अभी
हाल
ही
में
अंतरराष्ट्रीय
मौद्रिक
फण्ड
(आईएमएफ)
ने
बताया
है
कि
वर्ष
2023 में
वैश्विक
स्तर
पर
विशेष
रूप
से
चीन,
अमेरिका
एवं
यूरोपीयन
यूनियन
से
प्राप्त
हो
रहे
आर्थिक
क्षेत्र
से
सम्बंधित
संकेतों
के
अनुसार
इन
देशों
सहित
विश्व
की
एक
तिहाई
अर्थव्यवस्थाओं
पर
मंदी
का
असर
दिखाई
दे
सकता
है।
हालांकि
रूस
यूक्रेन
के
बीच
चल
रहा
युद्ध
भी
वैश्विक
स्तर
पर
मंदी
लाने
में
अहम
भूमिका
निभाता
नजर
आ
रहा
है।
पिछले
40 वर्षों
में
पहली
बार
वर्ष
2022 में
चीन
कीआर्थिक
विकास
दर
वैश्विक
स्तर
पर
होने
वाली
सम्भावित
आर्थिकविकास
दर
के
बराबर
अथवा
उससे
भी
कम
रहने
की
संभावना
व्यक्त
की
जा
रही
है।
इसके
अलावा,
आगे
आने
वाले
समय
में
कोविड
संक्रमणों
का
एक
नया
दौर
चीन
की
अर्थव्यवस्था
को
प्रभावित
कर
सकता
है
जिसका
सीधा
असर
वैश्विक
अर्थव्यवस्था
पर
भी
होता
नजर
आएगा।
इसी
प्रकार
यूरोपीयन
यूनियन
देशों
में
कई
उपाय
करने
का
बावजूद
मुद्रा
स्फीति
नियंत्रण
में
नहीं
आ
पा
रही
है
और
इन
देशों
में
ब्याज
दरें
लगातार
बढ़ाई
जा
रही
हैं
जिससे
मंदी
की
सम्भावना
इन
देशों
में
भी
बढ़
गई
है।
हालांकि
अमेरिकी
अर्थव्यवस्था
भी
मुद्रा
स्फीति
एवं
लगातार
बढ़ती
ब्याज
दरों
के
बीच
अपने
बुरे
दौर
से
गुजर
रही
है
परंतु
वहां
पर
श्रम
बाजार
में
अभी
भी
काफी
मजबूती
दृष्टिगोचर
है
जिसके
कारण
अमेरिका
में
यदि
मंदी
आती
भी
है
तो
वह
बहुत
कम
समय
के
लिए
ही
होगी।
इस
प्रकार
अमेरिका
मंदी
की
मार
से
बच
सकता
है।
रूस
पहिले
से
ही
यूक्रेन
युद्ध
के
चलते
आर्थिक
क्षेत्र
में
अपने
बहुत
बुरे
दौर
से
गुजर
रहा
है।
जापान
की
आर्थिक
विकास
दर
भी
बहुत
अच्छी
नहीं
हैं।
कुल
मिलाकर
विश्व
की
सबसे
बड़ी
5 अर्थव्यवस्थाओं
में
भारत
ही
एकमात्र
एक
ऐसी
अर्थव्यवस्था
है
जो
आर्थिक
विकास
दर
के
मामले
में
संतोषजनक
प्रगति
करता
नजर
आ
रहा
है।
अब
वैश्विक
स्तर
पर
विभिन्न
वित्तीय
संस्थानों
(विश्व
बैंक,
आईएमएफ,
यूरोपीयन
यूनियन,
एशियाई
विकास
बैंक,
आदि)
द्वारा
लगातार
यह
कहा
जा
रहा
है
कि
पूरे
विश्व
में
इस
समय
सबसे
बड़ी
अर्थव्यवस्थाओं
में
केवल
भारत
ही
एक
चमकते
सितारे
के
रूप
में
दिखाई
दे
रहा
है।
अब
यहां
प्रशन्न
उठता
है
कि
क्या
वर्ष
2023 में
भारत
वैश्विक
स्तर
पर
अन्य
देशों
की
अर्थव्यवस्थाओं
को
मजबूत
सहारा
दे
सकता
है।
इसका
उत्तर
सकारात्मक
रूप
में
ही
मिलता
नजर
आ
रहा
है।
क्योंकि
अभी
हाल
ही
में
देखा
गया
है
कि
न
केवल
वित्तीय
संस्थानों
बल्कि
विदेशी
निवेशकों
एवं
विदेशों
में
रह
रहे
भारतीय
मूल
के
नागरिकों
का
भारतीय
अर्थव्यवस्था
पर
विश्वास
लगातार
बना
हुआ
है।
वित्त
वर्ष
2022-23 के
दिसम्बर
2022 माह
में
विदेशी
पोर्टफोलीओ
निवेशकों
(एफपीआई)
ने
भारतीय
शेयर
बाजारों
में
11,119 करोड़
रुपए
का
निवेश
किया
है।
दुनिया
के
कुछ
हिस्सों
में
कोविड
संक्रमण
के
बावजूद
यह
