नागरिक और डिजिटल सुरक्षा की चुनौतियां
आज टेक्नोलॉजी के दौर में यदि साइबर सुरक्षा के लिए सबसे कठिन चुनौती की बात करें तो यह पूरे समाज और सत्ता दोनों के लिए चुनौती बन रही है। इसका सबसे बड़ा कारण है समाज के अंदर होने वाली गिरावट और लोगों का जागरूक न होना। क्योंकि अनजान लोग फोन करके कोई लालच या कोई धमकी देते हैं तो उस पर तुरंत भोले-भाले लोग विश्वास कर लेते हैं। उन्हें और उनके निर्देश को फॉलो करते हैं और उसी से होती है साइबर क्राइम की शुरुआत। यदि हम अनजान लोगों की बातों को न मानें और लालच या उनकी धमकियों में न फंसे तो साइबर क्राइम अपने आप ही बहुत कम हो जाएगा। इसलिए लोगों को समझाना और उन्हें जागरूक करना यह सरकार और समाज दोनों के लिए चुनौती है। हालांकि इस दिशा में प्रयास हो रहे हैं। तरह-तरह के कम्युनिकेशन के जरिये जैसे ईमेल, वीडियो, अखबार, विज्ञापन, नीतियों आदि के जरिये ये सब किया जा रहा है, लेकिन चुनौती अभी भी बनी हुई है। ऐसा इसलिए है क्योंकि आज भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बाजार है। ऐसे में हर चीज ऑनलाइन होने से गोपनीयता की सुरक्षा करना काफी मुश्किल हो गया है।
सबसे पहले ये समझना जरूरी है कि गोपनीयता क्या है? गोपनीय वह चीज होती है जिसे व्यक्ति स्वयं किसी को बताना नहीं चाहता। जबकि अब तो सब कुछ दूसरों को बताना पड़ता है तो फिर उसका गोपनीय रह पाना बड़ा मुश्किल होता है। वर्तमान में स्थिति यह है कि जो देश में गोपनीयता से संबंधित जो कानून है, वह उतना प्रभावी नहीं है। भारत में डिजिटल डाटा प्रोटेक्शन कानून जो बना था 2023 में, लेकिन अभी तक लागू नहीं हुआ। उच्चतम न्यायालय ने 2018 में उसको बनाने के आदेश दिये थे। ऐसे में गोपनीयता की सुरक्षा की उम्मीद के लिए अभी समय का इंतजार है। इन सब चीजों को देखते हुए साइबर सुरक्षा तो पहले से ही कमजोर है और इसमें सबसे बड़ी बात है सरकारी तंत्र की सक्रियता में कमी। अगर कोई शिकायत की जाती हो तो उस पर प्रभावी कार्रवाई नहीं होती है। किसी किसी केस में लंबे समय के बाद छोटे मोटे फाइन लगाये जाते हैं। इसलिए साइबर फ्रॉड करने वालों के मन में वो डर नहीं है जो होना चाहिए। लोगों को रामराज्य और भगवान कृष्ण के द्वारा दिए गए दंड आज भी याद हैं। श्रीकृष्ण ने भी शिशुपाल को सौ गालियों तक माफ किया, लेकिन 100 के बाद उन्होंने शिशुपाल की गर्दन सुदर्शन चक्र से काट दी। इसी तरह प्रभु राम ने भी रावण को दंड दिया जिससे लोग कांप गए। वहीं आज प्रभावी दंड प्रक्रिया नहीं है।
चूंकि आज हर चीज क्लाउड बेस है। इसलिए वेबसाइट या पोर्टल हर जगह हाईजैक कर डाटा चोरी की बात आम हो गई है। ऐसे में जब सरकारी संस्थानों में सेंध लग रही हो, तो आम जनता का चिंतित होना स्वाभाविक है। इसलिए जनता को यह जानना आवश्यक है कि उसे कहां और किसको, कितना डाटा देना है। लेकिन विडंबना ये है कि ऐसी संवेदनशील जानकारी जनता को मालूम ही नहीं है जैसे कि आधार कार्ड कहां देना है और कहां नहीं। कानूनी रूप से बात करें तो बैंक और टेलीकॉम कंपनी वाले आधार कार्ड मांग सकते हैं, लेकिन आज पोर्टल वाले, खोमचे