घास से आत्मनिर्भरता तक, थारू महिलाओं की यह कहानी
उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले के घने जंगलों में बसा है दुधवा टाइगर रिजर्व और इन्हीं जंगलों की गोद में पनप रही है आत्मनिर्भरता की एक अनोखी कहानी। यह कहानी है थारू जनजाति की महिलाओं की… जो अब न केवल जंगल की, बल्कि अपने भाग्य की भी रचयिता बन चुकी हैं।
इन्ही जंगलों में पाई जाने वाली मूंज घास जिसे कभी मामूली समझा जाता था, आज उन महिलाओं के लिए रोजगार साधन बन चुकी है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार थारू समाज की एक महिला शिवकुमारी ने बताया शुरुआत में थोड़ी परेशानी रही हुई। लेकिन जब परिवार का साथ मिला और समूह से जुड़ी तो रास्ता अपने आप बनता चला गया..आज हमारे साथ करीब 120 महिलाएं काम कर रही हैं। हम मूंज घास से डलिया, टोकरियां, और कई घरेलू सामान बनाते हैं। इससे हमें न केवल कमाई होती है, बल्कि एक पहचान भी मिली है।
आपको बता दें यह महिलाएं डलिया, दउरी, मोबाइल कवर, बैग, चप्पल और यहां तक कि वॉलहैंगिंग भी बना रही हैं, और इनकी मांग न केवल गांवों में, बल्कि शहरों और विदेशों तक पहुंच रही है।
कहना गलत नहीं होगा इन हाथों ने जो रचनात्मकता की उदाहरण प्रस्तुत किया है , उसने जंगल के इस समुदाय को एक नई उड़ान एवं पहचान दी है।
थारू समाज की ये महिलाएं अब केवल गृहिणी नहीं… बल्कि उद्यमिता की पहचान बन चुकी हैं। जंगल से जुड़कर, परंपरा को सहेजते हुए इन्होंने अपने भविष्य के साथ साथ अपने परिवारों की आर्थिक स्तिथि को संवारा है।
जहां जंगल में घास उगती थी… वहां अब नई आशाएं लहलहा रही हैं। ये केवल मूंज से उत्पाद बनाने की कहानी नहीं, बल्कि ये कहानी थारू महिलाओं ऊँची उड़ान एवं नई पहचान की है।