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इतिहास

समाज का भरण पोषण करता है गृहस्थ जीवन – श्री गुरुजी

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संघ संस्मरण  

कु. मुक्ता देशपांडे, मुम्बई को दिनांक 18.06.1951 के पत्र में श्री गुरुजी लिखते हैं, “तुम्हारा नवजीवन उत्तम रहे। दाम्पत्य जीवन में एक दूसरे के मन को समझ कर व्यवहार करना चाहिए। आपस में एक दूसरे के पूरक बनकर जीवन उपयुक्त तथा सुखमय बनाना चाहिए। गृहस्थ जीवन श्रेष्ठ माना गया है। वही समाज का भरण-पोषण करने वाला है। वह एक महत्वपूर्ण सामाजिक कर्तव्य है, केवल भोगपूर्ति का साधन नहीं। इसका ध्यान रखकर व्यवहार करने से जीवन सुख समाधान से युक्त बनता है। इसी से आवश्यकता के अनुसार समाज सेवा की प्रेरणा की प्राप्ति हो सकती है।"

।। श्री गुरुजी व्यक्तित्व एवं कृतित्व, डॉ. कृष्ण कुमार बवेजा, पृष्ठ – 128-29 ।।