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कोडेड कमांडर्स: कृत्रिम बुद्धिमत्ता नए जनरल के रूप में

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कोडेड कमांडर्स: कृत्रिम बुद्धिमत्ता नए जनरल के रूप में 

युद्ध की बदलती परिभाषा: अब युद्ध केवल खाइयों, टैंकों और सीमाओं तक सीमित नहीं है। इक्कीसवीं सदी की युद्धभूमि अब कोड, एल्गोरिद्म, उपग्रहों और क्वांटम सिग्नलों पर स्थानांतरित हो गई है। इस नए युग में निर्णय केवल कमांड रूम में बैठे जनरल नहीं लेते, बल्कि मशीन लर्निंग सिस्टम भी लेते हैं जो वास्तविक समय के एक टेराबाइट डेटा को पढ़कर निर्णय देते हैं।

अमेरिका और चीन ने इस परिवर्तन को स्पष्टता और तात्कालिकता के साथ अपनाया है और कृत्रिम बुद्धिमत्ता, साइबर प्रभुत्व, क्वांटम नेटवर्क और मानव रहित प्रणालियों में अभूतपूर्व संसाधन झोंक दिए हैं। भारत के लिए, जिसके दो शत्रुतापूर्ण सीमांत और समुद्री कमजोरियां हैं, यह आवश्यकता और भी गहरी है। सवाल यह नहीं है कि भारत को आधुनिकीकरण करना चाहिए या नहीं, बल्कि यह है कि क्या भारत इतनी तेजी से कर सकता है कि भविष्य के युद्धों में, जहां पहली गोली साइबरस्पेस या अंतरिक्ष से चल सकती है, जीवित रह सके।

युद्ध में एल्गोरिद्म: कमांड और कंट्रोल की नई परिभाषा - कृत्रिम बुद्धिमत्ता अब सैन्य आधुनिकीकरण की नई परिभाषा बन गई है। अमेरिका अपने कमांड और कंट्रोल सिस्टम में एआई को सम्मिलित कर रहा है, जहां युद्धभूमि सिमुलेशन को भविष्यवाणी विश्लेषण (प्रेडिक्टिव एनालिटिक्स) से जोड़कर कमांडरों को निर्णयात्मक श्रेष्ठता प्रदान की जा रही है। एआई-आधारित ISR (इंटेलिजेंस, सर्विलांस, रिकॉनसेंस) अब पेंटागन की रणनीतिक सिद्धांत का अभिन्न हिस्सा बन चुका है, जिसमें मानव रहित प्रणालियां युद्धक्षेत्र से विशाल डेटा वास्तविक समय में निर्णय नेटवर्क तक पहुंचाती हैं। दूसरी ओर, चीन ”बुद्धिमत्तायुक्त युद्ध“ की दिशा में आक्रामक रूप से अग्रसर है। वहां एआई-आधारित युद्धाभ्यास, इलेक्ट्रॉनिक युद्ध और भविष्यवाणी करने वाले निर्णय तंत्र तीव्र गति से विकसित हो रहे हैं। चीनी कंपनियां, PLA  के सहयोग से, स्वचालित टार्गेटिंग, तीव्र सिमुलेशन और बिग डेटा आधारित मनोवैज्ञानिक अभियानों के लिए एआई उपकरण तैयार कर रही हैं। भारत ने भी रक्षा स्टार्टअप्स और अनुसंधान एजेंसियों के माध्यम से उल्लेखनीय कदम उठाए हैं- एआई-आधारित बैटलफील्ड मैनेजमेंट सिस्टम, प्रेडिक्टिव लॉजिस्टिक्स और स्वदेशी ड्रोन प्लेटफॉर्म जैसे प्रयास अत्यंत आशाजनक हैं, किंतु इनका पैमाना अभी भी अमेरिका और चीन की तुलना में अपेक्षाकृत छोटा है।

अदृश्य युद्धक्षेत्र: साइबर डोमेन नई अग्रिम पंक्ति - यदि कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) भविष्य के युद्ध का मस्तिष्क है, तो साइबर उसका रक्तप्रवाह कहा जा सकता है। अमेरिका के पास विश्व की सबसे विकसित और परिपक्व आक्रामक साइबर क्षमता है। उसका ”परसिस्टेंट एंगेजमेंट“ सिद्धांत यह सुनिश्चित करता है कि शत्रु सदैव रक्षात्मक स्थिति में रहे।

दूसरी ओर, चीन ने साइबर-सक्षम जासूसी और दीर्घकालिक नेटवर्क घुसपैठ की कला में अभूतपूर्व दक्षता प्राप्त की है। वह बौद्धिक संपदा की चोरी से लेकर रणनीतिक प्रणालियों को बाधित करने तक अपनी गतिविधियाँ फैला चुका है।

भारत का साइबर दृष्टिकोण फिलहाल मुख्यतः रक्षात्मक है। डिफेंस साइबर एजेंसी की स्थापना और महत्वपूर्ण अवसंरचना की सुरक्षा पर बढ़ता ध्यान निश्चित रूप से सही दिशा में एक कदम है, किंतु अब समय आ गया है कि भारत एक स्पष्ट और सशक्त आक्रामक साइबर सिद्धांत भी विकसित करे, ताकि भविष्य के डिजिटल युद्धक्षेत्र में उसकी रणनीतिक स्थिति और मजबूत हो सके।

