एक्शन’ के कारण कोलकाता में  हिन्दुओं का व्यापक संहार हुआ। इसकी प्रतिक्रिया में बंगाल और निकटवर्ती क्षेत्रों में हुई। ऐसे में गांधी जी हिन्दू और मुसलमानों में परस्पर सद्भाव की स्थापना के लिए कोलकाता गये और कई दिन वहां बेलियाघाटा में रहे। एक दिन जुथिका प्रातः छह बजे अपनी मां, पिता और चाचा के साथ उनके दर्शन करने उनके आवास पर गयी। भारी वर्षा के बावजूद वहां मिलने वालों की बहुत भीड़ थी। बाहर खड़े कार्यकर्ता किसी को अंदर नहीं जाने दे रहे थे; पर गांधी जी ने जब जुथिका का नाम सुना, तो उन्हें अंदर बुला लिया। 


उस दिन गांधी जी का मौन था। उन्होंने जुथिका को आशीर्वाद दिया तथा कागज पर लिखकर बात की। फिर उन्होंने उसे भजन गाने को कहा और पास के कमरे में नहाने चले गये। जुथिका ने बिना किसी संगतकार के मीरा के कई भजन सुनाये। स्नान के बाद गांधी जी उन्हें अपने साथ प्रार्थना सभा में ले गये और उस दिन की सभा का समापन जुथिका के भजनों से ही हुआ।


प्रधानमंत्री रहते हुए जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें एक बार अपने आवास पर बुलाया और भजन सुनने लगे। काम के बोझ और तनाव से ग्रस्त नेहरू जी को इससे इतना मानसिक आनंद मिला कि वे अपनी टोपी और चप्पल उतारकर धरती पर बैठ गये और दो घंटे तक उनका गायन सुनते रहे।


बंगलाभाषी जुथिका राॅय ने जो लगभग 400 गीत गाये हैं, उनमें से अधिकांश हिन्दी में हैं। इनमें कुछ होली और बरखा गीत भी हैं। फिल्मी गायन में अरुचि होने पर भी उन्होंने निर्देशक देवकी बोस तथा गीतकार पंडित मधुर से व्यक्तिगत सम्बन्धों के कारण ‘रत्नदीप’ और ‘ललकार’ में चार गीत गाये हैं।


जुथिका राॅय का परिवार रामकृष्ण मिशन से जुड़ा हुआ था। जुथिका तथा उनकी दो बहनों ने 12 वर्ष तक ब्रह्मचर्य का व्रत लिया था। दोनों बहनों ने इसके बाद विवाह कर लिया; पर जुथिका राॅय ने यह व्रत जीवन भर निभाया। 


मीरा और कबीर के गीतों के माध्यम से मां सरस्वती की आराधना करते वाली जुथिका राॅय को 1972 में ‘पद्मश्री’ से अलंकृत किया गया। 2002 में बांग्ला में लिखित उनकी आत्मकथा ‘आज ओ मोने पड़’ प्रकाशित हुई है।  

(संदर्भ : जनसत्ता 2.5.2010)

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