माखनलाल चतुर्वेदी
पंडित माखनलाल चतुर्वेदी की ख्याति एक लेखक,कवि और वरिष्ठ साहित्यकार के रूप में हैं लेकिन वो एक
स्वतन्त्रता सेनानी भी थे.इसके अलावा उनकी पहचान एक जागरूक और कर्तव्यनिष्ठ
पत्रकार की भी थी. इस वजह से ही उनके नाम पर पत्रकारिता को समर्पित एशिया की पहली
यूनिवर्सिटी “माखनलाल चतुर्वेदी नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ़ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन”
का नाम रखा गया. माखनलाल “पंडितजी” के नाम से भी विख्यात है. माखनलाल चतुर्वेदी को
ब्रिटिश राज के दौरान स्वतंत्रता के लिए चलने वाले विभिन्न आंदोलनों में दिए
योगदान के कारण भी याद किया जाता हैं. इसके अलावा उनकी रचनाए “पुष्प की अभिलाषा:
और “हीम-तरंगिनी” आज भी उतनी ही प्रसिद्द हैं जितनी उस समय थी, जब इसकी रचना हुई थी. वो भारत
के स्वतन्त्रता के लिए कई बार जेल भी गए थे,लेकिन स्वतन्त्रता के बाद उन्होंने सरकार में कोई पद लेने से मना कर दिया. वो
स्वतंत्रता से पहले और बाद में भी लगातार कई समय तक सामाजिक अन्याय के विरुद्ध
लिखते रहे,और महात्मा गाँधी के दिखाए सत्य अहिंसा और मार्ग पर चलते रहे. उनकी कविताओं
में भी देश के प्रति समर्पण और प्रेम को देखा जा सकता हैं.
कविताएं
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अमर राष्ट्र,
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अंजलि के फूल गिरे जाते हैं,
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आज नयन के बंगले में,
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इस तरह ढक्कन लगाया रात ने,
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उस प्रभात तू बात ना माने,
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किरणों की शाला बंद हो गई छुप-छुप,
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कुञ्ज-कुटीरे यमुना तीरे,
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गली में गरिमा घोल-घोल,
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भाई-छेड़ो नहीं मुझे,
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मधुर-मधुर कुछ गा दो मालिक,
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संध्या के बस दो बोल सुहाने लगते हैं.
राणा सांगा (महाराणा संग्राम
सिंह) एक योद्धा
इतिहास के शूरवीर, पराक्रमी और साहसी शासकों की बात होती है
तो राजस्थान के महान शासक राणा सांगा का नाम जरूर लिया जाता है। उन्हें अपने त्याग, बलिदान और समर्पण के लिए जाना जाता है।
महाराणा संग्राम सिंह ने सच्ची निष्ठा और ईमानदारी के साथ 1509 से 1528 तक मेवाड़
में शासन किया और अपने राज्य की सुरक्षा के लिए विदेशी आक्रमणकारियों का जमकर
मुकाबला किया।
वे मध्यकालीन भारत के
अंतिम एवं हिन्दूओं के सबसे शक्तिशाली शासक थे, जो कि शरीर में 80 से अधिक घाव, एक पैर, एक हाथ और एक आंख पूरी तरह
घायल हो जाने के बाद भी शत्रुओं का डटकर सामना करते रहे।
राजस्थान के महान
शासक महाराणा संग्राम सिंह जी का जन्म 12 अप्रैल, 1472 ईसवी में चित्तौड़ के एक किला में हुआ था, वे बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के बालक थे, जिनका मन युद्ध कला सीखने में
लगता था, उन्होंने अस्त्र-शस्त्र की विद्या अपने बड़े भाई से ली थी।
राणा सांगा का मुकाबला फरगना के सुल्तान
बाबर से हुआ। मुगल वंश का शासक बाबर भी अपने शौर्य, साहस और पराक्रम के लिए जाना जाता था, दोनों महान शासकों की टक्कर काफी जबरदस्त
थी, राजस्थान के फतेहपुर सीकरी में दोनों
शासकों का भीषण युद्ध हुआ।
इस दौरान राणा सांगा बुरी तरह घायल हो गए थे। इस युद्ध में
उन्होंने अपनी एक आंख, एक हाथ खो दी थी, और उनके शरीर में कई गंभीर घाव हो गए थे।
हालांकि, इन सबके
बाबजूद भी उन्होंने अपना धैर्य नहीं खोया और बहादुरी के साथ युद्ध करते रहे।
हालांकि इसके युद्ध में राणा सांगा को पराजित होना पड़ा। इसके बाद राणा सांगा के
कुछ मंत्री ने उनके साथ विश्वासघात किया और उन्हें जहर दे दिया।
30 जनवरी, 1528 में इतिहास के इस सबसे महान और शक्तिशाली
शासक राणा सांगा ने अपनी अंतिम सांस ली।
हिन्दुओं के सबसे महान शासक महाराणा सांगा के बारे में ऐसा भी
कहा जाता है कि वह बाबर से मैदान में युद्ध हार जरूर गए थे, और उनका सिर शरीर से अलग होकर भी लड़ता रहा
था, और बाद में वीरगति को प्राप्त हुआ।