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हर त्योहार नई शुरुआत

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हर त्योहार नई शुरुआत


र्वोत्तर भारत में चैत्र महीने की षष्ठी को "चैती छठ” मनाया जाता है। इसमें परिवार नदी में स्नान करके, वहां वेदी बनाकर पूजा का कलश स्थापित करता है और सूर्य को अर्घ देता है। चैत्र नवरात्रों में नदी में अष्टमी स्नान किया जाता है। मेला लगता है। नवमीं को कन्यापूजन कर, नवरात्र व्रत का पारण करके भगवान श्रीराम का अवतरण दिवस रामनवमी (6 अप्रैल) पूरे भारत में श्रद्धा और हर्षोलास से मनायी जाती है। नवरात्र के नौ दिन शाकाहार, अल्पहार, उपवास, नियम, अनुशासन से आने वाले मौसम परिवर्तन के लिए लोग अपने शरीर को तैयार करते हैं।


जब ट्यूलिप की कलियां खिलने को तैयार होती हैं तब श्रीनगर का ट्यूलिप महोत्सव (1 से 30 अप्रैल) मनाया जाता है। हर वर्ष मौसम इस महोत्सव की तारीखें तय करता है। उगादी के बाद से दक्षिण भारत में आम, कैरी खाना शुरु हो जाता है। उत्तर पूर्व भारत के नागालैंड के मोन जिले में आओलिंग महोत्सव (1 से 6 अप्रैल) कोन्याक जनजातियों का पर्व है जो बसंत के स्वागत में मनाया जाता है।


मोपिन महोत्सव (5 अप्रैल) अरूणाचल प्रदेश का आनन्दायक उत्सव है। यह भी फसल उत्सव है। जैन धर्म के 24वें तीर्थकर भगवान महावीर के अवतरण दिवस के उपलक्ष्य में महावीर जयंती 10 अप्रैल को मनाई जायेगी।


हनुमान जयंती (12 अप्रैल) मंदिरों में सुदंरकाण्ड पाठ और भण्डारों के साथ हर्षोल्लास से मनाई जाती है। 13 अप्रैल 1699 को श्री केसरगढ़ साहिब आनन्दपुर में दसवें गुरु गोविंद सिंह द्वारा खालसा पंथ की स्थापना के उपलक्ष्य में गुरुद्वारों में समारोह होते हैं। बैसाखी उत्सव फसल कटाई समय को दर्शाता है और ऐसा माना जाता है कि माँ गंगा बैसाखी को धरती पर अवतरित हुई थीं इसलिए इस दिन गंगा स्नान का महत्व है जो गंगाजी नहीं पहुंच सकते वे अपने आस-पास की नदी पर जाते हैं। 


पूर्वोतर भारत का मुख्य रोजगार चाय बगान है, साथ ही हथकरघे का काम भी होता है। महिलाएं खेती के साथ कपड़ा भी बुनती हैं। यहां बैसाख यानि अप्रैल में मनाया जाने वाला सबसे महत्वपूर्ण पर्व बिहु है। यह भी बसन्त के सौन्दर्य और प्रकृति का पूजन है। इस पर्व को रोंगाली बिहू या बोहाग बिहू (14 से 20 अप्रैल) भी कहते हैं। इस पर्व में खाना-पीना और नृत्य चलता है। रेशमी मेखला पोशाक धारण कर पुरुष विश्व विख्यात गोल्डन मूंगा सिल्क का गमछा गले में पहनकर नृत्य करते हैं। बिहू पर्व भी भारत की सामाजिक समरसता को दर्शाता है जिसमें जाति-वर्ग, धनी-निर्धन का कोई भेदभाव नहीं होता है, सभी साथ मिलकर इसे मनाते हैं।


शाद सुक मिंसिएम उत्सव (14 अप्रैल) मेघालय का लोकप्रिय त्योहार है। यह भी फसल कटाई की खुशी का पर्व हैं। यहां भी खासी पुरूष और महिलाएं पारंपरिक रेशमी वेशभूषा और आभूषणों से सजकर नृत्य करते हैं। इसे थैंक्सगिविंग फैस्टिवल (प्रकृति के प्रति धन्यवाद) के नाम से भी जाना जाता है।

उत्तराखण्ड में बिखोती उत्सव मनाया जाता है जिसमें पवित्र नदी में स्नान करके नकारात्मकता के प्रतीक राक्षस को पत्थर मारने की प्रथा है।

यूनेस्को द्वारा 2016 में मानवता की सांस्कृतिक विरासत के रुप में दर्ज पाहेला वैशाख पर बंगाल, त्रिपुरा, बांगलादेश में मंगल शोभा जात्रा का आयोजन होता है। झारखण्ड के आदिवासी सरहुल मनाते हैं और सरना देवी की पूजा करते हैं। उसके बाद से नया धान, फल, फूल खाते हैं और बीज बोया जाता है। यह माँ प्रकृति की पूजा और बसंत का उत्सव है जो प्रजनन का भी संकेत देता है। इस अवसर पर विवाह प्रारंभहोते हैं। मैथिल नववर्ष जुरशीतल पर्व (14 अप्रैल) भारत और नेपाल क्षेत्र में मैथिलों द्वारा मनाया जाता है। मैथिल इस दिन भात और बारी (बेसन की सरसों के तेल में छनी) और गुड़ वाली पूरी बनाते हैं। पाना संक्राति, महा विशुबा संक्राति, उड़िया नुआ बरसा, उड़िया नववर्ष का सामाजिक, सांस्कृतिक धार्मिक उत्सव है। इस समारोह का मुख्य आर्कषण मेरु जात्रा, झामु जात्रा और चाडक पर्व है। कहीं-कहीं पर छाऊ नृत्य, लोक नृत्य समारोह होता है।


