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इतिहास

क्या आप जानते हैं क्या है वो श्राप जो नारद जी के लिए बना वरदान?

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क्या आपको पता है कि महर्षि नारद जी का उल्लेख सदैव तीनों लोकों में विचरण करने वाले पुरुष के रूप में क्यों किया जाता है। प्रत्येक प्राचीन ग्रंथ, पुराणों में नारद जी की उपस्थिति कैसे मिल जाती है.. आखिर कैसे वे प्रत्येक महत्वपूर्ण क्षण में प्रगट हो जाते। क्या महर्षि नारद जी के पास ऐसी कोई शक्ति थी जिससे वो अन्तर्ध्यान होकर दूसरे लोक में पहुंच जाते थे
वास्तव में क्या नारद जी के पास पवन पादुकाएं यानि हवा में उड़ने वाली खड़ाऊं थीं जिन्हें पहनकर वे पल भर में इधर से उधर पहुंच जाते थे जानकर हैरान रह जाओगे कि नारद जी को ये शक्ति एक श्राप के कारण मिली थी...जिसके कारण वे प्रत्येक लोक में विचरण करते रहते महर्षि नारद जी को दक्ष प्रजापति अर्थात माता सती के पिता ने श्राप दिया था।

मान्यता है कि नारद जी ने दक्ष के पुत्रों को गृहस्थ जीवन की जिम्मेदारी से दूर कर मोक्ष की राह पर चलने के लिए प्रेरित किया था, दक्ष को यह बात बिल्कुल पसंद नहीं आई कि उनके पुत्र गृहस्थ धर्म से विरक्त हो और मोक्ष की राह पर चलें। क्रोधित दक्ष प्रजापति ने नारद जी को श्राप दे दिया कि वे कभी भी एक स्थान पर अधिक देर नहीं रुक सकेंगे।

माता सती के पिता का यह श्राप नारद जी के लिए वरदान बन गया... अब वे निरंतर तीनों लोकों और चौदह भवनों में विचरण करते रहते और सूचनाओं अर्थात महत्वपूर्ण बातों का आदान-प्रदान करते रहते। जिसके कारण उन्हें आदि पत्रकार अर्थात प्रथम पत्रकार भी कहा जाता है। ज्ञान की प्रत्येक शाखा में गहरी रुचि होने के चलते वे हर विषय के प्रकांड विद्वान हैं।

बात धर्म ज्ञान की हो, या राज धर्म की, भक्ति की हो या कर्तव्यों की... संस्कृति की हो या अर्थ चिंतन की प्रत्येक विधा में उनके सूत्र आज भी हमें मार्गदर्शन देते हैं।

उन्होंने न मात्र संचार का आदान-प्रदान किया... मनुष्यों को मोक्ष का मार्ग भी बतलाया... उनकी प्रेरणा से ही साधारण युवक रत्नाकर आदि कवि वाल्मीकि बन गए।

भक्ति मार्ग से रत्नाकर का वाल्मीकि के रूप में प्रादुर्भाव हुआ तो उनके कुछ प्रश्नों के उत्तर में देवर्षि नारद ने प्रभु राम का जो वर्णन किया, उससे उन्हें आदि काव्य रामायण लिखने की प्रेरणा मिली। इन प्रश्नों का रामायण के बालकाण्ड के प्रथम 5 श्लोकों में उल्लेख भी है।

ठीक इसी प्रकार 5 हजार वर्ष पूर्व धर्मराज युधिष्ठिर से 123 प्रश्नों के माध्यम से राज्यसभा जैसे गूढ़ विषय पर महर्षि नारद ने जो सूत्र दिए वे आज भी महत्वपूर्ण और प्रासंगिक हैं। इसका वर्णन महाभारत के सभा पर्व के 5वें अध्याय में श्लोक संख्या 12 से 122 के बीच है।