सनातन संस्कृति को परिभाषित करता है पर्यावरण में भारत का अंतरराष्ट्रीय योगदान
भारत ने अपनी प्राचीन सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर को संजोते हुए वैश्विक पर्यावरण संकट के प्रति अपनी गहरी चिंता और सक्रिय योगदान को स्पष्ट किया है। भारत की यह यात्रा अद्वितीय रही है, जिसमें प्राचीन ज्ञान और आधुनिक नीतियों से लेकर अंतरराष्ट्रीय पहल तक, हर पहलू ने उसे एक वैश्विक पर्यावरणीय संरक्षक के रूप में स्थापित किया है।
प्राचीन भारतीय परंपराओं ने पर्यावरण के प्रति सम्मान और संतुलन की एक मजबूत नींव रखी थी। वेदों में पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश को देवी-देवताओं के रूप में पूजा जाता था (ऋग्वेद)। इसी तरह उपनिषद में जीवन के हर पहलू में प्रकृति के महत्व को रेखांकित किया गया है। हिन्दू धर्म के अनुसार, सभी जीवों में एक दिव्य तत्व होता है और इसलिए सभी जीवों के साथ सम्मान पूर्वक पेश आना आवश्यक है (श्रीमद्भगवद्गीता)। इसी क्रम में जैन धर्म (जैन आगम) में अहिंसा का सिद्धांत पर्यावरण संरक्षण के महत्व को दर्शाता है, जिसमें सभी जीवों की सुरक्षा की बात की जाती है।
जब भारत स्वतंत्रता के बाद एक नई यात्रा पर निकला, तो पर्यावरण संरक्षण के प्रति उसकी प्रतिबद्धता एक अद्वितीय दृष्टिकोण और दृष्टि के साथ प्रकट हुई। 1972 में स्टॉकहोम सम्मेलन में भारत ने वैश्विक पर्यावरणीय मुद्दों को मान्यता दी और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) की स्थापना में भाग लिया। इस सम्मेलन ने भारत को वैश्विक पर्यावरणीय चर्चा में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया और पर्यावरण के प्रति उसकी जिम्मेदारी को सुदृढ़ किया। समय के साथ, भारत ने जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर अपनी सक्रियता को और भी बढ़ाया है। 2009 में कोपेनहेगन सम्मेलन के दौरान समझौते के तहत भारत ने अपने कार्बन उत्सर्जन को प्रति इकाई जीडीपी 20-25 प्रतिशत तक घटाने का लक्ष्य निर्धारित किया। यह पहल न केवल भारत की जिम्मेदारी को दर्शाती है बल्कि वैश्विक स्तर पर पर्यावरणीय संकल्प के प्रति उसकी प्रतिबद्धता भी है। 2015 में, पेरिस जलवायु समझौते पर हस्ताक्षर करके, भारत ने 2030 तक अपनी कुल ऊर्जा में 50 प्रतिशत गैर-फॉसिल ईंधन का योगदान सुनिश्चित करने और 2005 के स्तर की तुलना में 33-35 प्रतिशत तक उत्सर्जन में कमी लाने का लक्ष्य तय किया। इस समझौते ने भारत को वैश्विक जलवायु कार्यों में एक महत्वपूर्ण भागीदार बना दिया।
भारत की अक्षय ऊर्जा के प्रति प्रतिबद्धता ने वैश्विक ऊर्जा सुरक्षा के इस दृष्टिकोण को प्रभावित किया। इसी क्रम में 2010 में शुरू किए गए नेशनल सोलर मिशन का उद्देश्य 2022 तक 20 गीगावाट सौर ऊर्जा उत्पादन था। इस पहल ने न केवल भारत को सौर ऊर्जा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बनाया बल्कि वैश्विक ऊर्जा सुरक्षा के दृष्टिकोण को सुदृढ़ता दी। इसके अलावा, 2015 में स्थापित अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन ने सौर ऊर्जा के प्रसार को बढ़ावा देने के लिए एक नया मंच भी प्रदान किया। इसका उद्देश्य विकासशील देशों में सौर प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देना और वैश्विक सौर ऊर्जा बाजार को प्रोत्साहित करना है।