क्वांटम डॉन: अदृश्य को सुरक्षित करने की दौड़ - क्वांटम तकनीक युद्ध के भविष्य का अगला निर्णायक मोड़ बनने जा रही है। यह सुरक्षित संचार, अत्यधिक तीव्र कंप्यूटिंग और शक्तिशाली डिक्रिप्शन क्षमताएं प्रदान करती है। इस क्षेत्र में अमेरिका और चीन अग्रणी हैं- विशेषकर चीन, जिसने उपग्रह-आधारित क्वांटम संचार का सफल प्रदर्शन कर अपनी तकनीकी बढ़त दिखाई है। भारत ने भी ISRO और राष्ट्रीय क्वांटम मिशन के माध्यम से इस दिशा में कदम बढ़ाए हैं, किंतु यह प्रयास अभी प्रारंभिक चरण में हैं। यदि प्रयोगशालाओं और रक्षा अनुप्रयोगों के बीच की खाई शीघ्र नहीं पाटी गई, तो भारत इस उभरते तकनीकी दौड़ में पिछड़ सकता है।

अंतरिक्ष का सैन्यीकरण और बहु- क्षेत्रीय युद्ध: भविष्य की युद्धभूमि अब केवल भूमि, समुद्र और वायु तक सीमित नहीं रही- यह अब अंतरिक्ष तक विस्तारित हो चुकी है। अमेरिका ने ”स्पेस फोर्स“ का गठन कर अपनी अंतरिक्ष प्रभुता सुदृढ़ करने की दिशा में कदम उठाए हैं। वहीं चीन ने एंटी-सैटेलाइट (ASAT) हथियारों का सफल परीक्षण कर अपनी महत्वाकांक्षा स्पष्ट कर दी है। भारत ने 2019 में ”मिशन शक्ति“ के माध्यम से ASAT क्षमता साबित की, पर समग्र अंतरिक्ष सैन्यीकरण में भारत की चाल अभी अधिकतर प्रतिक्रियात्मक रही है।

हाइपरसोनिक्स, मानव रहित प्रणालियां और भविष्य का शस्त्रागार: हाइपरसोनिक हथियार और उन्नत मानव रहित (ड्रोन) प्रणालियां अगली पीढ़ी की निर्णायक क्षमताएं हैं। अमेरिका और चीन दोनों ही क्षेत्रों में तीव्र प्रगति कर रहे हैं। भारत रूस के साथ ब्रह्मोस-II पर काम कर रहा है और घरेलू ड्रोन स्टार्टअप्स भी सक्रिय हैं, फिर भी मौजूदा पैमाना और तैनाती वैश्विक प्रतिस्पर्धा से पीछे दिखती है।

भारत का उदय: वादे और विरोधाभास - ”आत्मनिर्भर भारत“ जैसी पहलों ने रक्षा नवाचार को बढ़ावा दिया है। भारत की ASAT सफलता, बढ़ता साइबर ढांचा और एआई अनुसंधान उल्लेखनीय उपलब्धियां हैं। फिर भी वास्तविक समस्या यह है कि महत्वाकांक्षा तो मौजूद है पर उसे पूर्ण पैमाने पर एकीकृत करने की व्यवस्था अभी कमजोर है - बजटीय सीमाएं, नौकरशाही की धीमी गति और त्रि-सेनाओं के बीच समन्वय की कमी बड़ी बाधाएँ बनी हुई हैं।

भविष्य का युद्ध: तकनीकों का अभिसरण - आने वाला युद्ध पारंपरिक मुठभेड़ की बजाय तकनीकों के संगम के रूप में होगा। एआई वास्तविक-समय निर्णय लेगा, क्वांटम तकनीक संचार को सुरक्षित बनाएगी, साइबर ऑपरेशन शत्रु के ढांचे को घुटन पहुंचाएंगे, अंतरिक्ष पर नियंत्रण युद्ध की गति तय करेगा और हाइपरसोनिक हथियार सेकंडों में निर्णायक पल बदल देंगे।

पीछे से आगे: भारत की रणनीतिक आवश्यकता - भारत एक निर्णायक मोड़ पर खड़ा है- विकल्प स्पष्ट है, प्रतिक्रिया करने वाली शक्ति बनकर रहना या अग्रणी शक्ति बनना। अमेरिका और चीन पहले ही ”एल्गोरिदमिक युद्ध“ के सिद्धांत लिख रहे हैं। भारत को अपनी लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं, तकनीकी प्रतिभा और भौगोलिक लाभ का उपयोग करते हुए एक अलग लेकिन निर्णायक रास्ता अपनाना होगा।

भविष्य के युद्ध बिना गोली चले जीते-हारे जा सकेंगे; इसलिए भारत का लक्ष्य सिर्फ पकड़ने का नहीं, नेतृत्व करने का होना चाहिए। तेज, साहसी और समेकित निर्णय-तन्त्र ही इस दिशा की कुंजी होंगे।