तमिल नववर्ष को पुचांडु उत्सव कहते हैं। तमिल महीने चितराई के पहले दिन पुथांडु, तमिलनाडु, पांडीचेरी, श्रीलंका, मलेशिया, सिंगापुर, मारीशियस में और विश्व में जहां भी तमिल हैं मनाया जाता है। यह आमतौर पर 14 अप्रैल को पड़ता है। इस दिन को तमिल नववर्ष या पुथुवरुशम के नाम से भी जाना जाता है। यह त्यौहार परिवार के सभी लोग एक साथ मिलकर मनाते हैं। घर की सफाई, फूलों और लाइटों से सजावट करके, पवित्र स्नान कर, नये वस्त्र धारण कर लोग मंदिर जाते हैं। घरों में शाकाहारी भोजन वडा, पायसम खासतौर पर 'मैंगो पचड़ी' बनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन देवी मीनाक्षी ने भगवान सुन्दरेश्वर से विवाह किया था।

केरल का नववर्ष मलियाली महीने मेदान के पहले दिन 'विशु' मनाया जाता है। इसे 14 या 15 अप्रैल को परिवार के साथ मनाते हैं। यह पर्व भगवान विष्णु और उनके अवतार कृष्ण को समर्पित है। पिछली फसल के लिए भगवान का धन्यवाद किया जाता है और नये धान की बुआई की जाती है। परिवार के बुजुर्ग विशुकानी (विष्णु की झांकी) सजाते हैं। सुबह बच्चों की आंखों को ढक कर परिवार का बड़ा बच्चे को विशुकानी के सामने लाकर आंखों से हाथ हटा लेता है अर्थात् सुबह सबसे पहले भगवान के दर्शन करते हैं। बुजुर्ग बच्चों को विषुक्कणी (भेंट) देते हैं। सब मंदिर जाते हैं। सब विषु भोजन करते हैं जिसमें 26 प्रकार का शाकाहारी भोजन होता है। इतने प्यारे फसलों के त्यौहार जिसमें सुस्वादु भोजन बनते हैं, यह पर्व नौकरी के कारण परिवार से दूर गए सदस्यों को भी अतिव्यस्त होने पर भी कुटुंब में आने को प्रेरित करते हैं। कदम्मनिता पदयानी (14 से 23 अप्रैल) त्यौहार केरल में राज्य की समृद्ध संस्कृति एवं सौन्दर्ययुक्त परंपराओं और रंगों का पर्व है।

भारतीय संविधान के पिता भारत रत्न 

बाबासाहेब डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर की जयन्ती 14 अप्रैल को धूमधाम से मनायी जाती है। कोल्लम पूरम (15 अप्रैल), कोल्लम के आश्रमम मैदान में एक सप्ताह तक चलने वाले इस उत्सव के दौरान मंदिर की मूर्ति को एक भव्य पालकी पर ले जाया जाता है। जिसके पीछे भक्त अनुष्ठान करते हैं। नर्तक और संगीतकार अपनी कला के द्वारा श्रद्धांजलि देते हैं। सजे हुए हाथी इसे सबसे लोकप्रिय उत्सव बनाते हैं।

संकटमोचन संगीत महोत्सव (16 से 21 अप्रैल), हनुमान जयंती के अवसर पर वाराणसी के घाट पर आयोजित किए जाने वाले इस वार्षिक संगीत महोत्सव में देश के लोकप्रिय शास्त्रीय संगीतकारों को सुनने का आनन्द मिलता है।

गरिया पूजा (20 अप्रैल) त्रिपुरा में सात दिन तक चलने वाला उत्सव है। इसमें गरिया देवता की पूजा होती है जो पशुधन और धन की रक्षा करते हैं। वरुथिनी एकादशी (26) अप्रैल) के दिन भगवान श्री हरिहर विष्णु की पूजा की जाती है। ऐसा मानना है कि कुरूक्षेत्र में सूर्यग्रहण के समय जो एक मन सोना दान करके पुण्य मिलता है, वही पुण्य इस दिन व्रत करने से मिलता है। इस वर्ष संत श्री वल्लभाचार्य जी की 546वीं जयन्ती मनाई जायेगी।

परशुराम जयंती (29 अप्रैल), महर्षि परशुराम के सम्मान में इस दिन को उच्च लक्ष्यों की प्राप्ति करने के लिए जीवन की सुख-सुविधाओं का त्याग करने के तरीके के रूप में मनाया जाता है। इसको अक्षय तृतीया भी कहा जाता है, जो भारतीय संस्कृति में अत्यंत शुभ दिवस है।

बसव जयंती (30 अप्रैल) लिंगायत समुदाय द्वारा पारंपरिक रूप से मनाई जाने वाली संत बसवन्ना की जयंती है जो 12वीं सदी के शिवभक्त कन्नड़ कवि और दार्शनिक थे। दस महाविद्या में नवीं महाविद्या के रूप में देवी मातंगी की पूजा भी इसी मास में होती है। इनके पूजन से वैवाहिक जीवन सुखी रहता है। इस दिन कन्या पूजन भी किया जाता है।