हमारा प्यारा अखण्ड भारत
जिसे हम अखण्ड भारत कहते हैं उसका क्षेत्रफल 1857 में 83 लाख 52 हजार वर्ग किमी था। वर्तमान भारत का क्षेत्रफल (2023 में) 32 लाख 87 हजार 263 वर्ग किमी रह गया है। अंग्रेजो ने भारत को दासता में जकड़ने के साथ अपने साम्राज्य को सुरक्षित रखने के लिए भारत के टुकड़े किये। 1947 में भारत का जो विभाजन अंग्रेजों ने किया वह 1857 के बाद से इस देश का 7 वाँ विभाजन था। महाभारत काल में भारत वर्ष के अन्तर्गत 01 करोड़ 72 लाख वर्ग किमी क्षेत्र आता था । तब इसे आर्यावर्त और भारत दो नामों से जाना जाता था। कुरुवंश के दो धड़ों के बीच युद्ध को महाभारत क्यों कहा गया। इसका उत्तर यह है कि उस समय हस्तिनापुर के चक्रवर्ती साम्राज्य के प्रभुत्व में 53 राजा और 13 बाह्य सम्बन्धी राजाओं ने अपनी सेनाओं के साथ भाग लिया था। कुल 45 लाख युद्धवीर इसमें सम्मिलित हुए थे। जिनमें से श्रीकृष्ण के साथी पाण्डु पुत्रों सहित 12 लोग बचे थे। इनमें कर्ण का एक पुत्र वृषकेतु भी था। जिसे युधिष्ठिर ने इन्द्रप्रस्थ का राजा बना दिया था। धृतराष्ट्र का एक पुत्र युयुत्सु भी बचा था। जो गान्धारी के 99 पुत्रों का सगा भाई नहीं था। वह गान्धारी की दासी के गर्भ के जन्मा धृतराष्ट्र पुत्र था। अतीत के अनेक ग्रन्थों यथा पुराणों उपनिषदों के आधार पर माना जाता है कि भारत खण्ड को श्रीराम के कालखण्ड में ब्रह्मावर्त संज्ञा प्राप्त थी। श्रीराम का कालखण्ड श्रीकृष्ण के काल से कितना पूर्व का था इसका अनुमान ही किया जाता है। सनातन संस्कृति के ग्रन्थों के आधार पर कुछ लोग 20000 तो कुछ उससे भी पहले श्रीराम के अवतार लेने की बात मानते हैं। श्रीराम के काल में भारत का नाम ब्रह्मावर्त मिलता है। इसी नाम का उल्लेख मनुस्मृति और वैदिक साहित्य में अनेक प्रसंगों में उल्लिखित है। तब इस पावन भूखण्ड का क्षेत्रफल 01 करोड़ 72 लाख वर्ग किमी था ऐसा मानना अनेक राष्ट्रीय और विदेशी विद्वानों का है। सनातन संस्कृति के प्रति आदर का भाव इस सांस्कृतिक साम्राज्य की प्राण शक्ति थी। सर्वोच्च सत्ता अधिष्ठान की आवश्यकता पड़ी तो चक्रवर्ती सम्राट की व्यवस्था बनी । इसके अधीन जो राज्य होते वह भी प्रायः स्वतन्त्र सत्ता संचालन करते थे। चक्रवर्ती सम्राट उन्हें धर्म के अनुरूप कार्य व्यवहार के लिए ही विवश कर सकता था। अधर्म पर रोक के निमित्त यह व्यवस्था बनी थी। इसीलिए श्रीराम ने अधर्मी राजा रावण के विरुद्ध युद्ध किया था। वैसे तो अंग्रेजों ने सबसे पहले 24 अगस्त 1608 में भारत की धरती पर अपने अपवित्र पाँव रखे थे। 1615 तक वह टोह लेने के बहाने व्यापार का नाटक करते रहे। 1615 में जहाँगीर ने अंग्रेज दूत टामस रो को अपने दरबार में रख लिया। यहीं से कुचक्र चल पड़ा। फिर अंग्रेजों ने मुगलों का नाश करने में भारतीय समाज का हाथ थामे रखा। अंग्रेज 1857 में क्रान्ति वीरों द्वारा खदेड़ दिये गये। पर 1858 में भारत के 22 राजाओं ने इंग्लैंड जाकर रानी की सरकार को फिर भारत आने का न्योता दिया। इस बार अंग्रेज ईस्ट इण्डिया कम्पनी के पर्दे के पीछे नहीं, सीधे सत्ता हथियाने आये । आते ही उन राजाओं को मारना, उनके राज्य को नष्ट करना शुरू किया जिन्होंने उनको 1857 में खदेड़ने में सक्रिय भूमिका निभायी थी। अंग्रेजों ने भारत पर सत्ता के पंजे गड़ाने के अभियान के अंतरगत भारत के मानचित्र को छोटा करना शुरू किया। उन राज्यों को अखण्ड भारत से विलग करके स्वतन्त्र देश बनाना प्रारम्भ किया जिनको साथ रखना कठिन और अनुपयोगी लगा। सबसे पहले 1876 में अंग्रेजों ने अफगानिस्तान (उपगणस्थान) को भारत से अलग कर दिया। भूटान को 1906 में अलग किया। 