वाले, होटल वाले सभी आईडी के नाम पर आपसे आधार कार्ड की मांग करते हैं जो कि सरासर गलत है। यदि आपको आईडी कार्ड दिखाना है तो सबसे सुरक्षित आईडी कार्ड आपका वोटर कार्ड है उसी को देना चाहिए। यहां तक पैन कार्ड भी किसी को नहीं देना चाहिए। इससे स्पष्ट है कि लोगों के पास अभी पर्याप्त जानकारियां नहीं हैं। जबकि सरकार विभिन्न माध्यमों के जरिये लोगों को मुफ्त जानकारी दे रही है। यदि इस पूरी प्रक्रिया में साइबर सुरक्षा के प्रति नागरिकों में कर्तव्य बोध की भावना बढ़ जाए तो लोग एक दूसरे के लिए स्वतः ही जागरूक हो जाएंगे और फ्रॉड की घटनाओं में कमी आनी शुरू हो जाएगी।
साइबर सुरक्षा एक निजी मामला है। इसलिए इसमें एक दूसरे के प्रति विशेष कर्तव्य निभाने का दायरा बेहद सीमित है। इस तरह व्यक्ति को साइबर धोखाधड़ी से बचने के लिए स्वयं ही जागरूक होना पड़ेगा। क्योंकि साइबर सिक्योरिटी में सेंधमारी बेहद कम समय में होती है। ऐसे में आप अपने स्तर से ही स्वयं को बचा सकते हैं। यदि मान लीजिए कोई किसी के बहकावे में आकर ओटीपी बता रहा है तो आप निजी स्तर पर उसे कैसे रोकेंगे? ट्रांजेक्शन से पहले न वह आपसे बताएगा और न आप उसका सहयोग कर सकते हैं। इसलिए यह एकदम निजी मामला है। वैसे भी कोई व्यक्ति अपने द्वारा किए जा रहे ट्रांजैक्शन को किसी दूसरे को बताने के लिए बाध्य भी नहीं है। वह ट्रांजैक्शन कर रहा है, किसी को अपना डाटा दे रहा है, कोई होटल में जाकर रुका है, कोई एयरलाइन से टिकट ले रहा है। यह किसी भी प्रकार से सामाजिक कार्य में नहीं आता है। यह पूर्णतः निजी और गोपनीय कार्य है। इसलिए समाज का इसमें एक दूसरे के प्रति कर्तव्य की जवाबदेही का स्थान बेहद कम है।
साइबर से जुड़ी चुनौती यह है कि आज दुनिया तेजी से दौड़ रही है। वह डिजिटल ट्रांजैक्शन, डिजिटल खरीद कर रही है। एक उदाहरण से समझें तो पहले आपको सौ रुपये निकालने के लिए भी फॉर्म भरना पड़ता था। बैंक में जांच के बाद आपको रुपये मिलते थे। वहीं आज एक सेकेंड में लाखों रुपये एक क्लिक से ट्रांसफर हो जाते हैं। इसलिए टेक्नोलॉजी ने सुविधा के साथ ही चुनौतियों का अंबार भी दे दिया है। मैं लोगों से यही कहना चाहूंगा कि यह जागरुकता का विषय है। आपको दिखावे से बचना होगा। जैसे बहुत सारे लोगों को न कभी विदेश जाना है और न गए हैं। फिर भी इंटरनेशनल डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड ले लेते हैं। इस डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड से विदेशों से ठगी होने की संभावना बढ़ जाती है।
इस तरह साइबर फ्रॉड की चुनौतियों से बचने के लिए दो-तीन उपाय बेहद कारगर सिद्ध हो सकते हैं। यदि आपसे कोई दबाव डालकर या लालच देकर ट्रांजैक्शन के लिए कहता है तो ओटीपी को बिल्कुल शेयर नहीं करना चाहिए। वह आपके साइबर खजाने की चाबी है। इसलिए किसी भी स्थिति में आपको इससे बचना होगा। इसी तरह अनजान लिंक को क्लिक न करें। साथ ही कुछ खतरनाक वेबसाइट के जरिये फाइनेंशियल ट्रांजेक्शन कभी न करें। अगर इन छोटी-छोटी बातों का अनुसरण करें तो साइबर क्राइम में फंसने की संभावना अपने आप ही 90 प्रतिशत कम हो जाएगी।