स्वच्छता और जल संरक्षण के क्षेत्र में भी भारत ने महत्वपूर्ण पहल की है। 2014 में स्वच्छ भारत अभियान (स्वच्छ भारत मिशन) की शुरुआत का उद्देश्य भारत को स्वच्छ और खुले में शौच से मुक्त बनाना था। इस अभियान ने न केवल देश में स्वच्छता के प्रति जागरूकता बढ़ाई, बल्कि वैश्विक स्तर पर स्वास्थ्य और स्वच्छता के लक्ष्यों को भी समर्थन दिया। जल संरक्षण की दिशा में भारत ने कई योजनाएं लागू की हैं। नमामि गंगे परियोजना, जिसका उद्देश्य गंगा नदी की सफाई और उसके प्रवाह को पुनर्स्थापित करना है, ने गंगा किनारे के राज्यों में जल गुणवत्ता में सुधार किया है। यह परियोजना एक अंतरराष्ट्रीय उदाहरण प्रस्तुत करती है कि कैसे नदियों के संरक्षण के लिए बड़े पैमाने पर प्रयास किए जा सकते हैं।
वनों और जैव विविधता की रक्षा के लिए भी भारत ने कई महत्वपूर्ण पहल की हैं। राष्ट्रीय वन नीति के तहत, भारत ने अपने वन क्षेत्र को 33 प्रतिशत तक बढ़ाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। प्रोजेक्ट टाइगर, जो 1973 में शुरू किया गया था, ने भारत के टाइगर रिजर्व क्षेत्रों की सुरक्षा को सुनिश्चित किया और बाघों की प्रजातियों के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसी तरह, प्रोजेक्ट एलीफेंट ने भी भारतीय हाथियों की सुरक्षा और उनके प्राकृतिक आवासों की रक्षा के लिए एक ठोस रणनीति अपनाई है। इन परियोजनाओं ने न केवल भारत की जैव विविधता को संरक्षित किया है बल्कि अन्य देशों के लिए भी संरक्षण के मॉडल प्रस्तुत किए हैं।
अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की भूमिका भी महत्वपूर्ण रही है। जलवायु परिवर्तन पर अंतरराष्ट्रीय पैनल (आईपीसीसी) के साथ सक्रिय सहयोग करके, भारत ने वैश्विक जलवायु नीति निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इसके अलावा, भारत ने कई वैश्विक पर्यावरणीय संधियों पर हस्ताक्षर किए हैं, जैसे बायोडायवर्सिटी कन्वेंशन और स्टॉकहोम कन्वेंशन, जो पर्यावरणीय संरक्षण के लिए एक मजबूत कानूनी ढांचा प्रदान करते हैं। भारत ने प्राकृतिक आपदाओं के प्रबंधन में भी अपनी भूमिका निभाई है, जैसे कि एशियन डेवलपमेंट बैंक के साथ सहयोग और आपदा राहत प्रयासों में भागीदारी। भारत की आपदा राहत टीमों ने अनेक अवसर पर विभिन्न देशों में आपदाओं के समय सहायता प्रदान करते हुए अंतरराष्ट्रीय मानवतावादी प्रयासों में सक्रिय भागीदारी की है।
भविष्य में, भारत की बढ़ती जनसंख्या, औद्योगीकरण और शहरीकरण के दबाव के बीच पर्यावरणीय संकट का सामना करना होगा। इन चुनौतियों का सामना करने के लिए, भारत को अपने मौजूदा प्रयासों को और भी मजबूत करना होगा और वैश्विक पर्यावरणीय लक्ष्यों के साथ तालमेल बनाए रखना होगा। हालांकि भारत ने पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है किन्तु भविष्य में भी कई चुनौतियां हमारे सामने हैं। इस तरह भारत की पर्यावरण संरक्षण की कहानी एक प्रेरणादायक यात्रा है, जो दिखाती है कि एक राष्ट्र की संवेदनशीलता, निष्ठा और सतत् प्रयास वैश्विक पर्यावरणीय चुनौतियों का सामना करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। भारत का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरण संरक्षण में योगदान न केवल उसकी प्राचीन गौरवशाली सनातन संस्कृति को परिभाषित करता है, बल्कि यह वैश्विक पर्यावरणीय स्थिरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।