1912 में तिब्बत को अलग किया। श्रीलंका को भारत से विलग करने की बारी 1835 में आयी। किन्तु श्रीलंका को पूर्ण स्वतंत्रता 1948 में दी गयी। ब्रह्मदेश (बर्मा) जिसको अब म्यांमार कहते हैं उसे अंग्रेजों ने 1937 में अलग किया था। नेपाल के साथ अंग्रेज भिड़े पर कुछ क्षेत्रों को ही हथिया सके। यह वो क्षेत्र थे जिन्हें नेपाल ने भारतीय भूभाग से ले लिये थे। दो वर्ष 1814 से 1816 के युद्ध के बाद सन्धि से ऐसा हुआ था। पर नेपाली वीरों को अंग्रेज कभी हरा नहीं सके। अंग्रेजों ने बंगाल को दो हिस्सों में बाँट कर एक नया देश बनाने का निर्णय तो 1906 में किया था। पर बंग भंग के विरुद्ध तीव्र आन्दोलन के कारण उस समय वह निर्णय वापस लेना पड़ा था। फिर 1947 में पाकिस्तान के साथ पूर्वी बंगाल को जोड़कर अंग्रेज अपना मन्तव्य पूर्ण करने में सफल हुए थे। यह दुर्भाग्यपूर्ण विभाजन नेहरू जिन्ना की सहमति से अंग्रेज सरकार ने किया था। 1947 में पाकिस्तान के साथ तोड़ा गया पूर्वी पाकिस्तान 1971 में भारत की सहायता से बांग्लादेश बन गया। इस तरह अंग्रेजों ने भारत से जाने से पहले इस विशाल देश के सात खण्ड किये। सनातन संस्कृति के प्रभाव से जो भारत रामायण और महाभारत काल में विराटता के शिखर को छू रहा था। उस समय ईरान का नाम आर्यन था। यह भी ऋषियों की भूमि थी। पारसी यहां बहुसंख्य हुए तो पारस नाम पड़ा । पारसी देश बना जो इस्लाम के विवर में समा गया। इसी तरह कम्बोडिया अलग हुआ। यहाँ हिन्दू राजा कम्बोद राज्य करते थे। वह बौद्ध मत के प्रभाव में आये फिर तो सनातन संस्कृति से अलग होने के साथ यह देश भारत से अलग हो गया। भारत वर्ष से इंडोनेशिया, सिंगापुर, लाओस, वियतनाम, फिलीपीन्स, बू्रनेई, मालदीव थाईलैण्ड (श्यामदेश) अलग होकर नये देश बनते गये। यह सभी पहले बौद्ध बने थे। अपने देश का नाम भारत क्यों पड़ा इसका उत्तर कई लोग प्रभावशाली राजाओं के नाम का उल्लेख करके बताते हैं। यही कि उनके प्रताप को देखकर भारत नाम पड़ा। जबकि किसी व्यक्ति के नाम को महत्व देने की सनातन संस्कृति में कोई परम्परा नहीं रही है। भा अक्षर प्रकाश का प्रतीक है। प्राचीन वैदिक संस्कृति में सूर्य और अग्नि की पूजा प्रकाश के सन्दर्भ में की जाती थी। ज्ञान के प्रकाश को भी इससे जोड़ा गया। वह लोग जो ज्ञान की अन्वेषणा में रत रहते हैं वो भारतवासी हैं। भा शब्द से ज्ञान की देवी सरस्वती को भारती भी कहा गया है। ज्ञान के तप में जहाँ के लोग सदा रत (तल्लीन) रहते हैं वह भूमि भारत है। यही परिभाषा अब तक सबसे समीचीन लगती है। हिमालय पर्वत का कुल क्षेत्रफल 595000 और हिन्दुकुश पर्वत का क्षेत्रफल 01 लाख 54488 वर्ग किमी है। हिमालय से आठ देशों भारत, पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, म्यांमार, चीन, अफगानिस्तान की सीमाएं सीधे जुड़ी हैं। हिन्दुकुश का वास्तविक नाम हिन्दू कोह है। सिकन्दर ने इसका नाम कोकासोस इंदिकोस अर्थात् भारत का पर्वत रखा था। हिन्दुकुश को संस्कृत भाषा में ऊपरी स्वर्ण पर्वत कहा जाता है। इस पर्वत श्रृंखला से भारत का चित्राल गिलगित बल्टिस्तान क्षेत्र (जिस पर पाकिस्तान अवैध रूप से नियन्त्रण किये है) जुड़ा है। इसके अतिरिक्त अफगानिस्तान पाकिस्तान की सीमाएं जुड़ी हैं। इस पर्वत श्रृंखला में अनेक दर्रे कहे जाने वाले संकरे रास्ते हैं। इन्हीं रास्तों से भारत पर आक्रमण करने वाले अनेक शत्रुओं की सेनाएं आती थीं। इसके लम्बे संकरे रास्ते पामीर पर्वत और पामीर के पठार के देशों से भारत को जोड़ते हैं।उज्बेकी लुटेरा तैमूल लंगड़ा (लंग) और उसके बाद उज्बेक लुटेरा बाबर भी इसी रास्ते से पहली बार भारत आया था। शक , हूण , मंगोल और एलेक्जेंडर भी हिन्दुकुश के रास्तों से भारत की सीमा में आया था।