लगातार
दूसरा
महीना
है,
जिसमें
एफपीआई
ने
भारत
के
पूंजी
बाजार
में
अपना
निवेश
किया
है।
नवम्बर
2022 माह
में
भी
एफपीआई
द्वारा
36,239 करोड़
रुपए
का
भारतीय
पूंजी
बाजार
में
निवेश
किया
गया
था।
इसी
प्रकार,
हाल
ही
में
वाणिज्य
एवं
उद्योग
मंत्रालय
द्वारा
जारी
आंकड़ों
के
अनुसार
भारत
में
किए
जा
रहे
प्रत्यक्ष
विदेशी
निवेश
के
मामले
में
अब
तक
का
सबसे
बड़ा
कीर्तिमान
बना
है।
भारत
ने
वित्त
वर्ष
2021-22 में
8,357 करोड़
अमेरिकी
डॉलर
का
प्रत्यक्ष
विदेशी
निवेश
प्राप्त
किया
है,
जो
अब
तक
किसी
भी
वित्त
वर्ष
में
सबसे
अधिक
है।
वहीं,
वित्त
वर्ष
2020-21 में
विदेशी
प्रत्यक्ष
विदेशी
निवेश
8,197 करोड़
अमेरिकी
डॉलर
का
रहा
था।
पिछले
4 वित्तीय
वर्षों
में
भारत
ने
30,100 करोड़
अमेरिकी
डॉलर
से
अधिक
का
प्रत्यक्ष
विदेशी
निवेश
प्राप्त
किया
है।
इसी
क्रम
में
अभी
हाल
ही
में
विश्व
बैंक
ने
एक
प्रतिवेदन
जारी
कर
बताया
है
कि
विदेशों
में
रह
रहे
भारतीयों
द्वारा
वर्ष
2022 में10,000
करोड़
अमेरिकी
डॉलर
की
राशि
काविप्रेषणभारत
मेंकिए
जाने
की
सम्भावना
है
जो
पिछले
वर्ष
2021 में
किए
गए
8,940 करोड़
अमेरिकी
डॉलर
के
विप्रेषण
की
तुलना
में
12 प्रतिशत
अधिक
है।
पूरे
विश्व
में
विभिन्न
देशों
द्वारा
विप्रेषण
के
माध्यम
से
प्राप्त
की
जा
रही
राशि
की
सूची
में
भारत
का
प्रथम
स्थान
बना
हुआ
है।
पूरे
विश्व
में
भारत
की
साख
लगातार
बढ़ती
जा
रही
है
इससे
दूसरे
देशों
का
भी
भारत
पर
विश्वास
बढ़
रहा
हैऔर
फिर
भारत
ने
भी
विशेष
रूप
से
आर्थिक
क्षेत्र
के
विभिन्न
क्षेत्रों
में
प्रगति
दर्शा
कर
यह
सिद्ध
किया
है
कि
विदेशी
निवेशकों
का
भारतीय
अर्थव्यवस्था
पर
विश्वास अकारण नहीं
है।
भारत
के
विनिर्माण
क्षेत्र
का
पीएमआई
दिसम्बर
2022 माह
में
13 महीनों
के
उच्चतम
स्तर
पर
पहुंच
गया
है।
यह
देश
के
विनिर्माण
क्षेत्र
की
ताकत
को
दर्शाता
है।
नए
व्यापार
के
बढ़ने
और
मजबूत
मांग
से
भारत
के
विनिर्माण
क्षेत्र
को
सहारा
मिल
रहा
है।
एसएंडपी
ग्लोबल
इंडिया
के
मैन्युफ़ैक्चरिंग
परचेसिंग
इंडेक्स
के
सर्वे
के
अनुसार,
भारत
में
दिसम्बर
2022माह
में
पीएमआई
57.8 अंक
रहा
है,
जो
कि
नवम्बर
2022 माह
में
55.7 अंक
रहा
था।
इसके
साथ
ही
सर्वे
में
यह
भी
बताया
गया
है
कि
पिछले
दो
वर्षों
के
दौरान
भारत
में
व्यापार
करने
का
माहौल
काफी
बेहतर
हुआ
है।
भारत
के
8 मूलभूत
उद्योगों
(सीमेंट,
कोयला
एवं
स्टील
सहित)
में
भी
नवम्बर
2022 माह
में
5.4 प्रतिशत
की
वृद्धि
दर
हासिल
की
गई
है
जो
कि
नवम्बर
2021 के
दौरान
3.2 प्रतिशत
की
रही
थी।
विनिर्माण
क्षेत्र
के
साथ
ही
कृषि
के
क्षेत्र
में
भी
अतुलनीय
विकास
दृष्टिगोचर
है।
विश्व
में
भारत
को
कृषि
प्रधान
देश
की
उपाधि
दी
जाती
रही
है
और
इस
उपाधि
की
सार्थकता
सिद्ध
करते
हुए
हाल
ही
के
समय
में
भारत
के
खाद्य
उत्पादों
के
निर्यात
में
बहुत
बड़ा
उछाल
दर्ज
किया
गया
है।
वाणिज्य
मंत्रालय
द्वारा
जारी
किए
गए
आंकड़ों
के
अनुसार,
भारत
से
गेहूं
के
निर्यात
में
29.29 प्रतिशत
की
बढ़ोतरी
दर्ज
की
गई
है।
भारत
से
गेहूं
का
निर्यात
वित्तीय
वर्ष
2022-23 में
नवम्बर
2022 माह
की
अवधि
तक
150 करोड़
अमेरिकी
डॉलर
तक
पहुंच
गया
है।
जो
वित्तीय
वर्ष
2021-22 की
इसी
अवधि
के
दौरान
केवल
117 करोड़
अमेरिकी
डॉलर
का
रहा
था।
वहीं
बासमती
चावल
का
निर्यात
भी
वर्तमान
वित्तीय
वर्ष
में
अप्रेल
से
नवम्बर
2022 माह
तक
39.26 प्रतिशत
बढ़कर
287 करोड़
अमेरिकी
डॉलर
का
हो
गया
है।
आज
भारत
दनिया
का
दूसरा
सबसे
बड़ा
टेलिकॉम
मार्केट
बन
चुका
है।
आजादी
के
समय
जहां
भारत
में
केवल
82,000 फोन
कनेक्शन
थे,
वहीं
यह
संख्या
अब
बढ़कर
117 करोड़
के
पार
पहुंच
चुकी
है।
आजादी
के
समय
भारत
में
औसतन
4,268 नागरिकों
पर
एक
फोन
था,
आज
हर
घर
में
औसतन
4 मोबाइल
फोन
हैं।
आज
देश
में
117 करोड़
से
अधिक
टेलीफोन
उपभोक्ता
हैं
और
69.2 करोड़
इंटरनेट
उपयोगकर्ता
हैं।
यह
संख्या
चीन
के
बाद
पूरे
विश्व
में
सबसे
अधिक
है।
इंटरनेट
एंड
मोबाइल
एसोसीएशन
आफ
इंडिया
की
नवीनतम
रिपोर्ट
के
अनुसार,
वर्ष
2025 तक
भारत
में
90 करोड़
से
अधिक
इंटरनेट
उपयोगकर्ता
हो
जाएंगे।
भारत
के
ग्रामीण
एवं
दूरदराज
इलाकों
में
लगातार
बढ़
रही
इंटरनेट
सुविधा
के
चलते
डिजिटल
भुगतान
के
मामले
में
भी
भारत
दुनिया
के
अग्रणी
देशों
में
शामिल
हो
रहा
है।
इसी
कड़ी
में
दिसम्बर
2022 माह
में
यूपीआई
के
जरिए
रिकार्ड
12.82 लाख
करोड़
रुपए
कीमत
के
भुगतान
किए
गए
हैं।
इस
दौरान
डिजिटल
व्यवहारों
की
संख्या
782 करोड़
पर
पहुंच
गई
है।
वित्तीय
सेवा
विभाग
(डिपार्टमेंट
आफ
फायनांशियल
सर्विसेज)
द्वारा
उक्त
जानकारी
अभी
हाल
ही
में
जारी
की
गई
है।
नवम्बर
2022 माह
में
यूपीआई
माध्यम
से
730.9 करोड़
लेनदेन
हुए
थे
और
इनकी
कीमत
11.90 लाख
करोड़
रुपए
की
रही
थी।
भारत
में
अधिक
से
अधिक
भुगतान
के
व्यवहार
डिजिटल
माध्यम
से
होने
के
कारण
अब
वित्तीय
क्षेत्र
की
उत्पादकता
में
अतुलनीय
सुधार
हुआ
है।
साथ
ही,
डिजिटल
माध्यम
से
बढ़ते
लेनदेन
के
कारण
आगे
आने
वाले
समय
में
देश
में
भ्रष्टाचार
एवं
रिश्वतखोरी
के
मामलों
में
भी
कमी
आती
हुई
दिखाई
देगी।
इसके
परिणामस्वरूप
देश
में
होने
वाली
आय
की
रिसन
में
भी
कमी
आती
दिखाई
देगी
और
इसका
सीधा
सीधा
लाभ
देश
के
गरीब
वर्ग
को
होता
दिखाई
देगा।
आय
में
होने
वाली
रिसन
का
सबसे
बड़ा
नुक्सान
गरीब
तबके
के
नागरिकों
को
ही
होता
है।
इस
प्रकार
अब
भारतीय
अर्थव्यवस्था
में
केवल
परिमाणात्मक
ही
नहीं
बल्कि
गुणात्मक
परिवर्तन
भी
स्पष्ट
रूप
से
दिखाई
देने
लगे
हैं,
जिसके
चलते
यह
कहा
जा
सकता
है
कि
भारत
वैश्विक
अर्थव्यवस्था
को
सम्हालने
की
ओर
भी
अपने
कदम
धीरे
धीरे
बढ़ा
रहा
है।
नोट – ये लेखक के निजी विचार हैं।